कल ५ दिसंबर को फिर एक बार किसानो से बातचीत हुई !

कितनी भी बातचीत कर लो, कितना भी समझा लो, ये नकली किसान नेताओं की जायज़ नाज़ायज़ मांगे भी मान लो। फिर भी ये लोग हिंसा करना चाहेंगे ही, सारी फंडिंग और तैयारी इसी हिंसा के हो रही है। बिहार से भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवार श्री सुशिल मोदी ने भी कहा था की, “इस आंदोलन में १०० छोटे बड़े गैर किसान संगठन सम्मलित है !”

दिल्ली दंगे की तरह गोली भी खुद ही चलाएंगे और जान भी अपनों की लेंगे, विपक्ष को किसी भी कीमत पर मोदीजी को किसान विरोधी सिद्ध करना है। इसलिए एक बार फिर से ये सारे गिद्ध इकट्ठे हैं, इन्हें लाशें गिरने का इंतज़ार है। ये अपनी सत्ता के लिए अपनों को भी मारने से शरमाते नहीं है।

इनमें अपनी मौजूदगी ढूंढने वाली कांग्रेस है, आतंक की सहयोगी आप है, अकाली दल है, वामपंथी है, अचानक बने हुए किसान योगेंद्र यादव है, हर जगह अपनी डफली लेकर पहुंचनी वाली JNU गैंग है, खालिस्तानी हैं, रावण है, पप्पू यादव है, शाहीनबाग वाली दिहाड़ी दादी है, इनमें बहुत से सिखों का वेश धरे मुसलमान हैं, हाथरस वाली नक्सली भाभी है, तलवारें है, डंडे हैं, बंदूकें भी होंगी, किरपाण, बरछा है। इनके पास मोटे गद्दे हैं, सफ़ेद रजाइयां और ढेरों कम्बल भी हैं, अनवरत चाय की चुस्कियां हैं, चौबीस घंटे तर माल वाले लंगर हैं, डिज़ाइनर कपडे हैं, डिज़ाइनर टोपियां हैं। अब तो कनाडा के प्रधानमंत्री भी खालिस्तानियों के दबाव में भारत का विरोध कर रहे है – ब्रिटेन के ३५ सांसद भी खालिस्तानी समर्थक बने हुए है !!!

आतंक को पालने वाली आप सरकार भी अपने सरकारी डॉक्टरों को उनकी “सेवा” में भेज दिया है। फिर केंद्र सरकार से कोरोना से लड़ने के लिए डॉक्टर मांगते है। सरकार से इन किसानों की तरफ से पानी और ठण्ड में सुरक्षित रहने के लिए टैंट भी मांग लिए ! बेशर्मी की भी हद होती है !!!

बहुतों के हाथों में महंगे वाले मोबाइल हैं, महंगी लक्सुरियस गाडियाँ हैं, 6 महीने का राशन हैं, 1000 से ज्यादा ट्रेक्टर हैं, लक्ज़री बसें है। कनाडा के खालिस्तानी संगठन ने कई डॉलर की मदद की घोषणा कर दी है। ये लोग इतनी बड़ी तैयारी करके आये हैं, निहंगों की टोलियां पँजाब से निकल चुकी हैं और इन्होंने तो दिल्ली को घेर भी लिया है और बिना हिंसा के और बिना लाशें गिराए वापस चले जाएंगे ? ये हो नहीं सकता।

ये सभी देशद्रोही जब इस मुद्दे को पूरा निचोड़ लेंगे तब अचानक ये मुद्दा गधे के सींग की तरह गायब हो जाएगा। फिर नया मुद्दा प्रकट होगा, वैसे भी किसान आंदोलन की आड़ में CAA और कश्मीर में ३७० के हटाने का विरोध हो रहा है ! रंगभूमि बदल जायेगी पर कलाकार वही होंगे, फिर अवार्ड वापिसी होगी, वहां सभी फिर इक्कठे होंगे, फिर देश को बंधक बनाएंगे।

ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा। सरकार अब कोई ठोस कदम उठाएगी ऐसी अपेक्षा है !

जय हिन्द

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