तो आखिरकार ऑपइंडिया के तेज़ तर्रार और प्रखर पत्रकार अजीत भारती पर भी “अदालती अवमानना ” की वो तलवार गिर ही गई , जो अदृश्य रूप से इस देश के हर उस व्यक्ति पर लटकती रहती है , जो नामचीन नहीं , कोई बड़ा राजनेता नहीं है , कोई बड़ा अभिनेता नेता नहीं है। और सबसे अधिक ये कि , वे जो , दिनों दिन सामने आ रहे अदालती फैसलों को प्रायोगिकता की कसौटी पर बिलकुल बेमानी और एकतरफा मान कर असहमति जताने को तैयार रहते हैं।

महाधिवक्ता श्री के के वेणुगोपाल जी ने , एक अधिवक्ता द्वारा प्राप्त शिकायत पर -अजीत भारती द्वारा बनाए एक यू ट्यूब वीडियो को देखा कर पाया कि उसमें घनघोर बातें कही हुई हैं , और माननीय हाकिम को कोई घनघोर तो क्या घोर बातें भी कहना सिर्फ अपराध ही नहीं गुनाहे अजीम है जी। सो उन पर न्यायपालिका की अवमानना का मुकदमा चलाया जाए।

ये वही मुकदमा है जो इससे पहले पूर्व न्यायमूर्ति कर्णन पर भी चलाया गया था और कुणाल कामरा पर भी , अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर भी चलाया गया था और मेधा पाटकर पर भी और अब अजीत भारती पर भी चलेगा। अब यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि , बकौल न्यायपालिका और क़ानून में प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार , अदालत से ,अदालती फैसले से ,कार्यवाही और किसी निर्णय से असहमत होने का पूरा अधिकार है , सभी को है, उस अधिकार की आलोचना का अधिकार भी है बस वो एक दायरे में होना चाहिए , एक मर्यादा में होना चाहिए।

अब विडंबना ये है कि ये दायरा , ये मर्यादा , ये सीमा तय भी सिर्फ और सिर्फ अदलात कर माननीय मीलार्ड ही कर सकते हैं कि , किसके मुंह से निकली कौन सी बात उन्हें कितनी जोर से लगी है और उसी के अनुसार सब कुछ आगे तय किया जाता है कि , मान की हानि हुई या नहीं , और हुई तो किस हद तक हुई है , ये भी कि क्या उसकी भरपाई चार दिन की सज़ा (मेधा पाटकर के मामले में ) या फिर महज़ एक रुपया (प्रशांत भूषन के मुक़दमे में ) की सज़ा देने से हो सकती है।

अदालती अवमानना का प्रावधान इस उद्देश्य के लिए रखा गया था ताकि हाकिम लोगों को निर्भय हो कर , निष्पक्ष होकर निर्णय देने में किसी तरह की कोई दिक्कत कठिनाई न हो। मगर फिलहाल जो दिख और समझ आ रहा है वो ये कि , माननीय इन अवमानना प्रक्रिया और मुकदमों से आम लोगों को जतना समझाना और डराना चाह रहे हैं कि -भैया ,बाबू ये जो तुमने बोला कहा लिखा न -वो हमें बहुत जोर का चुभा है। तुमने जो चिकोटी काटी है उससे जयकांत शिकरे के ईगो को बहुत ठेस पहुंची है सो झेलो अब हमारी तरफ से ये वाला तीर।

अब मी लार्ड से सिर्फ दो ही बातें कहनी हैं -हाकिम आलोचना और अपमान में उतना ही बारीक फर्क है जितना बहादुरी और बेवकूफी में और फिर एक आम आदमी , जो विधि की पेचीदा भाषा , लच्छेदार शब्दों में नहीं कह लिख पाता तो वो फिर कैसे कहे बताए जाहिर करे अपनी बात। दूसरी बात ये कि -मी लार्ड ! यदि ये चिकोटी आपको इतनी ज्यादा जोर से लगी दिखी चुभी तो गनीमत समझिए कि आप सब कभी सार्वजनिक रूप से लोगों के बीच नहीं जाते ,उठते बैठते – नहीं तो। अजी हाँ !

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