डॉक्टरों को धरती पर भगवान का दर्जा दिया गया है. कुछ ऐसी ही शख्सियत थी डॉक्टर केके अग्रवाल की, जो अब हमारे बीच नहीं रहे. कोविड-19 महामारी के दौर में अपने जानकारी भरे अनेक वीडियो से लोगों को जागरूक करने वाले मशहूर और पद्म श्री से सम्मानित जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. के के अग्रवाल का कोरोना वायरस के कारण सोमवार रात उनका निधन हो गया. 62 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांसे ली. उन्हें संक्रमित पाए जाने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स (AIIMS) में भर्ती कराया गया था. वे पिछले सप्ताह से वेंटिलेटर पर थे. के के अग्रवाल ने देश को न सिर्फ कोरोना को लेकर जागरूक किया बल्कि खुद वैक्सीनेशन करवाकर देश की जनता को प्रेरित भी किया. बताया जाता है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद उन्होंने टीका लगवाया.
अस्पताल में भर्ती होने से पहले तक उन्होंने अपने डॉक्टर होने का फर्ज निभाते हुए अपने कर्तव्यों को पूरा किया। वो लगातार ऑनलाइन मरीजों की परेशानियों को सुलझा रहे थे। अस्पताल में जब उनके मुंह पर ऑक्सीजन पाइप लगी हुई थी फिर भी मरीजों को सलाह दे रहे थे। अग्रवाल अपने प्रोफेशन में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए मशहूर थे। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के जरिए उन्होंने हजारों लोगों की मदद की। ‘जुगाड़ू OPD’ का कॉन्सेप्ट उन्होंने दिया था।
अपने यूट्यूब चैनल पर डॉ. अग्रवाल लगातार कोरोना संक्रमण के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ लोगों को इस संकट से निकलने में मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि द शो मस्ट गो ऑन। साथ ही उन्होंने डॉक्टरों से निवेदन किया था कि 100-100 मरीजों को जूम(ZOOM) पर एक साथ देख लें। इसके जरिये आप 15 मिनट में 100 लोगों को समझा सकते हैं। हालात के अनुसार आप अपने ओपीडी को ‘जुगाड़ू ओपीडी’ में बदल दें।
केके अग्रवाल को भारत के चिकित्सक समुदाय के प्रमुख चेहरों में गिना जाता है. अग्रवाल के साथ करीब 35 साल तक काम करने वाले आईएमए के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ विनय अग्रवाल ने कहा, ‘‘वह चिकित्सा कार्यकर्ता थे, जिन्होंने हर दिन 18 घंटे काम किया और पिछले 16 महीने में तो उन्होंने वायरस के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जिस तरह काम किया, वह काबिले तारीफ है.’’
वह डॉ बी सी रॉय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए थे. हाथ से सीपीआर देने की जीवनरक्षक तकनीक के बारे में अधिकतम लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए अग्रवाल का नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में दर्ज हुआ था.
केके अग्रवाल की जैसा शख्सियत थी वाकई समाज को उन जैसे डॉक्टरों की बहुत जरूरत थी, करोना काल में जिस तरह से डॉक्टर केके अग्रवाल ने अपना योगदान दिया है उसके लिए संपूर्ण भारतवर्ष उनका सदैव ऋणी रहेगा . वास्तव में वे एक डॉक्टर के साथ मानवता की पराकाष्ठा थे।# कोई लुटना नहीं चाहिए और कोई मरना भी नहीं चाहिए# कोरोना संक्रमण काल में उनके द्वारा चलाई गई इस मुहिम से ना जाने कितने लोग उनके मार्गदर्शन से अपने प्राणों को बचाने में कामयाब हुए हैं. वाकई समाज के एक सच्चे सेवक ने दुनिया को अलविदा कर दिया. लेकिन करोड़ों लोगों को उन्होंने जो प्रेरणा दी है वो किसी मिसाल से कम नहीं है, कहते हैं उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि जो भी उनसे मिलता है बस उनका होकर रह जाता था . कहते हैं वे दूसरों की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते थे. कई ऐसी बड़ी हस्तियां हैं जिन्होंने उनके जाने पर उनके साथ बिताए हुए पलों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी है.
डॉ. के के अग्रवाल – एक दोस्त चला गया !!”
मैं एम्बुलेंस भेज रहा हूँ।अपनी मदर इन लॉ को तुरंत मूलचंद लेकर आ।” फोन पर दूसरी तरफ डॉ केके थे। शाम का वक्त था। मैं सफदरजंग अस्पताल में मिंटी की मम्मी यानि अपनी सास के सिरहाने खड़ा था। वे बेहोश थीं। हमें लगा था कि ये बेहोशी कमजोरी के कारण है। बात 27 जून 1993 की है। हमें मम्मी की तबियत की गंभीरता का कोई अंदाजा नहीं था। मैंने तो यूँ ही उनकी तबियत बताने के लिए केके को फोन किया था। दो – तीन सवाल पूछने के बाद ही केके को पता चल गया कि उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ है। मैंने उनसे कहा कि मैं लेकर आता हूँ। कुछ पल बाद ही केके फिर फोन पर थे। “तेरे पास टाइम नहीं है। एम्बुलेंस में वक्त लगेगा। ऐसा करो उन्हें अपनी कार में ही लेकर बिना एक मिनट गवाए आ जाओ। बाकी मैं देख लूँगा।” हम तुरंत मूलचंद अस्पताल पहुंचे।केके ने न्यूरो सर्जन को बुला रखा था। जिसे हम बेहोशी समझ रहे थे वो दरअसल ‘कोमा’ की स्थिति थी। रात में ही ऑपरेशन शुरू हुआ। कई घंटे के बाद रात तीसरे पहर सर्जरी ख़तम हुई। कुछ दिन बाद मम्मी सकुशल घर लौंटी। ऑपरेशन की सारी रात केके वहीँ थे। घर नहीं गए। रूटीन के मुताबिक सुबह के अपने वार्ड राउंड करने के बाद ही शायद थोड़ा आराम किया होगा। डा धर ने ऑपरेशन किया था। पर हमारे लिए मम्मी की जान डॉ केके ने बचाई थी।सिर्फ मम्मी ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं मेरी अपनी और अनगिनत जानकारों की हैं, जब केके ने बिना किसी स्वार्थ के मदद की थी। हमारे पिताजी, हमारे बच्चों और खुद मेरे लिए भी केके देवदूत से कम नहीं थे। मेरा और डॉ के के का रिश्ता कोई 35 साल पुराना था। 80 के दशक में मैंने पत्रकारिता शुरू की थी। डॉक्टर के तौर पर केके का व्यावसायिक जीवन भी शुरूआती दौर में था। उसी दौरान जब मैं दूरदर्शन में संवाददाता था तो एक दोस्त की मार्फ़त में उनका इंटरव्यू करने गया था। उसके बाद हमारी वो मामूली जान पहचान दोस्ती में बदल गयी। वे मूलचंद अस्पताल में डॉ चौपड़ा की टीम में थे। उसके बाद तो किसी को भी कैसी मेडिकल मदद की ज़रुरत होती थी, मेरा फोन उन्हें ही जाता था। और ऐसा कभी नहीं हुआ कि केके उपलब्ध न हों। 1996 में जब मुझे ब्लैकआउट हुआ तो मेरे साथी मुझे सीधे केके के पास लेकर गए। तबतक मैं ज़ी टीवी में एक्सीक्यूटिव प्रोड्यूसर बन चुका था। केके की वो बात मुझे अब तक याद है। जांच के बाद मैंने जब उनसे पूछा कि मुझे आगे क्या करना है। “तुम्हें कुछ नहीं करना है। बस मस्त रहना है। आज से ये मेरी प्रॉब्लम है।”दूसरों की प्रॉब्लम को अपनी समस्या बनाकर हल करने के लिए जी जान लगाना, यही थे डॉ केके। एक कुशल चिकित्सक, बड़ा सोचने वाला, हर समय नया करने/सीखने को तत्पर, हमदर्द, दोस्तों का दोस्त और ज़िंदादिल इंसान आज चला गया। अब मुझे नहीं पता कि आधी रात को भी जब किसी को भी ज़रुरत होगी तो किसे फोन करूंगा??
Dr K K AggarwalHeart Care Foundation of India#drkkaggarwal
उमेश उपाध्याय जी के फेसबुक वॉल से
आईएमए ने अग्रवाल के निधन को ‘‘अप्रत्याशित और गहरा नुकसान’’ बताया है।
आईएमए ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘डॉ. के. के. अग्रवाल बहुत बड़ी शख्सियत थे और जन शिक्षा और जागरूकता के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया। महामारी के दौरान भी हम सबका मार्गदर्शन करते हुए उन्होंने लाखों लोगों की सेवा की। उनके जाने से आईएमए को अपूरणीय क्षति हुई है।’’
केके अग्रवाल का जन्म पांच सितंबर 1958 में दिल्ली में हुआ था। अग्रवाल ने नागपुर विश्वविद्यालय के तहत एमजीआईएमएस, सेवाग्राम से एमबीबीएस की पढ़ाई की थी।जहां उन्हें 1979 में सर्वश्रेष्ठ स्नातक छात्र घोषित किया गया था.
डॉ. के के अग्रवाल अपने प्रोफेशन की वजह से तो मशहूर थे ही। साथ ही वह अपनी नेकदिली के लिए भी जाने जाते थे। कोरोना काल के दौरान उनकी नेकदिली सबने देखी। उन्होंने हजारों लोगों की संकट के दौरान मदद की। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों का उन्होंने मुफ्त इलाज किया। कोरोना संकट काल में वह एक वॉरियर्स के तौर पर हमेशा डटे रहे, लेकिन दुखद है कि उसी कोरोना से वह जिंदगी की जंग हार गए।
ईश्वर डॉक्टर साहब की आत्मा को शांति प्रदान करें
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