तिरंगे की आड़ में जो लोग आज देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं उन्होंने ही कभी इसी तिरंगे की अस्मिता को रौंद कर एक अलग मुल्क पाकिस्तान की मांग कर ली थी और धार्मिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये फिर अब हम पर सेकुलरिज्म क्यों थोपा जा रहा है? अब समझ में नहीं आता कि हिन्दुत्व की उदारवादी नीतियों का दुरूपयोग कब तक सहेगा हिन्दुस्तान?
1947 में जिन लोगों ने आजादी के दीवानों के साथ कदम से कदम मिलाकर तिरंगा थामा था उनका सपना ये तो नहीं था कि जिस भारत माता को आजाद कराने के लिए हम जान दे रहे हैं उसी धरती पर हमें धार्मिक आधार पर दरकिनार कर दिया जायेगा।
देश में नेहरू और जिन्ना जैसे तत्कालीन रहनुमाओं ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए माँ भारती के टुकड़े कर दो अलग अलग मुल्कों की बागडोर संभाल ली और देश को धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक हिंसा की आग में जलने के लिए छोड़ कर आजादी का नाम दे दिया। माँ भारती के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले वीर सपूतों ने क्या ऐसे ही भारत की कल्पना की थी इस पर किसी ने कभी विचार नहीं किया बल्कि पड़ोसी मुल्कों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अन्य धर्मों के लोग हों या कश्मीर की वादियों में अपने बच्चों के दीर्घकालिक भविष्य के लिए चिंतित कश्मीरी पंडित हो उनकी तरफ से लोगों ने मुंह मोड़ लिया। पड़ोसी मुल्कों में लोग बेटियां तो इस हसरत से पैदा करते हैं कि बड़ी होकर पढ़ेगी लिखेगी डाक्टर बनेगी इंजीनियर बनेगी लेकिन 12 से 15 साल होते होते उनका धर्मांतरण कर उनका निकाह कर दिया जाता है।
अब जब मौजूदा सरकार कश्मीर से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों को या पड़ोसी मुल्कों में प्रताड़ना के शिकार अन्य धर्मों के लोग हों उनको उनका अधिकार देने की पहल कर रही है तो उन लोगों को आश्चर्य तो होना ही चाहिए जिन लोगों ने अपने ही देश के टुकड़े होते देख हिन्दुओं की चुप्पी देखी है और अपने ही देश मेंं कश्मीरी पंडितों के जलते हुए घरों का तमाशा देखने वाली सरकार भी देखी है।

जय_हिन्द

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