कहानी लगभग 2350 वर्ष पूर्व की है जब समस्त भारतमहाजनपद कालीन  व्यवस्था का निर्वाह कर रहा था दूसरे शब्दों में कहूं तो पूरा भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था जिन्हें प्राचीन लोग जनपद की संज्ञा देते थेजहां हर एक जनपद, दूसरे जनपद की स्वतंत्रता को समाप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार  करना चाहता था, जनपदों के मध्य इस संघर्ष में जो लड़ सके/जिन्होनें वीरता दिखाई वो बचे और जीते,मगर जिन्होंने परिस्थितियों के समक्ष अपने हथियार डाल दिए/आत्मसमर्पण कर दिया,परिणामस्वरूप उन्होंने अपनी स्वतंत्रता गवांई और दूसरों के आधीन हो गए, साम्राज्य विस्तार के इस संघर्ष में रत राज्यों के आपसी संघर्षों में से 16 जनपद निकलकर सामने आए जिन्हें सम्मिलित रूप से महाजनपद कहा जाता था.


महाजनपद में कुछ जनपद ऐसे भी थे जिनका साम्राज्य भव्य एवं विशाल था, जिनमें मगध, कैकय और तक्षशिला प्रमुख थे इन राज्यों में भव्यता,विशालता और सामरिक शक्ति के आधार पर सबसे शक्तिशाली जनपद मगध ही था जो अपने ऐश्वर्य और राजा की विलासिता के लिए प्रसिद्व था,

“महराज पोरस “

धरती का श्रंगार ना छूटेमिटे ना लब की लालीजिस भारत के गौरव कीपुरुराज करे रखवाली


महाजनपद कालीन भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित एक जनपद कैकय जिसके स्वामी महराज पोरस थे उनका राज्य झेलम (हाईडेस्पीज) और चेनाब (एसीसेंस) के मध्य फैला हुआ था, महराज पोरस के शासन का समय 340 ईसापूर्व से 315 ईसापूर्व तक का माना जाता है, पोरस के बारे में उपलब्द्ध सारी जानकारियां लगभग ग्रीक स्त्रोतों पर ही आधारित हैं, परंतु भारतीय इतिहासकार महराज पोरस का नाम और उनके राज्य कैकय-प्रदेश की भौगौलिक स्थिती के आधार पर ही उनका संबंध प्राचीन पूरूवास/पर्वतेश्वर वंश से भी जोड़ते हैं (पोरस के राज्य का नाम कैकय प्रदेश होने के कारण ही उन्हें कैकयराज कहकर भी संबोधित किया जाता था)  ऐसा माना जाता है कि ईक्ष्वाकुवंशी राजा दशरथ की छोटी रानी ‘ कैकेयी ‘  यहीं की राजकुमारी थीं और उल्लेखनीय बात यह है कि इसी क्षेत्र में रहने वाले खोखरों (बागी योद्धा) ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या का बदला लेने के लिए मोहम्मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था,

कंद-मूल खाने वालों से

मांसाहारी डरते थे

पोरस जैसे शूर-वीर को

नमन ‘सिकंदर’ करते थे…


” पोरस अपनी बहादुरी और महात्वाकांक्षी स्वभाव के लिए विख्यात थे उन्होंने अपने प्रदेश की समस्त लडा़कू जातियों के समर्थन से अपने साम्राज्य का निर्माण किया और बाद में खुखरायनों का भी पूर्ण समर्थन प्राप्त किया जिससे उनका सैन्यबल सुदृढ़ और सशक्त हुआ, तथा पोरस एक शक्तिशाली साम्राज्य का सम्राट  बन गया “
   -आईपी आनंद थापर (ए क्रूसेडर्स सेंचुरी : इन परस्यूट ऑफ एथिकल वेल्यूज/केडब्ल्यू प्रकाशन से प्रकाशित)

गहरा सागर है प्रेम का

पहला करता है देश का

हार नहीं स्वीकार उसे

आकाश से ऊँचा साहस

मान है वो

सम्मान है वो

स्वाभिमान का पोरस

पोरस…

रक्त पुरुषोत्तम पोरस

पुरु वंश का पोरस

पोरस…

रक्त पुरुषोत्तम पोरस

आर्यवर्त का पोरस

पोरस…

अब हर आर्य बनेगा पोरस…!! 


‘सिकंदर’

मैदान-ए-जंग में जाने से पहले अपने अंदर बसे खौफ को फतह किया जाता है…

विश्व-विजय का सपना अपनी आँखों में संजोए ‘ सिकंदर ‘ ईरान, मिस्र को विजित कर भारत की तरफ बढ़ागांधार, मस्कावती,और वहिक-प्रदेश तथा रास्ते में पड़ने वाले अनेकानेक राज्यों को धूल-धूसरित करता हुआ‘ आर्यवर्त ‘ की सीमा पर आ खडा़ हुआ,महाजनपद कालीन भारत के सीमावर्ती राज्यों में से तक्षशिला और गांधार (आम्भी और अभिसार) ने भारत की सीमा पर सिकंदर का स्वागत कर उसकी आधीनता वाली मित्रता की संधि स्वीकार कर उसकी हर-संभव मदद करने का आश्वासन भी दिया, तक्षशिला और गांधार की सीमा से ही महराज पोरस का राज्य लगा हुआ था, पोरस यह भली-भांति जानता था कि तक्षशिला आग से खेलने की कोशिश कर रहा है जिसकी लपटों से एक दिन समस्त आर्यवर्त जल उठेगा, अपने अनवरत सैन्य अभियानों की विजय के मद में मदमस्त सिकंदर को लगा वह समस्त ‘ कैकय-प्रदेश ‘ भी बिना लडे़ ही जीत लेगा,  सिकंदर ने महराज पोरस को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए पत्र भेजा परंतु महराज पोरस ने सिकंदर की अधीनता स्वीकार करने से मना कर उसका घमण्ड चूर कर दिया, अतः युद्ध तो निश्चित था… मगर अभी काल का आह्वान बाकी था और सिकंदर ने युद्ध के लिए अपनी सेना को तैयार करने का आदेश दिया जिसमें उसके मित्र राज्यों के सैनिक (तक्षशिला और गांधार के भारतीय सैनिक) भी शामिल थे,


जानता हूँ ,
सिकंदर हो तुम
तुम अपने जहाँ के
पर हूँ ,
पोरस मैं भी
जीवन में अपने
छोड़ूंगा नहीं,
युद्ध का मैदान,
अंत तक,
जब तक,
खड़ा न हो जाऊँ
सामने तुम्हारे,
बराबर बराबर

अपने स्वप्न को पूरा करने के लिए सिकंदर ने भारत में प्रवेश करना चाहा मगर झेलम को पार किए बिना पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल ही था, वहीं दूसरी तरफ राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक/भौगोलिक स्थिती और झेलम नदी के स्वभाव से भली-भांति परिचित थे, मगर महाराज पोरस ने ग्रीक सेना की शक्ति का रहस्य पता लगाने की कोशिश नहीं की और ना ही उन्होंने सिकंदर को झेलम पार करने से रोका, ग्रीक सेना का मुख्य बल सिकंदर के अंगरक्षक ईफेस्टियन पार्डिकस और डिमीट्रियस की अश्वारोही सेना, बैक्ट्रियास ,सोकड्रिया और इस्किंथिया की अश्वारोही सेना, बाआन के घुड़सवार धनुर्धर, पैदल सेना में क्लोईटोस और क्लाइनोस की टुकडी़, कुछ धनुर्धर तथा एग्रीऐनिया के सैनिक थे मगर इनके लिए तो महराज पोरस की हस्तिसेना (हाथियों की सेना) ही पर्याप्त थी, दूसरी तरफ जासूसी का जाल और धूर्तता के बल पर सिकंदर के अधिकारी युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे,सिकंदर राजा पोरस के परमशत्रु लालची आम्भी तथा गांधार के राजा अभिसार की सम्मिलित सेना लेकर झेलम के तट पर पहुँच गया जिसमें 50 हज़ार पैदल सैनिक और 7 हज़ार घुड़सवार शामिल थे,


वहीं नदी के दूसरे किनारे पर महराज पोरस अपने 130 हाथियों4 हजार रथ एवं 20 हजार पैदल सैनिक लिए तैयार खड़े थे जो सिकंदर की सेना से ढा़ई गुना कम थे लेकिन हौसले बुलंदियों पर


झेलम के तट पर पहुंचकर सिकंदर ने पाया कि झेलम के बहाव के कारण उसे पार करना आसान नहीं है और तट के दूसरी तरफ खड़े महाराज पोरस की हस्तिसेना को देख कर सिकंदर की सेना के घोड़े भयभीत हो जायेंगे अतः उसने उसने अप्रत्यक्ष और अलक्षित प्रवेश की नीति अपनाई और फैसला किया कि वह रात्रि के समय कुछ सैनिक लेकर नदी के उत्तर की तरफ जाएगा और नदी पार करने के लिए किसी सुगम रास्ते की तलाश करेगा, उसने अपनी सैनिक टुकड़ी में से एक विशेष दल का चुनाव किया जिसमे 11 हज़ार सैनिक थे जिन्हें लेकर सिकंदर झेलम के उत्तर की तरफ चला गया तब उसने एक निर्जन और दुर्गम स्थान का चुनाव किया जहां झेलम संकरी थी और बीच में टापू था इस स्थान की रणनैतिक स्थिति नदी पार करने की दृष्टि व प्राकृतिक रूप से उपयुक्त थी इसके अतिरिक्त सेना की गतिविधि भी दूसरे तट से लक्षित नहीं की जा सकती थी…

नदी पार करता सिकंदर


उधर महाराज पोरस के सैनिकों ने जब सिकंदर और उसके सैनिकों को नदी पार कर झेलम के दूसरे तट पर देखा तो पोरस ने उनका मुकाबला करने के लिए अपने बड़े बेटे को सैनिकों के साथ भेज दिया, जहाँ यवनों और भारतीय योद्धाओं के मध्य भीषण नरसंहार हुआ और पोरस का बेटा अपनी छोटी सी सेना के साथ उसे रोकने में नाकाम रहा तथा वीरगति को प्राप्त हुआ, इसके बाद सिकंदर की सीधी टक्कर महाराज पोरस से होनी थी, महाराज पोरस ने अपने 130 हाथी सिकंदर की सेना के सामने पहाड़ की तरह खड़े कर दिए,जो दूर से ही सिकंदर की सेना के घोड़ों को भयभीत कर रहे थे भारतीय सेना के इस अद्भुत सैन्य सञ्चालन को देख यवनों की आँखे फटी की फटी रह गयीं तथा सेना के संगठन को देख कर सिकंदर भी स्वयं आश्चर्यचकित रह गया,


और काल का आह्वान हुआ फिर देखते ही देखते भयंकर रक्तपात शुरू हो गया, युद्ध के शुरूआती क्षणों में ही भारतीय हाथियों ने यवनों की ऐसी तुड़ाई की कि बड़ी–बड़ी जंगों को क्षण मात्र में ही जीतने का दंभ भरने वाले यवन, लगातार 8 घंटे लड़ते रहे पर युद्ध नहीं जीत सके, युद्ध में दोनों तरफ के कई सैनिक मारे गए और घायल भी हुए, बहुत से ऐतिहासिक स्त्रोतों से ऐसा जान पड़ता है की इस युद्ध के दौरान भारी बारिश हो रही थी जिसने युद्ध की विभीषिका को और भयंकर बना दिया था तब सिकंदर को समझ में आया कि वह झेलम को पार कर आने के कारण बुरी तरह फंस चुका है क्योंकि युद्ध के दौरान होने वाली बारिश से झेलम अपने पूर्ण प्रचंड वेग में आ चुकी थी और सिकंदर तथा उसकी सेना का वापस जाना असंभव लग रहा था, ऐसा प्रतीत होता रहा था मनो झेलम स्वयं काल का आह्वान कर रही हो तथा अपने साथ समस्त संसार को बहा कर ले जाने को उद्घृत हो, महराज पोरस (जिसको स्वयं ग्रीकों ने 7 फुट से ऊपर का बताया है) ने अपनी शक्तिशाली गजसेना के बल पर जिस बर्बरता/भयंकरता के साथ यवनी सेना का विनाश किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे महाराज पोरस की सेना में शामिल हर सैनिक के पास यवनों को मार भगाने के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग शेष नहीं था, क्योंकि उन्हें युद्ध में होने वाली हार के परिणामों का भान भली-भांति था, उन्हें अच्छी तरह पता था की युद्ध में हार होने के परिणाम क्या होंगे, उन्हें पता था की युद्ध में हारते ही सबसे पहले उनकी संस्कृति को यवनों की भारतीयों पर जीत का ग्रास बनना पड़ेगा, उन्हें भय सिर्फ यवनों की दासता का नहीं बल्कि उस सांस्कृतिक दासता का भी था जो धीरे-धीरे समाज में जन्म लेगी, उनका मानना था कि एक पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता जब तक वह अपनी संस्कृति और मूल्यों की रक्षा कर पाता है, उन्हें पता था कि यदि युद्ध में जीतने कि बाद आक्रांताओं को इस धरती पर स्थिर होना है तो उन्हें व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने वाली संस्कृति को तोड़ना होगा और वे उसे तोडे़ंगे, उन्हें पता था पराजित मन, पराजित राज्य व पराजित राष्ट्र प्रायः विजेता के संस्कार व उसकी संस्कृति को स्वीकार करते हैं, इसलिए वे अपना सर्वस्व भूल कर युद्ध लड़े और विजयश्री प्राप्त की, महाराज पोरस की सेना में शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जिसमें सेना के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला नौफुटा भाला प्रमुख था जिसके बल पर पोरस का एक सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों को उनके घोड़े सहित भी मार गिरा सकता था, इस युद्ध में पहले ही दिन सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली, सिकंदर की सेना के कई अधिकारी सैनिक हताहत हुए,सैनिक अधिकारी भयाक्रांत हो गए जिससे उनका मनोबल टूट गया और उन्होंने अपने हथियार जमीन पर रख दिए,मगर सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और फिर उसने अपना विश्व प्रसिद्ध उद्द्बोधन दिया जिससे उसके सैनिकों में उत्साह का संचार हुआ, तब सिकंदर अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत:प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया, किसी भी भारतीय सेनापति को हाथियों पर होने के कारण कोई खतरा नहीं था फिर राजा की बात तो बहुत दूर की कौड़ी थी, सिकंदर और उसकी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत:प्रतिरक्षा टुकड़ी को बीच युद्ध क्षेत्र में महाराज-पोरस की तरफ बढ़ता देख पोरस के सेनापति धनंजय ने अपना नौफुटा भला फेंक कर मारा जो सिकंदर की बाजू को छूता हुआ सीधे सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) के पेट में जा धंसा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए तथा सिकंदर जमीन पर आ गिरा, सहसा यूनानियों ने ऐसा पहले कभी शायद ही होता हुआ देखा था, सिकंदर को जमीन पर गिरा देख महराज पोरस अपने हाथी से नीचे उतर आये और एक हाथ से तलवार निकालकर उग्र-स्वर में जय-भवानी का उद्द्घोष-नाद करते हुए तलवार हवा में लहराई, सिकंदर बस पलभर का ही मेहमान था परंतु यह क्या… ?कि एकाएक महाराज पोरस ठिठक गए उन्होंने अपनी तलवार चलाई ही नहीं, क्योंकि उन्होंने सिकंदर के चेहरे की तरफ देखा तो उसके चेहरे पे एक अजीब सा डर था वह मन ही मन घबरा रहा था कहीं न कहीं वह अपनी मृत्यु को समक्ष देख भयभीत सा प्रतीत हो रहा था, उसकी आँखों में तरस का भाव उजागर हो रहा था मनो वह महाराज पोरस से दया याचना कर कह रहा हो की मुझे छोड़ दो, मैनें आपके सामर्थ्य को चुनौती दे गलती कर दी, मैनें नाहक ही भारत पर आक्रमण किया जिसका मुझे पछतावा हो रहा है यह समझते ही महाराज पोरस ने अपनी तलवार वापस म्यान में रखकर सिकंदर को जीवनदान दे दिया, यह जीवनदान महान आर्यवर्त भारत के महान राजाओं के क्षत्रिय-धर्म का पुनर्स्मरण कराता था, जो उन्हें किसी निहत्थे पर वार करने से रोकता था तब महाराज की आज्ञा पाकर सिकंदर के अंगरक्षक आए और उसे वहां से उठाकर ले गए, सिकंदर महराज के महात्वाकांक्षी स्वभाव को जानता था अतः कुछ दिनों के बाद सिकंदर ने राजा पोरस के पास मित्रता-संधि का प्रस्ताव भेजा, और मित्रता के बदले उसने उसके द्वारा आगे विजित किये जाने वाले सभी प्रदेशों का स्वामी बनाने का आश्वासन दिया, अतऐव अपने महात्वाकांक्षी स्वभाव के कारण महराज पोरस ने मित्रता की संधि स्वीकार कर ली,


पर क्या पोरस युद्ध हार गया था…? ??
आमतौर पर किताबों में जो हमें पढ़ाया गया वह किसी फिल्म की पटकथा सा लगता है… इतिहास को निष्पक्ष रूप से लिखने वाले एकमात्र ग्रीक विद्वान प्लूटार्क ने लिखा कि  इस युद्ध में युनानी आठ घंटे तक लड़ते रहे पर किस्मत ने इस बार उनका साथ नहीं दिया 
प्लूटार्क के इस कथन से ही सबकुछ साफ़ हो जाता है कि सिकंदर हाईडेस्पीज का युद्ध नहीं जीता था,वास्तव में सिकंदर अपने युद्ध अभियान के दौरान कई चापलूस इतिहासकार साथ लेकर चलता था जो उसकी सफलताओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते थे और उसकी असफलताओं पर पर्दा डाल देते थे, पोरस से युद्ध के पश्चात भी उन्होंने ऐसा ही किया और युद्ध की वास्तविकता पर अपनी कायरता की लीपा–पोती कर सिकंदर द्वारा पोरस की बहादुरी देखकर उसे माफ़ करने की कहानी गढ़ दी.

हाईडेस्पीज का युद्ध अनिर्णित तो महान, सिकंदर कैसे… ?
जब  हाईडेस्पीज का युद्ध अनिर्णित तब जीत का सेहरा सिकंदर के सर कैसे मढा़ जा सकता है… ?महान सिकंदर कहने के स्थान पर महान पोरस क्यों नहीं… ?पोरस जिसे झेलम का शेर कहा जाता था, वह पोरस जो खुद 7 फीट का था और 9 फीट का भाला रखता था, जिसकी सामरिक शक्ति इतनी की समस्त संसार को विजित कर ले, शक्तिशाली पोरस जिसने क्रूर सिकंदर को घर वापसी करने पर मजबूर कर दिया… सिकंदर ऐसे ही किसी कारणवश तो वापस जाने को मजबूर नहीं हुआ होगा… जब वह मजबूर हुआ तो उसे भय किसका… जाहिर है ” महराज पोरस “ का 

जो जीता वही सिकंदर… मगर इतना जरूर याद रखना कि मैं पोरस हूं और मैंने सिकंदर को भी अपने कदमों में झुकाया है 
(तथ्यों का संकलन उचित स्रोतों के माध्यम से किया गया है जिनमें भारतीय और ग्रीक किताबें शामिल हैं) 

                                                                                                             आकाशदीप पाण्डेय                                                                                                                #अमात्य_राक्षस ?

@pandayakashdeep

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