एक अनुमान के अनुसार भारत में तोड़े गए मंदिरों की संख्या लगभग अस्सी हजार है। छोटे हो या बड़े, जहाँ भी हिन्दुओं की आस्था रही, उन धार्मिक संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया। किन्तु क्या वास्तव में इन मंदिरों को नष्ट किया गया? क्या वास्तव में मुस्लिम आक्रांताओं ने इन मंदिरों को ध्वस्त किया? मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मुस्लिम आक्रांता इतने क्रूर हो सकते हैं। वे तो बेचारे एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में सफेद कबूतर लेकर चलते थे। इतने मंदिरों के नष्ट हो जाने की रहस्यमयी घटना के विषय में जानने की मेरी उत्सुकता बढ़ती गई। मैं कई इतिहासकारों के संपर्क में आया। इतिहासकार क्या, वे तो साक्षात प्रत्यक्षदर्शी प्रतीत होते हैं जिन्होंने मुगलों और अन्य मुस्लिम आक्रांताओं को जन कल्याण के कार्य करते हुए देखा है। इन्ही इतिहासकारों में से एक स्त्री इतिहासकार हैं जो बुजुर्गों के एक प्रसिद्ध संस्थान में इतिहास की शिक्षिका हैं। उन्होंने मेरी उत्सुकता को जाना और उसे समाप्त करने का वचन दिया। मैंने हिन्दू मंदिरों के विलोपन के विषय में उनसे कई प्रश्न किए। उन्होंने बताया कि अधिकांश हिन्दू मंदिर हजारों वर्ष पुराने थे। उन्हें बनाने में सीमेंट एवं लोहे का उपयोग भी नहीं होता था। ऐसे में जब इन मुस्लिम आक्रांताओं के बड़े-बड़े काफिले इन मंदिरों के समीप से होकर जाते थे तो काफिले में सम्मिलित घोड़े और हाथियों की पदचाप से उत्पन्न कम्पन से ये मंदिर गिर जाते थे। ऐसे में कट्टरपंथी हिन्दू समाज इन शासकों को ही दोष देता था। उन्होंने बाहुबली फिल्म का उदाहरण दिया जब भल्लालदेव को राजगद्दी सौंपने के उपरान्त बाहुबली के समर्थन में सैनिक शक्ति प्रदर्शन में अपने पैर जमीन पर पटकते हैं। इससे भयानक कम्पन उत्पन्न होता है जो भल्लालदेव एवं माता शिवगामी के सिंहासन के साथ वहां उपस्थित अतिथियों के आसन को भी हिला देता है। जब भल्लालदेव और शिवगामी के आसन हिल सकते हैं तो मंदिर क्यों नहीं गिर सकते? उनकी बातों में तर्क तो था किन्तु मैं भी जबर प्रश्न कर्ता हूँ तो मैंने पूछ ही लिया कि जब इन मुस्लिम आक्रांताओं ने ये मंदिर नहीं नष्ट किए तो वहां पर मस्जिदें क्यों बना दी गईं? उनका मुखड़ा खिल उठा। उन्होंने कहा कि उन्हें ज्ञात था कि अब मैं यही प्रश्न करूँगा। इस क्रॉस प्रश्न का उत्तर देते हुए महोदया कहती हैं कि मंदिरों के गिरने से उनका मलबा चारों ओर बिखर जाता था जो खतरनाक हो सकता था और हिन्दू ही उस मलबे में सरक कर अपना सिर फुड़वा लेते अतः उस संकट से समाज की रक्षा करने हेतु उस मलबे का उपयोग कर लिया जाता था। अब महोदया बुद्धिमान, सो उन्हें सूझ गया कि अब मैं प्रश्न करूँगा, “इस मलबे से पुनः मंदिर भी तो बनाए जा सकते थे”। इससे पहले कि मैं उनसे यह प्रश्न करता, उनकी कक्षाओं का समय हो चुका था। हालाँकि जिस विश्वविद्यालय में वह अध्यापिका थीं, वहाँ कक्षाओं के लगने की प्रायिकता एक बटा पिचत्तिस थी।

मैं तनिक जिज्ञासु प्रवृत्ति का व्यक्ति हूँ। मेरे मन को संतुष्टि प्राप्त नहीं हो सकी। मैं अपने मन से औरंगजेब की क्यूट छवि नहीं निकाल पा रहा था। मुझे अभी भी कुछ और मुखों से हिन्दू मंदिरों के तोड़े जाने का जस्टिफिकेशन सुनना था। मैं निकल पड़ा कुछ और इतिहासकारों अथवा बुद्धिजीवियों की खोज में, जो मेरी जिज्ञासा का समाधान कर सकें। यह कार्य कठिन नहीं था। वर्तमान समय में इतिहासकारों की भीड़ में एक पत्थर उछाला जाए तो वह पत्थर नीचे आकर किसी न किसी मुगल प्रेमी को ही लगेगा। ऐसे ही एक महान इतिहासकार के सानिध्य का अवसर प्राप्त हुआ। इनकी महानता किस्से भी महान हैं। इनके द्वारा प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर बाबरी विवादित ढांचा के पक्ष के वकील अंतिम तक यही कहते रहे कि अयोध्या में मंदिर के कोई अंश नहीं मिले किन्तु हिंदूवादी सरकार के आश्रय में न्यायालय का अंतिम निर्णय श्रीराम मंदिर के पक्ष में ही आया। इन महानुभाव से मैंने अस्सी हजार हिन्दू मंदिरों के विखंडन का कारण पूछा। उन्होंने मुझे अपने समकक्ष बैठाया और मेरे प्रश्नों के उत्तर देने लगे। उनके अनुसार समय के साथ जनसंख्या बढ़ती जा रही थी। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के निवास स्थान एवं क्रियाकलापों की आवश्यकताएं भी बढ़ती जा रहीं थी। कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता भी प्रभावित हो रही थी। हिन्दुओं ने इस भूमि पर कई विशाल मंदिर बना रखे थे। भारत में शासन करने और हिन्दुओं से कर वसूल करने के कारण इन मुस्लिम आक्रांताओं का यह कर्तव्य था कि वे अपनी प्रजा के सुख एवं उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति का विशेष ध्यान रखें। इसी कर्त्तव्य का पालन करते हुए, हृदय में विशाल शूल रखकर इन मुस्लिम आक्रांताओं ने भूमि को मंदिरों से मुक्त करने का कार्य प्रारम्भ किया। उन्हें ज्ञात था कि आगामी भविष्य में हिन्दुओं की पीढ़ियां उन्हें कट्टरपंथी, जिहादी और मजहबी उन्मादी जैसे अलंकारों से विभूषित करेंगी किन्तु उनके लिए भविष्य से अधिक वर्तमान का महत्त्व था। हालाँकि टूटे मंदिरों के स्थान पर मस्जिदों के निर्माण का कारण वे अफसरशाही को मानते हैं। इतिहासकार महोदय के अनुसार मंदिरों को तोड़े जाने के पश्चात उस स्थान पर कृषि योग्य भूमि का प्रस्ताव ही पारित हुआ किन्तु उस समय फैक्स अथवा इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण यह प्रस्ताव निचले अधिकारियों तक नहीं पहुँच सका और उन्होंने स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार मंदिरों के मलबे से ही मस्जिदों का निर्माण करवा दिया। यह बात जब मुस्लिम शासकों को ज्ञात हुई तो उन्होंने स्वयं को बंद कक्षों में सैकड़ों कोड़े मारे। इतिहास में अकबर, औरंगजेब, टीपू एवं ऐसे ही शासकों द्वारा स्वयं को कोड़े मारने के प्रमाण मिलते हैं। इतिहासकार महोदय के इस महान ज्ञान के सम्मुख मैं नतमस्तक हो गया। मैं भारत के कई ऐसे महान इतिहासकारों से मिला एवं उनके द्वारा रचित दस्तावेजों का अध्ययन किया। कई अन्य प्रकार के तर्क सामने आए एवं महत्वपूर्ण जानकारियां भी मिली जिनका यही सार है कि “नो वन डिस्ट्रॉयड हिन्दू मंदिर”। हिन्दू मंदिरों की नियति में ही गिरना लिखा था एवं नियति का लिखा तो स्वयं भगवान भी नहीं काट पाते हैं।

हालांकि एक समय मैंने यूं ही मसखरी में कह दिया कि इफ नो वन डिस्ट्रॉयड हिन्दू मंदिर देन नो वन डिस्ट्रॉयड बाबरी आल्सो। सामूहिक भावनाएं आहत हो गईं और मुझे अपने प्राण बचाने पड़े। अब आप पाठकगण ही बताएं कि क्या मैंने असत्य कहा?

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