अफगानिस्तान के पठानों की कहानियां उर्दूवुड में बहुत चालाकी के साथ दिखाई गई कि मानो पठान का बच्चा कभी किसी से डरता नहीं है। डी कंपनी के पैसों से बनी फिल्मों में अफगानिस्तान के लोगों का ऐसा महिमामंडन किया गया मानो वह शेर के जबड़े में हाथ अंदर देकर 24 घंटे रहते हैं। मगर अब यह पूरी दुनिया देख रही है कि जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है तो वहां के आदमी अपनी औरतों और बच्चियों को छोड़कर भाग रहे हैं, अब उर्दूवुड से सवाल पूछा जाना चाहिए कि आखिर उनकी वह फंतासी कहानियां कहां गई जिसमें पठान का बच्चा शेर दिल दिखाया जाता था। फिल्म जंजीर में एक डायलॉग है जिसे प्राण बोलते हैं.. कहते हैं कि पठान का बच्चा मर जाएगा मगर पीठ दिखाकर नहीं भागेगा… फिल्म के लेखक सलीम जावेद थे , सलीम खुद अफगानिस्तान से भारत आए थे तो ऐसे में उन्होंने पठानों का महिमामंडन कर दिया।


कहा जाना चाहिए कि इन पठानों से अच्छे तो पश्चिम बंगाल में बचे हुए वे हिंदू हैं जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस के हमलों के चलते वहां से पलायन किया मगर अपनी औरत और बच्चों को वहां नहीं छोड़ा। इन पठानों से अच्छे और बहादुर तो उत्तर प्रदेश के कैराना के वह हिंदू परिवार हैं जिन्होंने अपनी औरतों और बच्चों को साथ लेकर वहां से पलायन किया मगर इन डरपोक पठानों की तरह अकेले नहीं भागे। इस समय पूरी दुनिया इन पठानों की कायरता पर हंस रही है जो अपनी बीवी, औरत, मां, बहन और बच्चों को छोड़कर अकेले अफगानिस्तान से भाग जाना चाहते हैं।

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