बाला साहब ठाकरे ने जिस शिवसेना की नींव रखी थी आज वो गुम होती जा रही है. उद्धव ठाकरे ने सत्ता की लालच में आकर महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने अपने मूल से समझौता कर लिया. इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस दिन शिवसेना ने महाराष्ट्र में कुर्सी पाने के लिए NCP और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया  उसी दिन से शिवसेना की हिंदुत्व वाली छवि धुमिल होने लगी।

उद्धव सरकार ने सत्ता के लिए हिंदुत्व की तिलांजलि दे दी और तुष्टीकरण को समर्थन देकर सत्ता का सुख भोग रहे हैं. बाला साहब की शिवसेना का ऐसा कभी कई उद्देश्य नहीं था. लेकिन सत्ता पाने के लिए उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की सीख को भी भुला दिया है. नवाब मलिक जैसे नेता जो अंडरवर्ल्ड, बेनामी संपत्ति और राष्ट्र विरोधी अभियानों से जुड़े हैं, उन पर कार्रवाई के बजाय उन्हें सत्ता का संरक्षण देकर बचाती रही .

दरअसल ऐसे कई मौके सामने आए जब लगा कि मानो शिवसेना का इस्लामीकरण हो गया है. वहीं महाराष्ट्र में मस्जिदों में लाउडस्पीकर से होने वाले अजान के खिलाफ चल रहे विवाद के बीच मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने ऐलान किया था कि उनके कार्यकर्ता लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ेंगे। इसके बाद महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों से हिंदुओं की धर-पकड़ शुरू हो गई। शिवसेना के इसी धर्म विरोधी रुख को देखते हुए अमरावती से सांसद नवनीत कौर राणा और उनके पति बडनेरा से विधायक रवि राणा को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उन्होंने ‘मातोश्री’ के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने का निर्णय लिया था। जिसके बाद सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा के ऊपर देशद्रोह तक का केस दर्ज हुआ। इससे पहले उन्हें हनुमान चालीसा ऐलान के बाद गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश किया गया था, जहां उन्हें 6 मई तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया।

इधर हनुमान चालीसा पर जारी सियासत के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पहली बार बयान देते हुए कहा कि अगर कोई हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहता है तो घर आए, लेकिन अगर दादागीरी करेगा तो शिवसेना प्रमुख बाला साहब ने हमें इसे तोड़ना सिखाया है।

देखा जाए तो अगर ये बालासाहब वाली शिवसेना होती तो वे खुद कट्टरपंथियों को मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतारने के लिए मजबूर कर देती ना की हनुमान चालीसा के पाठ से डरती. मतलब साफ है कि शिवसेना अब वो शिवसेना नहीं रही जिसकी नींव कभी बालासाहब ने रखी। इसे कहने से हमें कोई गुरेज नहीं है कि उद्दव ठाकरे चाहे तो शिवसेना का नाम बदल सकते हैं. क्योंकि जो पार्टी हनुमान जी की स्तुति में बाधा पैदा करें, उसका पाठ करनेवालों को जेल भेज दे, उसे खुद को शिवसेना कहने का अधिकार तो हो ही नहीं सकता। बाला साहब की शिवसेना तो वो थी जिसने हिंदुत्व के लिए सत्ता तक त्यागने की बात कर दी थी. ये वो शिवसेना थी जिसके बनने से न सिर्फ मुंबई, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में अंडरवर्ल्ड और कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचार को खत्म किया।

इसने राम मंदिर के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और ढांचे के विध्वंस में अपनी मौजूदगी को बड़े बड़े ही गर्व के साथ स्वीकारा। लेकिन इसे महाराष्ट्र का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जो शिवसेना हिंदुओं और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हमेशा कट्टरपंथियों के सामने खड़ी रहती थी उसके सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए सिद्धांतों से समझौता करने में तनिक भी नहीं सोचा. किसी ने नहीं सोचा था कि शिवसेना सत्ता के लिए कांग्रेस और NCP के साथ हाथ मिला लेगी और धीरे-धीरे सामना का रंग भगवा से हरा होता चला जाएगा । ये कहना गलत नहीं होगा कि अब शिवसेना उस परिपाटी में नहीं है, जिसकी नींव हिन्दू ह्रदय सम्राट शिवसेना के संस्थापक बालासाहब ठाकरे ने रखी थी।

 

 

 

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