इस पोस्ट में जिस सफ़र  और  जिस  रास्ते  की  ओर हम बढ़ने वाले हैं वो देश ही नहीं  विश्व के कुछ बेहद दुर्गम और कठिन रास्तों में से एक है  |सड़क मार्ग से दिल्ली से शिमला ,मनाली होते हुए सिक्खों और हिन्दुओं के एक बहुत प्रमुख धर्म स्थल मणिकरण साहब और हिन्दुस्तान के आखिर में बसे गाँव /बस्ती के इस सफर पर मैं सपरिवार कुछ वर्षों पूर्व गया था |


मेरी श्रीमती जी , जिन्हें पहाड़ के घुमावदार रास्तों से डर लगता है , उनको खाई और साथ उफनती व्यास नदी की ओर न बिठा कर दूसरी  और  बिठाया  गया  | बच्चे  फोन  और  कैमरों  में  मस्त  होने  की  तैयारी  में  था और  मैं आदतन ..पहाड़ों ,वनस्पतियों ,रास्तों ,मिट्टी को भांपता और परखता चल रहा था |शायद इसलिए भी कि जाने फिर कभी जीवन में इन रास्तों पर दोबारा आने का कोइ बहाना मिले न मिले  |

रास्ते  वाकई  बहुत  जगह  पर  बहुत  ही  संकरे  और  डराने वाले  थे  ऐसे  ही एक मोड  पर  रुके  हुए  हम | यहाँ इन रास्तों  पर  सबसे  अधिक कठिन बात   होती  है  रिवर्स गियर  में  गाडी  का  संचालन ,देखिये एक बानगी आप  भी 

मनाली  से  मणिकरण  साहब  के  लिए  जाने  वाली  सड़क  का  एक  नज़ारा , चित्र कार  की  अगली  सीट  से  

खैर ऐसा नहीं था कि पूरे  रास्ते सिर्फ  डरने और  डराने  वाले  दृश्य  ही देखने को  मिले ,सड़क के बिलकुल साथ साथ  उफनती उछलती व्यास नदी बहुत से मोड़ों पर बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक नज़ारे उत्पन्न कर रही थी |एक ख़ास क्षेत्रके आसपास तो कालेज के विद्यार्थियों के जाने कितने ही   समूह राफ्टिंग कैम्पिंगआदि के लिए डेरा जमाये बैठे थे  |हम आगे बढ़ते जा रहे थे  |

मनाली  से  आगे  बढ़ते  हुए  ही वनस्पति  में  भी बदलाव  महसूस  हुआ था | अब  फलदार पेड़  पौधों की बहार थी | जाने कितने ही तरह  के  कमाल के फल  फूल और पौधे भी  लद्द्दम लद्द …हालांकि मालूम  चला  कि अभी इनके  पकने  में समय  है | सच कहूँ तो धरती पर अमृत बिखरा हुआ है और ज़हर तो उसमें हमने भरा है , बूँद बूँद करके यदि प्रकृति की अमरता का स्वाद चखना हो तो इन्ही वन आच्छादित प्रदेशों का विचरण करना चाहिए | बहरहाल हमारे लिए तो वहां दिखने मिलने वाले हर पौधे और उन पर लदे फदे फल सब तिलस्म सरीखे थे | आखें और मन जुराता जा रहा था

ये नीचे बब्बू गोशे के नन्हे नन्हे फल ..देखिये कितने खूबसूरत लग दिख रहे हैं | कार को बीच बीच में रोक कर मैं और मित्र अरविन्द जी , छू सहला कर परखते भी जा रहे थे ……

अब थोड़ी सी भूख सी लगने लगी थी लिहाजा सड़क के ठीक साथ बना हुआ हुआ एक छोटा सा रेस्तरां नुमा चाय की हट्टी देख गाडी को ब्रेक लगाया गया | हाथ मुंह धो कर और कुछ नाश्ते पानी के साथ चाय के लिए कह कर अपनी आदत के अनुसार मैं कौतूहलवश आसपास टहलने लगा | पास के ही मकान में ये चल रहा था | जी हाँ आलू बुखारों की पैकिंग का काम चल रहा था |

आलूबुखारों की पैकिंग


बात करते हुए पता चला  कि यहाँ से पैक करके अधिकांश माल को सीधे दिल्ली की आजाद पुर सब्जी मंडी के लिए भेजा जाता है , आजाद पुर मंडी कहते हैं कि एशिया की सबसे बड़ी मंडी है और दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारतीय राज्यों की फल व् सब्जी की लाईफ लाइन भी |

बातचीत के दौरान मुझे जो सबसे रोचक बात  पता चली वो ये कि , यदि यहाँ के निकटतम बाज़ारों जैसे चंडीगढ़ या और कोइ भी तो उन बाज़ारों को भी आपूर्ति सीधे यहाँ से नहीं बल्कि दिल्ली की उसी आज़ादपुर सब्जी मंडी से ही की जाती है | इसके भी बड़े ही रोचक और वाजिब तर्क बताये इन्होंने | मैं काफी देर तक बैठ कर उनके काम काज और उन्हें समझने की कोशिश करता रहा |

खैर इन सबसे गुजरते हुए हम अब मणिकरण साहब गुरूद्वारे तीर्थ स्थल पहुँच चुके थे | गुरु मणिकरण साहब गुरूद्वारे का मुख्य प्रवेश द्वार और शायद एक अनोखी दुनिया का प्रवेश द्वार भी | पार्वती नदी अपने पूरे उफान पर और जड़ जैसी ठंडी , वेग से उछलती हुई शोर मचाती हुई …उसी के  ऊपर बना हुआ ये छोटा सा पुल जिसके उस पार जाने कौन सी जादू की दुनिया बसी हुई थी ..आइये दिखाते हैं आपको

गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव मणिकरण साहिब सिखों के पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है. गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव मणिकरण साहिब हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में 1760 मीटर की ऊंचाई पर पार्वती नदी के तट पर स्थित है.

इस गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में तवारीख गुरु खालसा किताब में लिखा गया है. इस किताब में सिख धर्म के गुरुओं की जीवनी के बारे में लिखा है और उस समय तक का इतिहास है जब सिखों ने पंजाब अंग्रेजों को दिया था

इस गुरूद्वारे के बारे में भाई बाला जन्मसाखी (एक पुस्तक जिसमें भाई बाला जो कि एक सिख भक्त थे) ने इस किताब में इस गुरूद्वारे और गुरु नानक के जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में उल्लेख किया है.

छुट्टियों के कारण स्थानीय और पड़ोसी लोगों की भरमार थी | पंजाब , हरियाणा , हिमाचल , दिल्ली और उससे भी दूर दूर से लोग इस पवित्र स्थल पर पहुंच रहे थे | मैं देश में स्थित बहुत सारे गुरुद्वारों का दर्शन कर चुका हूँ मगर इन सबमें मुझे मणिकरण साहब गुरुद्वारा समिति द्वारा संचालित व्यवस्था सबसे कमज़ोर लगी |

पहले निर्णय किया गया कि मणिकरण साहब के प्रांगण में रात गुज़ार कर सुबह दर्शन के बाद वापसी शुरू की जायेगी | मगर थोड़ी ही देर में बच्चों की परेशानी को देखते हुए पुनः निर्णय किया गया कि अरविन्द जी से कहा जाए कि कोइ ठिकाना तलाशें | और शायद ये न होता तो हम उस पार की उस अनोखी दुनिया से वंचित ही रह जाते | गुरुद्वारा साहिब की भीतर से जाने वाली सुरंग के अन्दर से निकल कर उस पार की बस्ती में पहुँचते ही मन आनंदित हो गया |

मणिकरण साहिब हिंदुओं और सिखों के लिए एक तीर्थस्थल है. हिंदुओं का मानना है कि मनु ने बाढ़ के बाद मणिकरण में मानव जीवन को फिर से निर्मित किया था और उसके बाद से यह एक पवित्र क्षेत्र बन गया है. यहाँ कई मंदिर और एक गुरुद्वारा है.

पौराणिक कथा के अनुसार जब हिंदू भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती घाटी में घूम रहे थे तो देवी पार्वती की एक बाली गिर पड़ी. इस बाली को शेष सर्प देवता ने ले लिया और इसके साथ पृथ्वी में गायब हो गए. शेष सर्प देवता ने देवी पार्वती के गहने को आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया.

प्राचीन शिव मंदिर

देवता ने शिव से अनुरोध किया कि जब शिव ब्रह्मांडीय नृत्य, तांडव का प्रदर्शन करेंगे तभी गहना उन्हें वापिस मिलेगा. इसी प्रकार तांडव करने के बाद देवता ने गहने को पानी के अंदर से प्रकट करके शिव को समर्पण कर दिया. इसी तरह मणिकरण के पानी में गहने डालकर कुछ भी मांगने की प्रथा प्रचलित है.

सिख धर्म की मान्यता के अनुसार, तीसरे उदासी के दौरान सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक इस जगह पर अपने शिष्य भाई मर्दाना के साथ आये थे. भाई मर्दाना को भूख लगी परन्तु उनके पास खाना नहीं था. गुरु नानक ने लंगर (सामुदायिक रसोई) के लिए भोजन इकट्ठा करने के लिए मर्दाना को भेजा.

कई लोगों ने रोटी बनाने के लिए आटा दान दिया. अब गुरु के लिए समस्या ये थी कि खाना पकाने के लिए कोई आग नहीं थी. गुरु नानक ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने के लिए कहा और ऐसा करते ही एक गर्म पानी का झरना निकल आया. निराश मर्दाना ने चपातियों को पानी के झरने में डाल दिया.

गुरु नानक द्वारा निर्देश देने पर मर्दाना ने भगवान से प्रार्थना की और बोला अगर उसकी चपाती वापस पानी पर तैर आई तो वो एक चपाती भगवान को दान दे देगा. जब मर्दाना ने प्रार्थना की तो सभी चपाती पकी हुई पानी पर तैरने लगी. गुरु नानक ने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के नाम पर दान करता है तो उसका डूबा हुआ सामान वापस तैरने लग जाता हैं.

ये एक अलग दुनिया  है , अलग अनुभव आपको धरती  के  भीतर  पल रहे आग पानी की  ताकत  का  एहसास कराता है ,जिस रस्ते से होकर मैं अपने इस आज रात के ठिकाने की  तरफ बढ़  रहा था उसके नीचे बह रही  नालियों  और  पानी  पहुंचाने  वाली  पाईप लाइनों में गंधक मिश्रित खौलता उबलता हुआ पानी और  उस सर्द मौसम में कई फीट ऊपर  उठता भाप का गुबार , कुल मिला कर कमाल का  अनुभव और नज़ारा  सामने  था 

व्यास नदी का  कल कल पानी  जब  गंधक की चट्टानों  से  टकराता  है  तो  गर्म भाप के  धुंए यूं दिखते हैं 
चित्र को बड़ा करने  पर  गंधक से  गली हुई  पानी  की  पाईप को  देखा  जा  सकता  है
गंधक की चट्टानों से टकराकर , बर्फ जैसा पानी भी भाप बन कर एक अजीब सी गंध वाला कोहरा बना देता है |

गंधक की  गर्म चट्टानों के ऊपर  बसी  ये  धार्मिक सामाजिक दुनिया का अर्थ तंत्र भी  इन कारकों से जुडा हुआ  है  यहाँ  पर | भक्तों द्वारा स्थान स्थान पर बनाए  गए ऐसे  गर्म कुण्डों में चावल , आलू , आदि उबालने के अतिरिक्त वहां के स्थानीय  निवासियों द्वारा भी  इन गर्म पानी के कुंड का  प्रयोग खाना बनाने के अलावा और  भी अन्य कार्यों में  किया  जाता है  जिसमें से सबसे ख़ास  है  गर्म कुण्ड या  गंधक मिश्रित पानी में  स्नान | 

ऐसे गर्म कुंडों के खौलते पानी में स्थानीय लोग चावल आलू आदि बड़ी आसानी से पका लेते हैं
गुरुद्वारे के साथ ही बना हुआ सामूहिक स्नानागार जहां श्रद्धालु सनान गंधक मिश्रित गर्म जल में स्नान करते हैं जो शरीर और चर्म के लिए बहुत गुणकारी होता है

इसके अलावा यहाँ के स्थानीय छोटे छोटे होटल व रिहायशी स्थानों पर  घरों के  अन्दर भी ऐसे  ही  कुण्ड स्नानघरों में बना  कर  गर्म पानी से स्नान का  आनंद लिया  जा  सकता  है  है | हमारे उस  छोटे  से  होटल  में  बना  हुआ  ऐसा ही एक स्नानागार

हमारे होटल के हॉल में बना हुआ ऐसा ही एक स्नानागार
इस कुंड में एक बार आप उतर जाएं तो गुनगुने से पानी में से निकलने का मन नहीं करता |

हिंदुस्तान के बिलकुल आखिरी छोर पर बने इस गाँव और बस्ती के लोगों का प्रमुख आय श्रोत वहाँ स्थित स्थानीय बाज़ार हैं जिनमे जड़ी बूटियों से लेकर बहुत सारी छोटी छोटी आकर्षक वस्तुएं मिलती हैं | हाँ जड़ी बूटी की वास्तविक पहचान होने पर ही उसकी खरीद करनी चाहिए |

जड़ी बूटियों से सजी हुई एक दूकान
कलकल बहती हुई पार्वती नदी
मणिकरण साहब की एक खूबसूरत भोर का नज़ारा

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