ताजा मामला दिल्ली में रिंकू शर्मा का है। इससे पहले भी लंबी लिस्ट है। पालघर से लेकर दिल्ली दंगों तक। हर बार एक हिंदू मारा जाता है। एक ट्रेंड चलता है। खूब शोर-शराबा होता है। पुलिस में मामला दर्ज होता है। कुछ लोग गिरफ्तार होते हैं। फिर जांचें चलती रहती है। और सियासी दल इस शोर-शराबे को भुना लेते हैं। हिंदुओं को क्या मिलता है? अगली एक और मौत। फिर वहीं-ट्रेंड, शोर-शराबा, पुलिस में मामला, गिरफ्तारी और जांचें।
चौदह सौ साल पुराना वायरस इन ट्रेंड और जांचों से नहीं जाएगा। जब कोरोना जैसे साल भर पुराने वायरस के लिए वैक्सीन बनाने में पूरी दुनिया को पसीना आ गया तो, चौदह सौ साल पुराने वायरस के वैक्सीन के लिए तो लंबा और रणनीतिक वैक्सीन ढूंढने की जरूरत है। मजेदार बात तो यह है कि इसका तरीका हमारे यानी सनातन परंपरा में हमेशा से था। हर कालखंड में हमने उसका लोहा भी मनवाया। लेकिन आजादी के बाद अहिंसा नामक एक और वायरस ने सनातन परिवारों पर हमला किया। इसका परिणाम सारे सनातनी परिवारों के घर किसी भी तरह के हथियार से मुक्त हो गए। यहां तक कि अब तक घर में कुत्ते भगाने के लिए लाठी तक भी ढूंढ़नी पड़ती है। रही सही कसर हमने ही पूरी कर दी खुद को पूरी दुनिया के सामने उदार साबित करने के लिए कुछ ज्यादा ही सहिष्णु बनकर। और अब, भारतीय इतिहास की सबसे शक्तिशाली सरकार के बावजूद जयश्रीराम का नारा लगाने वालों की पीठ में दिन दहाड़े छुरा घोंपा जा रहा है।
फिर हम क्या करें। जब मामला मरने और मारने पर आ गया हो तो, समझदारी कहती है कि दुश्मन को मारने के लिए तमाम रणनीतियां और हर तरह के हथियारों की तैयारी रखिए। मजेदार बात यह कि यह कोई नई बात नहीं है। जरा स्मरण कीजिए नवरात्रियों को। हनुमान जी को। राम अवतार को। कृष्ण अवतार को। नरसिंह अवतार को। शिव अवतार को। विष्णु अवतार को। क्या हमारा कोई भी देवी या देवता बिना अस्त्र और शस्त्र के दिखाई देता है। और हां, ये अस्त्र-शस्त्र किसी को मारने के लिए नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए हैं। और धर्म की स्थापना के लिए विधर्मी पर हर शस्त्र और अस्त्र का प्रहार किया जाना धर्म है।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि देवी को देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र व हथियार सौपें थे ताकि असुरों के साथ होने वाले संग्रामों में विजय प्राप्त हो और धर्म सदैव स्थापित रहे। देवी के महा लक्ष्मी स्वरूप वर्णन करते हुए कहा गया है कि- ॐ अक्षस्त्रक्परशुं गदेशुकुलिशं पद्मं धनुषकुण्डिकां/ दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्/ शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां/ सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां। इसका अर्थ है कि- ”मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महा लक्ष्मी का भजन करता हूं, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती है।”
महालक्ष्मी के उपासक हम सनातनी तमाम अस्त्र और शस्त्रों से विहीन होकर सरकार और प्रशासन की ओर उम्मीदों से ताकते रहते हैं। आखिर क्यों? वो पीछे से पीठ में खंजर खोंप सकता है, तो हम क्यों नहीं सामने से तलवार चला सकते। हनुमान की गदा, रामजी के धनुष तीर, कृष्ण का सुदर्शन, परशुराम का फरसा सिर्फ दिखाने भर के लिए नहीं था। ये तमाम अस्त्र-शस्त्र अधर्मियों के नाश के लिए थे। अहिंसा नाम के वायरस ने पहले भी देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। धर्म की स्थापना के लिए होने वाली हिंसा धर्म का मार्ग प्रशस्त करती है। अपनी नई पीढी को किसी न किसी शस्त्र में निपुण कीजिए। उसे सनातन पर आने वाली तमाम बाधाओं का प्रतिकार करने के लिए तैयार कीजिए। याद रखिए, सियासत हमसे हैं, हम सियासत से नहीं। इसलिए जब तक हम खुद शस्त्र और शास्त्रों से मजबूत नहीं होंगे, भगवान भी हमारी मदद नहीं करेगा।
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