सरदार वल्लभभाई पटेल काँग्रेस के एक वरिष्ठ नेता। आश्चर्य जनक ! क्युकी, सरदार पटेल काँग्रेस के वरिष्ठ नेता साथ में देश के पहिले गृहमंत्री लेकिन ईसके बावजुद कभी भी काँग्रेस नेतावो द्वारा उनके बारे में सुनने को नही मिला।कभी गांधी नेहरू परिवार ने सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रशंसा नही की, उन्हे कभी याद नही किया।क्युकी वो अपने हितो से ज्यादा राष्ट्रहित के बारे में सोचा करते थे। क्युकी वो गांधी नेहरू परिवार से नही थे।

सरदार पटेल की कार्यशैली इतनी तप्तर थी की जितना समय नेहरू किसी बात को सोचने में लगा देते थे सरदार पटेल उतने हि वक्त में काम पुरा कर देते थे। उनके विचार अफाट थे, विचारो का कोई अंत नहि था। वो अपने कुशल बुद्धीमता से आने वाले संकट के बारे में पहिले हि जान जाते थे। ऐसे में अगर उन्हे प्रधानमंत्री बना दिया होता तो वर्तमान में जो भारत में समस्याए है वो कभी ना होती।ऐसा नही है कि सरदार पटेल का काँग्रेस पर प्रभाव नही था। वो नेहरू से वकालत में ही नही बल्की राजनीती कुटनीती में भी कही गुना ज्यादा कुशल थे। 1946 में प्रधानमंत्री पद के लिए 15 काँग्रेस कमिटियो में से 12 कमिटियो ने प्रधानमंत्री पद हेतु सरदार पटेल को चुना था और 3 कमिटियो ने नोटा किया था। लेकिन ईसके बावजुद महात्मा गांधी के कहने पर सरदार पटेल को प्रधानमंत्री न बनाकर नेहरू को बना दिया गया। सब लोग महात्मा गांधी का आदर सन्मान करते थे ईसलिए उनके जिद्द के सामने सरदार पटेल भी झुक गये। और नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने पर समर्थन व्यक्त किया। ऐसा सिर्फ 1946 में नही बल्की कही बार महात्मा गांधी ने काँग्रेस अध्यक्ष पद पर सरदार पटेल के चुनने के बाद भी किसी ओर को अध्यक्ष बनाया। महात्मा गांधी ने नेहरू को प्रधानमंत्री क्यु बनाया ये सवाल सवाल ही रह गया।

आझादी के बाद सरदार पटेल को उपप्रधानमंत्री एवम गृहमंत्री पद दिया गया। गृहमंत्री पद पर रहते उन्होने वो तमाम कार्य किए जो देश को अंगीकृत कर सके। सबसे बडा काम, 500 से ज्यादा रियासतो को एकीकृत कर अखंड भारत बनाना। बिना किसी शर्त, बिना किसी धारा 370 के हैद्राबाद, जुनागढ जैसी रियासतो को भारत से जोडा। लोगो में देशप्रेम की भावना जगायी। जनता के मन का प्रवाह राज्यप्रेम से देशप्रेम तक ले गए।।उन्हे जानबुझकर कही मामलो से दुर रखा गया। इसका मुख्य उदा- जम्मू काश्मीर की धारा 370। उन्हे नेहरू के कहने पर जम्मू काश्मीर की समस्या से दुर रखा गया। शायद नेहरू नही चाहते थे की जम्मू काश्मीर की समस्या जड से मिटे। उनकी दूरदृष्टीता का कोई अंत नही था। उन्होने तब भी नेहरू से काहा था की, ” चीन से संतर्क रेहना ही समझदारी है, चीन की भाषा मित्रो वाली नही, भावी शत्रुवाली है। तिब्बत पर चीन का कब्जा भारत में नई समस्यावो को पैदा करेगा।” लेकिन नेहरू चीन- प्रेम में कुछ ईस तराह से डुबे थे कि उन्हको चीन के अलवा कुछ नही दिख राहा था। नेहरू का सरदार पटेल की बातो को दुर्लक्ष करना कितना मैहगा पडा ये हम अच्छी तरह से जानते है। 1950 में गोवा के आझादी के लिए पटेल ने नेहरू से सिर्फ 2 घंटे मांगे थे, लेकिन नेहरू ने मना कर दिया। सोमनाथ मंदिर का पुनरनिर्मान भी सरदार पटेल ने नेहरू के विरोध में किया था। सरदार पटेल अपने धर्म, कर्तव्य से जागरूक थे। गृहमंत्री रहते हुए उन्होने अपने जिवन का कण कण देश के नाम किया।

सरदार पटेल के बारे में लंदन टाइम्स में लिखा गया कि, यदी पटेल के कहने पर चलते तो काश्मीर, तिब्बत, नेपाल के हालात आज जैसे न होते। सरदार वल्लभभाई पटेल आझादी के बाद पहिले प्रधानमंत्री बन जाते तो वो तमाम समस्या पैदा न होती जो वर्तमान में है। कभी जम्मू काश्मीर में धारा 370 ना लगती, गावो और शहरो मे ईतनी दुरी ना होती,रोजगार का स्वरुप ये ना होता, कभी गौ हत्या ना होती, गोवा को आझादी के लिए 1961 तक इंतजार न करना पडता, तिब्बत पर चिन का कब्जा न होता, POK कभी बन ना पाता, काश्मीर की जनता को भारत का अभिन्न अंग बनने के लिए इतना लंबा इंतजार न करना पडता, राममंदिर के लिए इतना विलंब ना होता, कभी आतंकवाद पैदा ना होता। वो समस्याए ही ना होती जो आज के विकास में बाधा बन रही है। युही उन्हे सरदार नही काहा जाता। वो तमामा भारतवासीयो के हृदय में वास करते थे, और हमेशा करते रहेंगे।

इतिहास हमे बहुत कुछ सिखाता है। इतिहास की बाते जब मनुष्य के जिवन में छप जाती है, तब उसका प्रभाव दिखना शुरू होता है। इतिहास का एक सही निर्णय भविष्य बना देता है। वजह क्या थी नही पता लेकिन एक गलती ने भारत को कही समस्योवो के आगे लेकर खडा कर दिया। इतिहास से सिखे! ये गलती हमसे ना हो। 2014 के हमारे एक सही निर्णय ने भारत को मजबुत बनाया है। और ऐसे ही सही निर्णय हमारे साथ भारत के कही पिढियो का भविष्य बनायेंगे।

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