भारतीय शौर्य गाथा में पृथ्वीराज चौहान का नाम वीरों के सीने में साहस के तौर पर दौड़ता है । प्रथम युद्ध में सन 1191 में मुस्लिम शासक सुल्तान मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने बार बार युद्ध करके पृथ्वीराज चौहान को हराना चाहा पर ऐसा ना हो पाया… पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में परास्त किया और दरियादिली दिखाते हुए कई बार माफ भी किया और छोड़ दिया पर अठारहवीं बार मुहम्मद गौरी ने जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में मात दी और बंदी बना कर अपने साथ ले गया। पृथ्वीराज चौहान और चन्द्रवरदाई दोनों ही बन्दी बना लिए गए और सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आखें गर्म सलाखों से फोड दी गई।
मोहम्मद गौरी ने चन्द्रवरदाई के द्वारा पृथ्वीराज चौहान की आखिरी इच्छा पूछने को कहा… क्योंकि चन्द्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान के करीब थे. पृथ्वीराज चौहान में शब्दभेदी बाण छोड़ने के गुण भरे पड़े थे. ये जानकारी मोहम्मद गोरी तक पहुंचाई गई जिसके बाद उन्होंने कला प्रदर्शन के लिए मंजूरी भी दे दी।
जहां पर पृथ्वीराज चौहान अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले थे वहीं पर मौहम्मद गौरी भी मौजूद थे. गौरी को मारने की योजना चन्द्रवरदाई के साथ मिलकर पृथ्वीराज चौहान ने पहली ही बना ली थी. जैसे ही महफिल शुरू होने वाली थी चन्द्रवरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पक्तिं कही…
‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान’
ये दोहा चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा था. जैसे ही इस दोहे को सुनकर मोहम्मद गोरी ने ‘शाब्बास’ बोला. वैसे हीं अपनी दोनों आंखों से अंधे हो चुके पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला.
वहीं दुखद ये हुआ कि जैसे ही मोहम्मद गोरी मारा गया उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे की हत्या कर दी. इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया. वहीं जब पृथ्वीराज के मरने की खबर संयोगिता ने सुनी तो उसने भी अपने प्राण ले लिए।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.