मुर्गा बेचने वाले असलम से जब मैंने कहा एक किलो चिकेन दे दो, तो उसने पिंजरे में से एकमुर्गे को उठाया , गला रेता , और बोटी बोटी बनाकर मेरे हाथ में थैला थमा दिया l मैंने पूछा-कितने पैसे हुए ? बोला – 180 रूपए मात्र l असलम के दुकान पर अधिक भीड़ नथी l दुकान भी कैसा , पेड़ के निचे एक लकड़ी की गठ्हा(परघट), और ऊपर पेड़ सेटंगा हुआ एक तिरपाल, बस ! गाँव-घर में इसी को मांस-चिकेन की दुकान कहते हैं l

असलम गाँव का ही था, इसलिए पुरानी जान-पहचान थी, तो कभी कभार उसके पास बैठ जाया करता था, क्योंकि वह राजनितिक में परिपक्व था, और पढ़ा लिखा नही होने के वावजूद भी अपनी तर्कशक्ति से सामनेवाले को सोचने पर मजबूर कर देता था, वह भी सिर्फ रेडिओ पर समाचार सुन-सुन कर ! चिकेन बेचने के अलावा मसाले का भी व्यापर करता था l कारोबार हालांकि छोटा था, लेकिन मिला-जुलाकर जीवन नैया को खेपते आ रहा था l बाजार के नाम पर वही गाँव या फिर हाट; वहीँ पर बेचता था. दस लोगों का परिवार, सात बेटी, एक बेटा और खुद मियां –बीवी ! जीवन जीने के लिए जीतोड़ मेहनत करता था असलम ! बस अपनेबेटे से हमेशा परेशान रहता था l

मैंने पूछा- और असलम मियां , सब खैरियत है ? इस महामारी में अधिक परेशानी तो नही हुई ? वह बोला – ‘मुझसे भी अधिक कोई परेशान होगा इस दुनिया में दिशव बाबु ! अर्जी देकर , मिन्नत मांगक्रर , हमेशा हाथ उठाकर, खुदा से एक बेटा पाया लेकिन हाय रे फूटी किस्मत, लड़का पाजी निकल गया !

क्या कह रहे हो मियां ! सादिक तो अभी चौदह साल का है , यदि स्कूल में नाम लिखवाया होता तो वह ज्यादा से ज्यादा नौवीं कक्षा में होता ! और तुम कह रहे हो की परेशान करता हैl यह बात हजम नही हुई ?

बाबु आप को क्या पता ? असलम माथा रगड़ते हुए बोला – हाथ उठा कर खुदा से एक बेटा पाया तो खुदा को शुक्रिया कहा और सात दिन पर सरकारी कोटा से, इस महामारी में पांच किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से पचास किलो गेहूं उठा कर लाता हूँ, तो भाजपा को शुक्रिया ना कहूँ ? क्या मुंह लेकर जायूँगा खुदा के घर ? आप ही बता दो ?

मैं तो हैरान हो गया असलम की बात सुनकर, भला बेटे की बात में ये भाजपा दल कहाँ से आ गयी? सरकार का तो काम ही है विपति काल में जनता की देखभाल करना ,लेकिन सादिक को लेकर असलम की परेशानी व्यक्तिगत ना को कर सर्वजनिक था l कौतूहलता से पूछा – मियां, ये गोल गोल घुमाना बंद करो l साफ़ साफ़ कहो तो जाने आखिर माजरा क्या है ?

साफ़ साफ़ ही तो कहा है, “असलम बोल उठा”, – 2014 से पहले राशन कार्ड था पर राशन नही था और उसके बाद जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं स्वास्थ कार्ड भी है , बैंक खता भी है और राशन कार्ड के साथ राशन भी, लेकिन यह पाजी दिन-रात भाजपा सरकार को गाली देता रहता है l हाल ही में किसान बिल के विरोध में कांग्रेसी नेताओं के साथ मिलकर मधुबनी-शहर में इसने चक्का जाम किया था l मैंने डांटा तो मुझे ही आँख दिखाने लगा लेकिन एकबार भी नही सोचा की जिस अनाज को बेचकर दोस्तों के साथ दिन–रात घूमता फिरता है वह अनाज देनेवाला वर्तमान सरकार ही है l आप मानोगे नही बाबु , गाँव कम आते हो , मुझ पर भरोसा नही तो घर घर में जाकर पूछ लेना , हर किसी के घर में दो दो कूइंटल चावल और गेहूं दिख जायेगा l

अच्छा ! तो तुम ये कह रहे हो की सादिक भी तुम्हारी तरह भाजपा के पक्ष में बोले l किन्तु उसके विरोध में मैं ऐसा कोई कारण नही देखता जिस से तुम इतना परेशान हो l अरे, विपति काल में तो हरेक सरकार की जिमेदारी है , ये तो कोई बात नही हूई असलम ? मैं भी भाजपा निति का समर्थक हूँ, लेकिन तुम्हारी ये बात बेढंगी है l

आपने तो कमाल कर दिया ? विपति काल ! असलम हाथ नाचते हुए मुझ पर तंज कसने की मुद्रा में बोला – जब मनमोहन सिंह जी देश के प्रधानमंत्री थे और उन्होंने कहा था – “पैसे पेड़ पर नहीं उगते” उस काल को कैसे देखते हैं आप ? विपति काल या सामान्य काल दिशव बाबु ?

मतलब ? मैंने अकचाकते हुए पूछा l

मतलब ये कि, क्या इस वैश्विक महामारी के वावजूद भी भाजपा सरकार ने कभी ये कहा की अब पैसे नही हैं या पैसे पेड़ पर नही उगते ? बोलिए ना ? चुप क्यों हैं ?

नहीं ऐसा तो नही कहा है l मैंने दो टूक में उतर दिया !

तो फिर ? फिर किस बात के लिए विरोध ? जो राशन मैं ला रहा हूँ , और जो राशन कार्ड है उसे मुझे फिर फाड़ देना चाहिए ! क्योंकि अब तो सरकार अनाज किसानो से खरीदेगी नही ! है ना दिशव बाबु ! किसान बील पर यही जाल बुन कर तो भोले भाले लोगों को कांग्रेस भड़का रही है और यदि ये बील किसानों के हित में नही तो फिर क्या फायदा रख कर ? राशन वितरण प्रणाली बंद ही समझना बेहतर ?

मै असलम की बात सुनकर हैरान था ! मैं समझ गया था की असलम सही कह रहा है लेकिन सही होने पर भी बेटे का विरोध और वर्ताव देखकर खिन्न और दुखी है ! मैंने उठते हुए कहा – चलता हूँ अब असलम मियां , तुम्हारी बात समझ में आ गयी है , सादिक को समझाते रहना ,क्या पता बात समझ में आ जाये !

इतनी देर में पहली बार जोर से हंसा था असलम , ठहाका लगाते हुए बोला – आज चिकेन खाते समय आप भी अपने आप को कांग्रेस समझियेगा दिशव बाबु ?

मै समझा नही ? क्या कांग्रेस ?

अरे, आपने मुझे पैसा दिया और मैंने इतने मुर्गियों में से किसी एक को पकड़ कर हालाल कर दी l मेरे पास पैसा और अब आप के पास बोटी ,मसाला, चिकेन का स्वाद ! ठीक इसी तरह कांग्रेस के लिए सुबह सुबह हमलोग बांग देनेवाला मुर्गा ,पैसा लुटानेवाला कांग्रेस, हलाल करवानेवाला कांग्रेस और स्वाद लेने वाला भी कांग्रेस ! यह बोल कर असलम जोर जोर से हंसने लगा !

मै रास्ते भर यही सोचता रहा की असलम की तर्कशक्ति कितना जहीन है l बात तो सही है l कांगेस ने इस देश में सबसे ज्यादा दोहन तो मुसलमानों का ही किया है l सत्तर सालों में सत्ता के लिए सिर्फ हलाल वह भी मजहब की तुष्टिकरन कर के,कभी टोपी पहनकर तो कभी इफ्तार पार्टी कर के? और परिणाम में सिर्फ “गरीबी और लाचारी ? असलम ने ठीक ही कहा – असली चिकेन मास्टर और चिकेन का मसाला बेचने वाला तो कांग्रेस है l असलम तो नकली है , नकली !

_दिशवWrites

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