पाकिस्तान के कब्जे वाले एक अभागे शहर मीरपुर की कहानी भारत विभाजन की वह कहानी है जिस पर मानवता भी शर्म खा जाय लेकिन कथित आजाद भारत की तात्कालिक सत्ताई राजनीति को शर्म नहीं आयी। तारीख 25 नवंबर 1947 भारत-पाक बंटवारे के समय यानी आज से 73 वर्ष पहले जम्मू कश्मीर के मीरपुर जिले पर पाकिस्तानी सेना ने हमला कर कत्लेआम मचाया था और वहां रहने वाले लगभग 30 हजार निहत्थे हिंदू और सिखों का नरसंहार कर दिया। जानिए कि सन 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हो रहा था तब मीरपुर भी तत्कालीन कश्मीर रियासत का एक हिस्सा था।

इन हजारों हिन्दू सिखों का कत्लेआम हुआ क्यों? यह स्थिति इसलिए हुई क्योंकि उस समय की भारत सरकार और रियासत जम्मू व कश्मीर सरकार के बीच राजनैतिक मतभेद के कारण फौजों को मीरपुर से दूर रखा गया था। जबकि 26 अक्तूबर, 1947 को जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था। अभागा मीरपुर इसी जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी सीमा पर बसा हिन्दू-सिख बहुल एक शहर ही तो था जो अपने भारत में था। यहां के हिन्दुओं, सिक्खों को लगा कि अब जम्मू कश्मीर तो भारत का अभिन्न हिस्सा हो गया है, लिहाजा अब शहर छोड़ने या पलायन करने की जरूरत नहीं है। बंटवारे की आग में झुलसे, पाकिस्तान के बाकी इलाकों के अपने घरों से भगाए 10,000 हिन्दू बेफिक्र होकर यहां आकर बस गए थे। उन्हें क्या पता था कि इस्लामी जेहाद के रस में डूबी कौम और तात्कालिक स्वार्थी नपुंसक राजनीतिक सत्ता उनका मीरपुर में ही नरसंहार कर देगी।

मीरपुर शहर के अंदर शुरू में जम्मू-सरकार के केवल 800 सिपाही थे, जिन में लगभग आधे जो मुसलमान थे… अपनी बन्दूकों-कारतूसों के साथ पाकिस्तानी हमलावरों के साथ जा मिले। बाकी लगभग 400 सिपाहियों ने अपने साथ बचे असलहों के साथ चारों ओर से घिरे हुए मीरपुर नगर की चौकसी जारी रखी। पाकिस्तान से जा मिले उन्हीं आधे मुसलमान सिपाहियों ने पाकिस्तानी सेना को मीरपुर की भौगोलिक स्थिति, रास्ते बताए और हमले में मदत की। फिर भी मीरपुर के हजारों हिन्दू-सिख युवाओं ने रक्षा चौकियों पर सिपाहियों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई में साथ दिया। 6,10 तथा 11 नवंबर 1947 को दुश्मनों द्वारा किए गए हमलों का डटकर मुकाबला करते रहे। क्योंकि उन्हें एक जीवन की उम्मीद थी, जो अपने मीरपुर में डटे रहने और पाकिस्तान बाकी इलाकों से मीरपुर सिर्फ इसलिए लेकर आई थी कि वे यहां किसी भय के बिना बचा हुआ जीवन गुजार सकेंगे। लेकिन पाकिस्तानी सेना के भारी तादाद के सामने और नेहरू-अब्दुल्ला की सरकारों से कोई मदद न मिलने से वो इस क्रूर नरसंहार को होने से रोक नहीं सके। लगभग 30 हजार हिन्दू-सिखों की हत्या के साथ ही लगभग 3500 नागरिक जो कि गंभीर रूप से घायल हो गए थे… उनको पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। वहीं करीब 3000 लोग मरने जैसी हालत में ठोकरें खाते हुए सात दिन भूखे और प्यासे पैदल चलकर जम्मू पहुंचे।

यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने मीरपुर के रहने वाले हिंदुओं व सिखों को चेतावनी दी थी कि यदि बचना चाहते हो तो अपने घर पर सफेद झंडा आत्मसमर्पण के चिन्ह के रूप में लगा देना। लेकिन मीरपुर के निवासी हिंदुओं और सिखों ने अपने घरों पर लाल झंडा फहरा कर यह संदेश दिया कि हम आत्मसमर्पण नहीं बल्कि लड़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे। मीरपुर पर आक्रमण के लिए पाकिस्तान सरकार ने कबायलियों और पठानों के साथ एक समझौता किया था जिसका नाम था “ज़ेन और जार” समझौता, जिसका मतलब था मीरपुर पर कब्जा करने के बाद वहां रहने वाले हिंदुओं व सिखों की सारी संपत्ति जमीन धन दौलत पाकिस्तान सरकार की होगी और वहां रहने वाली सभी हिंदू व सिख महिलाएं पठानों की सम्पत्ति होंगीं।

इधर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस सरकार ने मीरपुर के निवासियों की सहायता करने से मना कर दिया। कबायलियों और पठानों द्वारा हजारों हिंदू और सिख बच्चियों, लड़कियों औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाने के बाद उन्हें उठा उठाकर पाकिस्तान ले जाने दिया। पाकिस्तानियों और कबायली पठानों से बचने के लिए मीरपुर में कई हिन्दू व सिख महिलाओं ने आत्महत्या तक कर ली थी।

पण्डित नेहरू और कांग्रेस सरकार यदि चाहते तो मीरपुर को पाकिस्तानीयों और कबायलियों से बचाने के लिए और वहां के नागरिकों की रक्षा के लिए इंडियन आर्मी को भेज सकते थे जो उस समय मीरपुर से कुछ ही मील दूर झांगर में तैनात थी, लेकिन कबाइलियों की शक्ल में पाकिस्तानी सेना के हत्यारों द्वारा शेख अब्दुला और पण्डित नेहरू की नियोजित राजनीतिक नीतियों ने लगभग 30 हजार हिन्दू सिखों की लाशों के मरघट बना दिया मीरपुर को। 35 हजार के लगभग को पाकिस्तानी जेलों में जाने दिया और लगभग 30 हजार को जम्मू विस्थापित होने पर मजबूर किया। इस तरह मीरपुर नरसंघार में मारे गए और पीड़ित हिन्दू सिक्खों की संख्या लगभग 1 लाख होती है।

इस तरह भारत के इस शहर मीरपुर की सम्पूर्ण पुरुष आबादी को पाकिस्तानियों द्वारा 1 दिन में कत्ल कर दिया गया, उस शहर की सभी महिलाओं को अगवा कर लिया गया। महज एक दिन के अंदर ही पूरा मीरपुर कब्रिस्तान में बदल गया, सभी हिंदू व सिख पुरुषों को मार दिया गया, मर्दों के सामने उनकी बेटियों बहुओं बहनों माओं, पत्नियों का बलात्कार किया गया, और फिर उन महिलाओं के सामने ही उनके आदमियों को मार दिया गया, इसके बाद सभी बच्चियों लड़कियों औरतों को उठाकर पाकिस्तान ले जाया गया केवल कुछ वृद्ध महिलाओं को जीवित छोड़ा गया।

आज देश में एक राजनैतिक सत्ता का विरोध करने के लिए जिस तरह के धार्मिक समीकरणों को बदलने हुए हिन्दू-सिख अलगाव की खतरनाक साजिशें की जा रही हैं ऐसे समय पर याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि आज से महज 74 सालों पहले सिखों और हिंदुओं ने इस्लामी जेहाद और तात्कालिक कांग्रेसी सत्ताओं के गठजोड़ से एक अभागा मीरपुर जनसंहार भी देखा है, इस्लामी आतंकियों द्वारा सिख गुरुओं, गुरु पुत्रों की नृशंस हत्याओं के इतिहास और 1984 में राजनीतिक नरसंहार के समय कटते केश और गले में धू धू कर जलते टायरों की क्रूर याद के साथ।

जबकि आज देश की सांस्कृतिक विचारधारा, राजनैतिक सत्ता, उसका मुखिया सदन से लेकर सड़कों तक इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि धारा 370 की समाप्ति के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले भारत के अभिन्न अंग कश्मीर की वापसी उनका अगला बाकी काम है। कल ही प्रधानमंत्री कार्यालय के मंत्री कहते हैं कि अब पीओके वापस लेना हमारा अगला एजेंडा है। हजारों हिन्दू-सिखों की हत्या, बलात्कार, विस्थापन वाला वह अभागा मीरपुर भी इसी घर वापसी की जद में आएगा।

ऐसे कैसे भूला जा सकता है इतना कुछ! कैसे पंजाब कांग्रेस का मौजूदा अध्यक्ष पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अपना बड़ा भाई घोषित कर सकता है? क्यों गुरुद्वारों के दरवाजे नमाजों के लिए खोले जाने चाहिए? क्यों चले अफ्तारी गुरु के लँगरों में?

देश तोड़ने वाली आसुरी शक्तियों के जहरीले प्रयासों के इस खतरनाक दौर में देश और इस देश के हिन्दू-सिखों को यह भरोसा और आवाज बुलन्द रखनी होगी कि “न भूलेंगे, न माफ करेंगे”।

25 नवंबर 1947 से महज 74 साल बाद आ रहे 25 नवंबर 2021 की यात्रा में हम मीरपुर को भुगतने वाली कौमें कभी भी उन मुट्ठीभर “कुछ” लोगों में शामिल नहीं हो सकतीं। कह दे कोई जाकर देश के दुश्मनों और साजिशों में शामिल अपने अस्तित्व को देश-समाज तोड़ने में तलाशते राजनैतिक विपक्ष से की “हमसे ये न हो पायेगा”।

अवनीश पी. एन शर्मा

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