देश का एक बड़ा बौद्धिक तबका अक्सर यह मांग करता रहा है कि खिलाफत आंदोलन को भारत की पाठ्य पुस्तकों में राजनीतिक आंदोलन के तौर पर ना पढ़ाया जाए, यह एक स्वतंत्रता आंदोलन नहीं था बल्कि यह एक मजहबी आंदोलन था जिसे मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए शुरू किया गया था। 

खिलाफत movement के 100 साल पूरे होने पर संघ लगातार मांग कर रहा है कि इसे आजादी का आंदोलन न बताकर ‘मजहबी आंदोलन’ कहा जाए… इस मुद्दे पर RSS के वरिष्ठ स्वयंसेवक एवं प्रज्ञा प्रवाह संयोजक जे.नन्दकुमार से बातचीत…ये सुनियोजित तरीके से मोपला में किया गया नरसंहार है..10 हजार से ज्यादा हिंदुओ को मारा गया।

कांग्रेस ने इसे आजादी आंदोलन और कम्युनिस्ट गैंग ने इसे जमींदार के खिलाफ विद्रोह बताया। अम्बेडकर तक ने इसे हिंदू सामूहिक नरसंहार बताया था। केरल में खिलाफत से जुड़े लोग सरकारी पेंशन पा रहे हैं, इसपर रोक हो। मोपला को समझने में महात्मा गांधी से भूल हुई। नेहरू को satisfy करने के लिए इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया। हम इतिहास की सही व्याख्या कर रहे हैंकांग्रेस ने अबतक ‘तुष्टिकरण’ के चलते ही इसे आजादी आंदोलन बताया। अब वक्त आ गया है कि इन कलंकों की सच्चाई देश के सामने लायी जाए।

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