इन्द्रद्युम्न द्वापर युग में  माल्वा के एक राजा थे……..स्कन्द पुराण में इनका उल्लेख मिलता है.

एक दिन इन्द्रद्युम्न के दरबार में एक तीर्थ यात्री पहुंचा.   उसने राजा को नील माधव का प्रसंग  बतलाया,  जिनकी पूजा ओद्र देश के नीलाचल पर्वत पर होती थी.

नील माधव की बात सुन कर  राजा इन्द्रद्युम्न मंत्र मुग्ध हो उठे   और आँखें बंद कर नील माधव की कल्पना करने लगे.     पर तीर्थ यात्री अपनी बात कह कर अचानक गायब हो गया.

इन्द्रद्युम्न भगवान् विष्णु के  परम भक्त थे , अतः अब उनके लिए नील माधव को ढूंढ निकालना नितांत आवश्यक हो गया.  दरबार में तय हुआ की राज पुरोहित के अनुज  पंडित विद्यापति को अवंती से ओद्र देश जाना होगा,  और नील माधव का पता लगाना होगा.

अथक प्रयासों और  अनेक कष्टों के उपरांत आखिर विद्यापति महानदी तट पर सबर द्वीप पहुंचे.  ये राज्य  सबर कबीले के राजा विश्व बासु का था.  विश्व बासु ही नील माधव का संरक्षक था.

परन्तु विश्व बासु  किसी भी तरह विद्यापति को नील माधव का पता ठिकाना बताने को राज़ी नहीं था.  कई हफ़्तों तक विद्यापति मान मुन्नावल करते रहे…..

अंततः एक दिन  विश्व बासु विद्यापति को नील माधव के दर्शन करवाने को तैयार हुआ,  पर उसने एक शर्त रख दी –

नील माधव तक जाने और आने   के दौरान विद्यापति की आँखों पर पट्टी बाँध दी जायेगी  ताकि वो रास्ता न देख सके.  विद्यापति ने शर्त मान ली.

       पर पट्टी बांधे जाने से पहले   उसने अपनी मुट्ठी में सरसों के कुछ बीज रख लिए.  और नील माधव तक पहुँचने के क्रम में रास्ते में सरसों गिराता चला गया.

नील माधव के समक्ष पहुँच कर विश्व बासु ने विद्यापति की पट्टी खोल दी. विद्यापति अचंभित हो गए  नील माधव अपना नीला प्रकाश चारों और प्रसारित कर रहे थे.

वापस आ कर जब विश्व बासु ने आँखों की पट्टी खोल दी  तो विद्यापति ने उनको धन्यवाद कहा और तुरंत ही अवंती की और वापस चल दिए.

रजा इन्द्रद्युम्न ने  जब विद्यापति से नील माधव का वृत्तांत सुना,  तो एक क्षण भी अपने को रोक न सके  और विद्यापति को साथ ले अपने सैनिकों के साथ चल पड़े ओद्र देश के सबर द्वीप.

विद्यापति के फेंके हुए सरसों के अब पौधे उग आये थे , उसी की राह पकड़ कर राजा और उनके साथी चल पड़े…..

पर जब वो सब नियत स्तान पर पहुंचे  तो विद्यापति को आश्चर्य हुआ  नील माधव अपने स्थान पर नहीं थे  और उस जगह समुद्र की रेत फैली हुई थी.

राजा इन्द्रद्युम्न हताश हो गए  और उसी स्थल पर तप करने लगे, इन्द्रद्युम्न के निरंतर तप से  अंततः मुनि नारद उनके निकट आये और कहा  की भगवान् विष्णु नील माधव के रूप में अब किसी को भी  दर्शन नहीं देंगे……

नील माधव का रूप     उन्होंने उस व्याध, जरा, के लिया धरा था ,  जिस ने भगवान् श्री कृष्ण पर बाण चला कर उनके प्राण हरे थे. व्याध भगवान् का परिचय पा कर अत्यंत दुखी हो गया था तब श्री कृष्णा ने उसे वचन दिया था  कि अगले जनम में वो विश्व बासु  होगा और भगवान उसे नील माधव के रूप में मिलेंगे.

इन्द्रद्युम्न अपनी तपस्या समाप्त करने को तैयार नहीं हुआ.

तब मुनि नारद ने कहा की भगवान् तुम्हे चार रूपों में दर्शन देंगे….     जगन्नाथ,      बलभद्र,    सुभद्रा और  सुदर्शन चक्र, मुनि ने इन्द्रद्युम्न को अगली सुबह  चक्र तीर्थ के समुद्र तट पर प्रतीक्षा करने को कहा.

वहाँ पर उसे समुद्र में एक बड़ा सा लकड़ी का टुकड़ा पानी पर तैरता दिखेगा और चारों रूप इसी टुकड़े से बनाए जायेंगे.

अगले दिन जैसा मुनि ने कहा था, वैसे ही इन्द्रद्युम्न ने लकड़ी का बड़ा सा टुकडा  समुद्र से प्राप्त किया  और अपने साथ ले आये.

कुछ ही समय में एक वास्तुकार प्रकट हुए  और मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव दिया,  ये मानव रूप में भगवान विश्वकर्मा थे.  जब मंदिर का निर्माण पूरा हुआ तब एक वृद्ध बढ़ई प्रकट हुआ,  ये स्वयं भगवान विष्णु थे, इन्होने चारों मूर्तियों के निर्माण का प्रस्ताव दिया, इन्द्रद्युम्न ने इनको मूर्ती निर्माण की आज्ञा दी.

पर बढ़ई ने एक शर्त रख दी की जब तक काम पूरा नहीं होगा   कोई मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करेगा  नहीं उसके काम में कोई भी बाधा पहुंचाएगा राजा ने शर्त स्वीकार कर ली

काम शुरू हुआ सारा दिन ठोकने पीटने की आवाजें आती रहती थी पर कुछ दिनों बाद          ये आवाजें आनी बंद हो गयीं…

चूँकि बढ़ई वृद्ध था दरबारियों ने कुछ अनिष्ट की आशंका जताई    कहीं वृद्ध अस्वस्थ तो नहीं हो गया इत्यादि

राजा ने द्वार खोलने के आदेश दिए  और सब अन्दर प्रवेश कर गए वहाँ उन्होंने देखा की वृद्ध बढ़ई अपने काम में तल्लीन था लेकिन शर्त का उल्लंघन हो गया था  सो वो उठ खड़ा हुआ…और वहाँ से चला गया , वैसे तो उसने अपना काम पूरा कर लिया था पर  भगवान् के हाथ पैर नहीं बना पाया था

एक आकाशवाणी हुई, राजा इन्द्रद्युम्न को मूर्तियों को स्थापित करने का आग्रह किया, और कहा कि भगवान् की मूर्ती के हाथ पांव न होने के बावजूद        ये मूर्ती पूरे जगत पर अपनी दृष्टि बनाए रखने में समर्थ है, और समस्त जगत में ये महाप्रभु जगन्नाथ के नाम से विख्यात रहेंगे.

https://youtu.be/zWs1mRBtWMI

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