गंदी गालियाँ, व्यभिचार औऱ अश्लीलताके गंदे – गलीच कार्यक्रमों वेब सिरीजों के माध्यम से विकृति फेलाने वाले के खिलाफ तत्काल प्रभाव से नियंत्रण में लाने की उग्र मांग देश की सर्वोच्च पंचायत संसद के सदन में सांसदोंने की है |
OTT Platform के लिए टीवी चैनल्स पर प्रसारित सीरियल आदि के लिये प्रवर्तमान Rule 6 – The Cable Television Network (Regulation) Act 1995. के प्रोग्राम कोड के रूल्स तत्काल प्रभाव से लागू करने का समय आ चुका है | |
दुनिया भर के समाजशास्त्री, राजनेता, कानून विद और प्रशासनिक अधिकारी स्वीकार रहे हैं कि बेटियाँ और नारी के प्रति बढ़ते यौन अपराधों का गंदी गालियाँ, व्यभिचार औऱ अश्लीलताके गंदे – गलीच कार्यक्रमों बड़ा कारण है।
सात वर्ष पहले ‘निर्भया’ और अब हैदराबाद की महिला पशु चिकित्सक के साथ हुए दुष्कर्म के कारणों में एक कारण स्मार्टफोन पर उपलब्ध अश्लील फिल्में भी मानी जा रही हैं।
वेब सीरीजे और अश्लील फिल्में देखने के बाद हत्यारोंने हत्या और दुष्कर्मियों ने दुष्कर्म करना स्वीकारा है, लिहाजा यह तथ्य सत्य है। यह गंदगी किसीभी वय के बच्चे – युवाओं और वयस्क के लिए अपराधीऑका निर्माण करने वाली है ।
आग से खेलना बच्चे – युवाओं और वयस्क सभी के लिए जानलेवा है । इसी तरह यह गंदी गालियाँ, व्यभिचार औऱ अश्लीलताके गंदे – गलीच कार्यक्रमों वयस्क उम्र वालो के लिए भी जानलेवा है ।
हम दर्दभरी अपील करते है, कि इस गंदगी पर सभी के लिए सख्त से सख्त प्रतिबंध लगाया जाये ।
तब हम देखते है विश्व का एक भी धर्म प्रसारतंत्र की गंदगी का समर्थन नहीं कर रहा है |
विश्व के सौभाग्य की बात है कि भले ही मानवने इस आखरी अर्धसदी में असंख्य परिवर्तन स्वीकार लिये | पर अपने अपने धर्म के मूल ग्रंथ में कोई भी परिवर्तन नहीं किया | रिज़ल्ट यह आया की आदमी भले ही भ्रष्टाचार की सारी सीमाये लाँघ गया, धर्मग्रंथ तो नैतिकता और प्रमाणिकता का ही संदेश दे ते रहे, आदमी भले ही निर्दय और निष्ठुर बन गया, धर्मग्रंथ तो प्रेम और करुणा का ही संदेश देते रहे, आदमी भले ही बेलगाम झूठ बोलने लगा, धर्मग्रंथ तो सत्य का ही उपदेश देते रहे| आदमी भले हि क्रोध से आगबबूला होने लगा धर्मग्रंथ तो शांति और क्षमा का ही उपदेश देते रहे |
इसी शृंखला में एक अत्यंत गंभीर बात यह बनी की पिछले पचास साल से हमारे देश में शिष्ट वेष , शिष्ट भाषा और सदाचार में बहुत ही भयानक गिरावट आयी | हमारी सामाजिक मर्यादाये शिथिल बनी | हमारे यहाँ कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के साथ भी जाहिर में बात करने में शर्म महसूस करता था, उसे जाहिर में छूने की तो कल्पना भी नहीं कर सकता था | और जो उसकी पत्नी नहीं है उसके सामने तो देखना भी पाप माना जाता था | यह वास्तव में बंधन नहीं था, सुखी स्वस्थ पारिवारिक जीवन और एक तंदुरस्त समाज की नीव थी | तलाक , व्यभिचार , पुलिस केस, कोर्ट केस, परस्पर का अविश्वास , ब्लेकमेलिंग , भयंकर झगड़े , पूरी की पूरी रात तक तूँ तूँ मैँ मैँ , अनाथ बच्चे , भ्रूणहत्याए , भयंकर आर्थिक संकट , रोजी की समस्या , नारी की सलामती की समस्या , बच्चों की परवरिश की समस्या , अपनी संतान भी वास्तव में अपनी संतान है याँ नहीं , इस बात की आशंका की समस्या , भयंकर मारपीट , पति / पत्नी की हत्या या आत्महत्या – इन सब का हमारी संस्कृति में स्थान ही नहीं था |
पर शिष्ट वेष , शिष्ट भाषा और सदाचार में गिरावट होने से इन सारी समस्याओं ने हमारे पूरे देश पर आक्रमण किया और देश हर तरह से बर्बाद होने लगा | इस सारी बर्बादी में प्रमुख योगदान किसी का रहा हो , तो वह है प्रसारतंत्र |
यदि एक नारी हमारे महोल्ले में आकर जाहिर में अपने कपडे उतारती है याँ कोई अश्लील हरकत करती है, तो हमारा पूरा महोल्ला उसका विरोध करेगा, पुलिस को बुलाएगा, उस नारी को धक्के मरवाकर निकाल देगा, फिर कभी नहीं आने की चेतावनी देगा, यत: हम समजते है कि यह न केवल हमारे धर्म और संस्कार से विरुद्ध है, हमारे पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिये भी बड़ा खतरा है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारी बहु – बेटियाँ वेश्या बन जाएगी , हमारे लड़के आवारा और अय्याश बन जायेंगे , हमारे घर घर के विवाह सम्बन्ध तुटने लगेंगे , हमारे समाज की मनोदशा अत्यंत विकृत हो जाएगी, कोई भी कभी भी अपने दिमाग का संतुलन गवा बैठे और किसी के भी ऊपर बलात्कार कर दे, ऐसी स्थिति आ जायेगी , यह केवल नग्नता या अश्लीलता ही नहीं है, यह हमारा सब कुछ लूँट जाने का षड्यंत्र है, उसे तो हम कैसे बरदास्त कर सकते है ?
मान लो कि महोल्ला का कोई लड़का बीच में आता है, “आप को क्याँ एतराज है ? आपको मत देखना हो तो मत देखो, अपने घर में जाकर सो जाओ , मुजे यह देखना पसंद है, मैं यही देखना चाहता हूँ, मुजे ऐसा देखने में मज़ा आता है, तो आप उस नारी को भगानेवाले कौन होते हो ?”
बोलो, अब हमारा क्याँ प्रतिभाव होगा ? महोल्ले के समज़दार पौढ़ लोग उस लड़के को एक चांटा मार देंगे और कहेंगे , बेवकूफ ! यह इन्सानों का महोल्ला है , जहाँ नैतिकता के नीतिनियम है और सदाचार की मर्यादाए है , यदि तुजे नग्नता और अश्लीलता ही चाहिये, तो पशुओं के साथ रहना शुरू कर दे, वहा न वस्त्र होते है , न नैतिकता , न सदाचार , न ही मर्यादा | यह महोल्ला तो मानवों का है | यहा यह सब नहीं चलेगा |”
सच बोलो, यह ही होगा ना हमारा प्रतिभाव ! मैं पूछना चाहता हूँ कि वही अभद्रता , नग्नता , अश्लीलता और अनैतिकता यदि हमारी टी.वी. स्क्रीन पर या मोबाईल स्क्रीन पर आये, तो क्याँ वह अच्छी हो जायेगी ? न्यायिक हो जायेगी ? क्याँ उसके भी वही सभी दुष्परिणाम नहीं है ? क्याँ उससे हमारा परिवार नष्ट – भ्रष्ट नहीं हो जायेगा ? क्यों उससे हमारा सामाजिक स्वास्थ्य बिगड़ नहीं जायेगा ? क्याँ उससे हमारी बहु – बेटीयाँ वेश्या नहीं बन जायेगी ? क्याँ उससे हमारे लड़के आवारा और अय्याश नहीं बन जायेंगे ?
यदि बात वही की वही है, परिणाम भी वही का वही है, तो फिर एक का सख्त विरोध और दुसरे का हार्दिक स्वागत, इतना बड़ा अंतर क्यों ? इतना अंतर होते हुए भी यह बर्बादी को रोका जा सकता है, यदि प्रसारतंत्र अश्लील प्रसारण पर नियंत्रण लाये | पर दुर्भाग्य से हमारे सेन्सर बोर्ड की कैची उत्तरोत्तर कुंठित होती जा रही है, प्रसारतंत्र हमारे अच्छे से अच्छे घरो में गंदी से गंदी गंदगी उगल रहा है और इतना मानो कम हो, इस तरह वर्तमान में कुछ प्रसारण को सभी नियंत्रणों से मुक्त करके सारी सीमाए लाँघ दी है, और इस देश के १३५ करोड़ लोगों की पारिवारिक – शारीरिक – मानसिक – आर्थिक – सामाजिक – नैतिक स्वस्थता पर एक अणुबम ही फैंक दिया है | इसके फलस्वरूप समग्र देश में यौन – अपराधो में और खून – मारपीट – झगड़े जैसे अपराधो में भयंकर वृध्धि हो रही है | सारा का सारा देश बर्बादी की और दौड़ सा रहा है |
एक बाजु स्थिति यह है, तो दुसरी बाजु हमारे देश के प्रत्येक धर्म के धर्मग्रंथ इस नग्नता , अश्लीलता , व्यभिचार और अनैतिकता का स्पष्ट रूप से विरोध ही कर रहे है |
वैदिक धर्म में देखे, तो पुराणों में – शीलभङ्गेन दुर्वृता: पातयन्ति कुलत्रयम् – जैसे वचनों से गंदगी भरे प्रसार तंत्र का एक तरह का विरोध ही किया गया है| भगवान श्रीराम की मर्यादा पुरुषोत्तमता , भगवान श्री कृष्ण ने की हुई द्रौपदी की शीलरक्षा , विषयान् विषवत्त्यज – जैसे गीताग्रंथो का संदेश, यह सब देखते हुए हिन्दु समाज के एक भी अनुयायी गंदे प्रोग्राम्स के प्रसार का विरोधी ही हो सकते है |
बौध्ध धर्म में देखे , तो धर्मपद ग्रंथमे – यो च वस्ससतं जीवे – श्लोक से दु:शील का १०० साल जीना भी निष्फल बताया गया है और सुशील का एक दिन भी जीना श्रेयस्कर बताया गया है , तो बौध्ध धर्म का कोइ भी अनुयायी ऐसी दु:शीलता का समर्थन कैसे कर सकता है ?
इस्लाम धर्म में देखे तो कुर्आन – मजीद में सूर: निसा की १५-१६-१७-२३-२४-२५-२६ वी आयतों में, सूर: बनी इसराइल की ३२ वी आयत में और अन्य भी आयतों में बदकारी – व्यभिचार , अश्लीलता , अपशब्दों एवं दु:शीलता पर अल्लाह की स्पष्ट मनाई घोषित की गयी है, तो स्पष्ट है कि कोइ भी मोमिन इस गंदे प्रसारतंत्र का विरोधी ही हो सकता है|
जैन धर्म में देखे तो उत्तराध्ययन सूत्र आदि आगमो में शील, सदाचार, वैराग्य, मर्यादा और नैतिकता का जो स्पष्ट उपदेश दिया गया है, उसे देखे तो कोई भी जैन इस अश्लील प्रसारतंत्र के खिलाफ ही हो सकता है|
सीख धर्म में देखे तो गुरु साहिबों के हुकुमनामो में- चोरी – जारी नहीं करणी – ऐसा स्पष्ट आदेश है, तो कोई भी सीख इस प्रसारतंत्र की गंदगी का स्वागत नहीं ही कर सकता |
स्वामिनारायण धर्म में देखे तो वचनामृतो में गढडा प्रकरण , सारंगपुर प्रकरण , लोया प्रकरण आदि अनेक प्रकरणों में दुराचार , द्रष्टिदोष , हवस आदि का सशक्त रूप से खंडन किया गया है, तो स्वामिनारायण धर्म का कोइ भी अनुयायी यही चाहेगा कि यह गंदा प्रसारण शीघ्र से शीघ्र समाप्त हो जाये|
ख्रिस्ती धर्म में देखे तो बाइबल में स्पष्ट कहा है की परस्त्री के साथ व्यभिचारी संबंध रखनेवाला अत्यंत बुद्धिहीन है , वह अपनी आत्मा के लिये, विनाशक कृत्य कर रहा है, तो ख्रिस्ती धर्मं का कोई भी फोलोअर इस गंदगी का समर्थन नहीं ही कर सकता है |
एक ओर हमारे श्रध्धेय सभी भगवान एक ही आवाज में हमें आदेश कर रहे है कि यह सारा कूड़ा- कचरा उठा कर इतना दूर फैंक दो कि उसकी गंध तक न आये, दुसरी ओर हमारी पारिवारिक और सामाजिक परिस्थिति पर यही कचरा बमवर्षा कर रहा है और तीसरी ओर प्रसारतंत्र की शिथिलता से यह कचरा ज्यादा से ज्यादा बदबूदार होता जा रहा है , अब हमें क्याँ करना वह हमें तय करना है
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