एक सैनिक जब सरहद पर बर्फ के पहाड़ों से लेकर दुर्गम जंगलों और महासागरों की गहराई तक में अडिग होकर देश की देश के करोड़ों , परिवारों की रक्षा कर रहा होता है तो उसके मन में इतना विश्वास तो जरूर होता है कि इसी सरहद के अंदर बसे गाँव , कसबे ,शहर में रह रहा उसका परिवार-कम से कम सुरक्षित तो रह ही सकेगा।
लेकिन विडंबना देखिए कि उस सैनिक को बदले में मिलता क्या है ?? निषाद की अवयस्क पुत्री को , साथ के कस्बे का एक लफंदर मुग़ल न सिर्फ अपहरण करता है उसका शोषण करता है और जबरन निकाह करने की कोशिश करता है। फौजी पिता इतना सब होने के बाद भी देश की क़ानून व्यवस्था पर बिश्वास रखते हुए पुलिस और अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है।
और फिर उसके साथ भी वही सब होता है। क़ानून की खामियों का दुरूपयोग करते हुए अपराधी कुछ ही समय बाद जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद पिता ,पुत्री को सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगता है। सार्वजनिक जीवन में सम्मान एक हर रास्ते को बंद करके पूर्व सैनिक और उसके परिवार को तिरस्कार व लज्जा देता -ये समाज , देश , पुलिस व कानों व्यवस्था -सब के सब घोर कृतघ्नता दिखाते हैं।
आखिरकार ,कभी देश की रक्षा के लिए , देश की आन के लिए अस्त्र उठाकर अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले फौजी पिता को विवश होकर अपनी बेटी , इस समाज और कानून के इस अपराधी को खुद ही दण्डित करने को मजबूर होना पड़ता है। विधि द्वारा स्थापित किसी भी राज्य , समाज और देश में पीड़ित का ऐसी स्थिति में पहुँचना सबके लिए सोचनीय और बहुत चिंताजक बात है , बहुत ही गंभीर।
समाज में यौन शोषण , बलात शोषण ,अपहरण -युवतियों महिलाओं और यहाँ तक कि बच्चियों तक के प्रति बढ़ती क्रूरता व् अपराध -की लगातार बढ़ती घटनाओं और फिर अदालतों से न्याय नहीं मिल पाने की बेबसी समाज को अपना बदला खुद लेने के लिए उकसाती है। पूर्व सैनिक भगवत निषाद द्वारा बेटी के शोषण के अपराधी का ऐसा खात्मा -एक नज़ीर , एक नसीहत , एक निर्णय बनाकर सबके सामने खड़ा है।
लेकिन पूर्व सैनिक भाईयों को अभी , ऐसे ही समय पर अपने भाई भगवत निषाद का साथ देना चाहिए , उनके परिवार को सुरक्षा देनी चाहिए और साथ ही भगवत निषाद जी के मुक़दमे की पुरज़ोर पैरवी की जानी चाहिए। यही न्याय की गुहार है ,यही लोगों की माँग है।
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