फ्रांस में कुछ दिन पहले पैगम्बर साहब का कार्टून क्लास में दिखाने वाले एक हिस्ट्री टीचर शिक्षक सैमुअल पैटी की गला काटकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद से फ्रांस सरकार इस्लामिक संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है, जिसके विरोध में एक बार फिर से तीन दिन पहले फ्रांस में आतंकी हमला किया गया और नीस शहर में हमलावर ने एक महिला का सिर कलम कर दिया, जबकि चर्च के बाहर 2 लोगों की चाकू मारकर हत्या कर दी गई।
इन आतंकी घटना के बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आंतरिक (गृह मंत्री) जेराल्ड डारमेनिन ने आपात बैठक बुलाई और इस के बाद पूरे देश में इस्लामिक कट्टरपंथियों से सख्ती निपटा जा रहा है। इसके तहत पैन्टिन (Pantene Mosque Locked) जैसी कई मस्जिदों में ताला लगा दिया गया है और नोटिस पर यह लिखा गया है कि सरकार की तरफ से इस्लामिक गतिविधियों में शामिल होने की वजह से इसे बंद कर दिया गया है।
इसके अलावा पेरिस में नेशनल असेंबली के भीतर सांसदों ने पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक मिनट का मौन रखा, जबकि फ्रांस की ओर से इन मामलों पर की जा रही कार्यवाही पर दुनिया के कई देशों में जहां फ्रांस का समर्थन किया जा रहा है, जबकि कई देशों में आलोचना की जा रही है और इसके खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे हैं। इस समर्थन या विरोध से भारत भी अछूता नहीं है।
इस मामले पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को जहां फ्रांस द्वारा की जा रही कार्यवाही का समर्थन करते हुए ट्विट किया कि मैं फ्रांस में हाल ही में हुए आतंकी हमलों की कड़ी निंदा करता हूं। पीड़ितों और फ्रांस के लोगों के परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत फ्रांस के साथ खड़ा है, जबकि ईरान यूएई के अलावा इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी हमले की निंदा की है।
बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्वीट करके सभी सभ्य देशों को फ्रांस के साथ एकजुटता के साथ खड़े होने की बात कही। साथ ही दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फ्रांस को समर्थन दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका इस लड़ाई में अपने सबसे पुराने सहयोगी के साथ खड़ा है।
दूसरी ओर भोपाल सहित देश के कई शहरों में फ्रांस के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है और शोसल मीडिया पर भी बायकॉट फ्रांस का कैम्पेन चलाया जा रहा है। इसके अलावा बांग्लादेश की राजधानी ढाका में करीब 10 हजार से भी ज्यादा लोग रैली में शामिल हुए। कई मुस्लिम देशों ने फ़्रांस के सामानों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। कुवैत, जॉर्डन और क़तर की कुछ दुकानों से फ़्रांस के सामान हटा दिए गए हैं और वहीं लीबिया, सीरिया, पाकिस्तान और ग़ाज़ा पट्टी में फ़्रांस के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए हैं।
खैर अब असल मुद्दे पर आते हैं, देखा जाए तो किसी भी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का बड़ा महत्व होता है और यह बात दुनिया के हर देश पर लागू होती है। अगर आपने लोकतंत्र में किसी की अभिव्यक्ति को दबा दिया तो फिर लोकतंत्र का महत्व ही खत्म हो जाता है। कहने का अर्थ है कि लोकतंत्र में सभी को अपने आप को अभिव्यक्त करने का अधिकार होता है और इसमें किसी भी प्रकार के किंतु परंतु के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन साथ ही यह बात भी समझने योग्य है कि आपने किसी एक विचार को इतना महत्व दे दिया कि कोई उस पर कुछ बोल ही नहीं सकता है तो फिर होगा ये कि वहीं विचार पूरे लोकतंत्र पर हावी हो जाएगा। इस रूप में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट हो जाएगी और लोकतंत्र नष्ट हो जाएगा।
अब इसी बात को फ्रांस के संदर्भ में देखा जाए तो मुस्लिमों का कहना है कि आप हमारे नबी का अपमान नहीं कर सकते हैं, उनका कार्टून नहीं बना सकते हैं। अगर ऐसा आप करते हैं तो हम आपका विरोध करेंगे और सर काट देंगे। ये लोग ऐसा कुरान में लिखे होने के कारण कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा कुरान में लिखा है कि अगर आप नबी का अपमान करते हैं या इस्लाम के विरूद्ध कुछ करते हैं तो उसके मन में खौफ डाल दिया जाना चाहिए। उनके सर को काट दिया जाना चाहिए या उंगलियों को काट देना चाहिए। एक तरह ऐसा करने का उन्हें कुरान से धार्मिक निर्देश मिला हुआ है। अब आप इस बात को व्यवहारिक या लोकतांत्रिक नजरिए से देखेंगे तो इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट होती है और धार्मिक कट्टरपन का विष भी लोगों को निगलने लगता है।
इस वक्त फ्रांस में 10 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो इस्लाम का पालन करते हैं। अब फ्रांस अगर ये करने लगे कि भैया कोई एक विचारधारा है और उसकी कोई निंदा ही नहीं कर सकता है तो फिर आगे ये होगा कि यही विचारधारा भविष्य में फ्रांस पर हावी हो जाएगी। मुझे लगता है कि प्रगतिवादी विचाराधारा के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए ये कार्यवाही किया है, ताकि कट्टरपन को रोका जा सके और दुनिया को लोकतंत्र और सेक्यूलरिज्म की विचारधारा देने वाले देश में भी यह बचा रहे।
जबकि इस्लामिक कट्टरपंथी फ्रांस में वहीं कर रहे हैं, जो उन्हें धार्मिक निर्देश मिला हुआ है यानि लोगों में खौफ डालने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसी तस्वीर इसके पहले हम भारत में बेंगलुरू कलकत्ता, मुंबई जैसे कई शहरों में कई बार देख चुके हैं और हाल ही में स्वीडन में भी इसका नजारा देखने को मिला था। इस प्रक्रिया को बुलिंग भी कहते हैं और इनके लिए दूसरो को चुप कराने का यह सबसे कारगर रणनीति रही है।
ऐसे में फ्रांस ने कार्यवाही करके आतंकियों को स्पष्ट संदेश दिया है कि आप हमें भले ही डराने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हम आपसे डरें नहीं हैं और न आगे भी डरने वाले हैं। राष्ट्रपति मैक्रों ने यह बात भी स्पष्ट की है कि वे किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि उनकी यह कार्यवाही आतंकियों के खिलाफ की जा रही है। यही बात हम भारतीयों को भी कहेंगे कि वे कितना भी डराने का प्रयास करें तो आपको डरना नहीं है, क्योंकि अगर आप डर गए तो फिर उनकी विजय़ हो जाएगी, जो कि एकता में अनेकता की खूबसूरती को समेटे इस देश के लिए अच्छे संकेत नहीं होंगे।
एक कहावत है फ्री इज नाट फ्री यानि स्वतंत्रता आपको कभी ऐसे ही नहीं मिलती है। उसके लिए लड़ना ही पड़ता है। इसलिए डरें नहीं और जो हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है। उसे बचाकर रखना है। इसके लिए हमें लड़ना ही होगा। एक तो बात ये हो गई। दूसरी बात ये हैं कि भारत में जो हिंदू वो फ्रांस का समर्थन कर रहे हैं और उन्हें करना भी चाहिए। कई बार देखा गया है कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों में भी भगवान के चित्र या मुर्तियों का अपमान किया जाता है, तो हम उसका विरोध करते हैं। हमें विरोध करना भी चाहिए, लेकिन यहां एक बात हमेशा ध्यान रखें कि हमें कट्टर नहीं होना चाहिए या गालियां नहीं देनी चाहिए, बल्कि इसे अवसर की तरह लेना चाहिए और हम जो हैं और यानि जो हमारी विचारधारा है, हमारे वेद-पुराण-ग्रंथ और भगवान हैं, उनके बारे में उन्हें समझाना चाहिए।
ताकि लोगों को समझ में आए कि वास्तव में हमारे ईश्वर क्या है, हमारे भगवान क्या हैं और यह बात केवल हिंदू-सनातन ही नहीं बल्कि मुस्लिम, इसाई, बौध या हर एक धर्म पर भी लागू होती है। सबको अपने अपने धर्म की अच्छाई या आप उसे क्यों मानते हैं, इसे ठोस तर्कों के साथ रखना चाहिए। कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि जब भी इस तरह का विवाद सामने आता है तो हमारे पास अपनी विचारधारा को दूसरे को समझाने का अवसर होता है, ताकि और लोगों को पता चलें कि आखिर हमारे विचार कितने सुंदर है।
लेकिन यहां कई बार ऐसा होता है कि लोग गुस्से में आकर उल्टा सीधा करने लगते हैं। ठीक है हमें गुस्सा आता है, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए कि हम किसी का सर ही काट दें। ये जो सर काटना है। इससे हमें बचकर रहना है। अन्यथा आपमें और उनमें कोई फर्क नहीं रह जाएगा और ध्यान रखें गुस्से में ऐसी संभावना बनी रहती है, लेकिन दूसरी ओर यह भी देखें कि अब भारत ही नहीं पूरे यूरोप और अमरिका तक में इस्लामिक कट्टरपंथियों का विरोध होने लगा है, जबकि इसके पहले जब भारत मे इनका विरोध होता था तो यही पश्चिमी देश और उनकी मीडिया कहती थि कि भारत में मुल्सिमों को दबाया जा रहा है। भारत इस्लामोफोबिया से ग्रस्त है आदि-आदि, लेकिन आज यह बात पूरा दुनिया समझने लगी है कि हां कुछ तो है, इनके साथ कि जो गड़बड़ है।
इस्लामिल देशों की आज हालात ये है कि इनके देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बिल्कुल भी नहीं है। ज्यादातर इस्लामिक देशों या समूहों में नए विचारों को लेकर कोई भी खुलापन नहीं है। इसलिए वो समाज प्रगति नहीं कर पा रहा है और यही कारण है कि ये दुनियाभर में पिट भी रहे हैं। बहुत से पढ़े लिखे मुसलमान भी ये बात नहीं समझ रहे हैं कि यहां पे वास्तव में कुछ समस्या है, जबकि दुनिया समझने लगी है। इन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आदत डालनी ही होगी। अगर ऐसा नहीं कर करते हैं तो नहीं चल पाएगा और यही हो भी रहा है।
अभी पाकिस्तान की ही बात करें तो जब आप वहां के लोगों से बात करेंगें तो आपको लगेगा कि इन्हें कुछ पता ही नहीं है। लोग उन्हें मदरसा छाप बोलते हैं, क्योंकि इन्हें अभिव्क्ति की स्वतंत्रता है ही नहीं। इसलिए जो खुली विचारधारा है वो इनके पास आती नहीं है। इस कारण से उनके मन में क्रिटिकल थिकिंग नहीं आती है और कठमुल्ला मौलवी उनपर शासन कर पाते हैं।
ऐसे में इन्हें समझना है कि अगर पूरी दुनिया में इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ लामबंदी हो रही है और इन्हें इंसानियत के लिए खतरा बताया जा रहा है तो इसमें सबसे ज्यादा दोष इस्लाम के मताबलंबियों और उनके उन धार्मिक नेताओं का है, जिन्होंने समय के अनुसार इस्लाम को बदलने का प्रयास नहीं किया। यदि यही चलता रहा तो फ्रांस से उठी क्रांति आने वाले सालों में पूरे संसार को इस्लाम के खिलाफ लामबंद कर देगा।
इन्हें यह भी समझना होगा कि जिस देश में दर्जनों प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट एक कार्टून पर भून दिए गए हो, तो वहां लड़ाई हिंदू बनाम मुसलमान-इसाई या अभिव्यक्ति भर की की नहीं रह जाती है। बल्कि प्रतिष्ठा की भी लड़ाई बन जाती है। इसलिए कट्टरपंथी इस्लाम के पैरोकारों यह बात जान लें कि पूरा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से नहीं चल सकता है, जहां है, वहां चलाएं। गलती फ्रांस सहित दुनियाभर के मुस्लिमों की भी है उन्हें इस मसले को बैठकर आराम से सुलझाना चाहिए था। बकायदा किसी की गर्दन काटकर नहीं।
फ्रांस की सीमा में फ्रांस के कानून मान्य होगा, न कि किसी इस्लामिक देश का। इन्हें इतना तो याद रखना चाहिए था जब इस्लामिक कट्टरता के युध्द में यह एक अदद छत और 2 वक्त की रोटी के लिए बिलबिला रहे थे तो हंगरी-पोलैंड जैसे देश के विरोध के बावजूद फ्रांस ने जगह दी, लेकिन नहीं, बेशक घर में नहीं है दाने लेकिन अम्मा चली भुनाने टाइप की स्थिति है।
मुझे लगता है यही क्रम जारी रहा और इन्होने समय रहते अपने अंदर सुधार नहीं लाया तो भविष्य में बड़ा भारी पलायन होगा और इतने पर भी अगर ये नहीं मानें, तो आशंका है फ्रांस भी वर्मा की तरह कार्यवाही करेगा, इन्हें दर-बदर होना पड़ेगा और इस बार कोई फ्रांस जैसी गलती नहीं दोहराएगा। भारत भी रोहगियां शरणार्थियों और सीएए विरोधी प्रोटेस्ट, दिल्ली दंगा से सबक लेते हुए इन्हें शरण नहीं देगा। ऐसे में मारा जाएगा एक गरीब मुसलमान, जिसे न कट्टरता ने कुछ दिया और न ही सेकुलरता ने।
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