यूपी के बाद बिहार से भी मुसलमान ‘आउट’
तो आखिर बिहार भी यूपी और केंद्र की राह पर चल पड़ा..सत्तारूढ़ पार्टी में एक भी विधायक मुसलमान नहीं है..यूपी में तो फिर भी मोहसिन रज़ा और केंद्र में मुख्तार अब्बास नकवी को मंत्री पद देकर ‘सेक्युलरवाद’ को ज़िंदा रखा गया है लेकिन बिहार में फिलहाल कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है..और मुसलमान जिस तरह और जिन राजनीतिक दलों के पीछे गोलबंद हो रहे हैं..उसे देखते हुए लगता नहीं कि बिहार में इस बार किसी मुसलमान को मंत्री बनाया जाएगा
तो अब सवाल ये है कि दुनिया के कई देशों से ज्यादा आबादी वाले मुसलमानों के इस तरह राजनीतिक हाशिये पर जाने का जिम्मेदार कौन है ? बीजेपी या फिर खुद मुसलमान ? सवाल जितना सीधा है..जवाब उतना सिम्पल नहीं है..ये सही है कि बीजेपी पारम्परिक तौर पर मुसलमानों को उतने टिकट नहीं देती..जितने दूसरे राजनीतिक दल..लेकिन क्या इसमें गलती बीजेपी की है या मुसलमानों की भी है ? रामपुर और किशनगंज जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज़ हुसैन चुनाव हार जाते हैं..ऐसे में अगर बीजेपी मुसलमानों पर भरोसा करे भी तो कैसे ? वो भी तब जबकि नकवी और हुसैन को बीजेपी ने इनकी हैसियत से ज्यादा दिया है..सिर्फ मुसलमान होने की वजह से सिकंदर बख्त से लेकर नजमा हेपतुल्ला, मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन को मंत्री बनाती है..यूपी में मोहसिन रज़ा बीजेपी को कितने वोट दिलाते हैं..पता नहीं..फिर भी मंत्री हैं..जफर इस्लाम को भी बीजेपी ने राज्यसभा सांसद बना दिया है..अगर इसके बावजूद बीजेपी को मुसलमानों के वोट नहीं मिलेंगे तो फिर बीजेपी अपनी सरकार में मुसलमानों को क्यों और कैसे शामिल करेगी ?
बीजेपी छोड़िए…इस बार बिहार में जेडीयू ने 11 मुसलमान उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था..एक भी नहीं जीता…ऐसे में अगर नीतीश कुमार का दिल भी मुसलमानों से उचट गया है तो हैरानी कैसी ?
अब आते हैं मुसलमानों पर…तथाकथित सेकुलर पार्टियां भले ही मुस्लिम वोट बैंक की नाराज़गी के डर से इस बात को खुलकर नहीं कर रही हों लेकिन उनके अंदर भी मुसलमानों को लेकर ये मैसेज चला गया है कि ऐसा कोई सगा नहीं..जिसे मुस्लिम वोट बैंक ने ठगा नहीं..ज़रा सोचकर देखिए लालू की पार्टी आरजेडी और कठमुल्लाओं के दबाव शाहबानों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने वाली कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश करने के लिए क्या नहीं किया ? हिंदुओं को गाली दी..तुष्टिकरण की चरमसीमा पार की..लेकिन बदले में क्या मिला ? बिहार के सीमांचल इलाके की मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की पार्टी को वोट मिले..AIMIM के 5 विधायक जीत गए..5 विधायक समझ रहे हैं..बहुत होते हैं..दिल्ली में कांग्रेस पिछले 2 विधानसभा चुनावों से ज़ीरो पर अटकी है..जबकि बीजेपी भी एक बार 3 सीट तक आ गई थी..जबकि दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें और तीनों नगर निगम बीजेपी के कब्जे में हैं..इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ओवैसी का बिहार में 5 विधानसभा सीटें जीतना कितनी बड़ी बात है ? अब आप ही बताइये कि ओवैसी की पार्टी ने बिहार में ऐसा क्या काम किया था..जिसके दम पर वो 5 सीटों की हकदार थी..बिहार के मुसलमानों के लिए आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन ज्यादा काम करता या ओवैसी की पार्टी ? याद रखिए जब आरजेडी सरकार में शामिल थी तब अब्दुल बारी सिद्दीकी को वित्त मंत्री बनाया था..जो काफी अहम मंत्रालय होता है..आरजेडी में भी अब्दुल बारी सिद्दीकी का अहम रोल है..लेकिन इस बार चुनाव में उन्हें क्या मिला ? ठेंगा…
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