तेईस जनवरी संयुक्त भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिवस है… जी एक ऐसी सरकार जो विश्व के कई देशों द्वारा मान्यता प्राप्त थी और 30 दिसंबर, 1943 को नेताजी ने पहली बार स्वतंत्र भारतीय जमीन पर सबसे पहले तिरंगा फहराया था। यह झंडा आजाद हिंद फौज का था। 

कोई आदमी इस बात की महज़ कल्पना करे कि एक व्यक्ति, जो कांग्रेस की नीतियों का विरोध करे, कांग्रेस के सर्वाधिक लोकप्रिय अध्यक्ष होने के बाद भी मोहनदास के अभिमान जनित एवं अनैतिक निर्णयों से दुखी होकर स्वयं का दल प्रारम्भ करे, अंग्रेजों से टक्कर ले, उनकी पुलिस और जासूसों के पूरे गिरोह को चकमा देकर भाग निकले, अफ़ग़ानिस्तान, सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जाए, तानाशाह हिटलर से संधि करे, पनडुब्बी में बैठकर कठिन सफ़र करे, जापान जाए, सैनिकों को एकत्रित कर उन्हें संगठित करे, उनकी सेना बनाए, और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ युद्ध में आ जाए… यह सब काम सामान्य मानव के लिए सम्भव ही नहीं है! 

अंग्रेजों का देश से भागना आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों पर अंग्रेजों द्वारा किए गए दमनकारी अत्याचारों के विरोध में उठ खड़े ब्रिटिश सैनिकों के विद्रोह के कारण ही सम्भव हो सका। अंग्रेजों के देश से जाने में मोहनदास की नीतियों, अहिंसा एवं सत्याग्रह का कोई सीधा प्रमाण नहीं मिलता… यह झूठ इस कारण रचा गया क्योंकि भारत स्वतंत्र होने के बाद भी नेहरू की ग़लत नीतियों के कारण, अनाज से लेकर सुरक्षा इत्यादि सभी चीजों के लिए उन्ही देशों पर निर्भर रहा था जिन्होंने उसे सैंकड़ों वर्षों तक बलपूर्वक पराधीन बनाए रखा था। इसी कारण देश का इतिहास इस प्रकार लिखा गया जिससे अंग्रेज़ी सत्ता के दमनकारी रवैए के स्थान पर सत्य और अहिंसा नामक झूठ रच दिए गए, इसने विश्व के मानस पटल पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों का कोई उल्लेख ही नहीं किया। इसी कारण करोड़ों लोगों की हत्या करने वाले चर्चिल को इतिहास में कोई तानाशाह नहीं कहता और हम भारतीय भी हिटलर को ही तानाशाह कहते हैं, जिसने भारत का कोई नुक़सान नहीं किया उल्टे सैनिकों को ही लौटाया। 

इन सभी घटनाओं से सिद्ध होता है कि नेताजी सुभाष बोस महामानव थे लेकिन अंग्रेज़ी सत्ता के प्रति युद्ध छेड़ने और ब्रिटिश सरकार के शुभचिंतकों को सत्ता हस्तांतरित होने के कारण नेताजी को इतिहास के पन्नों से मिटाने की साज़िश कई बार हुई। 

देश आज भी अपने नेताजी की मृत्यु से जुड़े हुए दस्तावेज़ों, इंटेलिजेन्स फ़ाइल्ज़ को डी-क्लैसिफ़ाई करने के इंतज़ार में है…  देश आज भी प्रतीक्षा में है… देखते हैं न्याय कब होता है! प्रतीक्षा है… 

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