तरुणाई के दिन थे वो जब हमारे गाँव से होकर ये शिला पूजन यात्रा गुजरी थी | बच्चे बच्चे के माथे पर भगवा लहरा रहा था और “कसम राम की खाते हैं ,हम मंदिर वहीँ बनायेंगे से टोल की हर गली गुंजायमान हो रही थी और हाँ तब भी पत्थर बरस रहे हम पर | शान्तिप्रिय समाज के लोग अपनी चिर कायरता और द्वेष का परिचय देते रहे हैं बहुत पहले से ही |

बहुत जगह संघर्ष इतना बढ़ा की श्री राम जी का नाम लिखी उस राम शिला पर रत्ती भर भी आंच नहीं आएं हमारे दर्जनों साथियों ने अपने सर फुटवाए मगर अलख तो जग चुकी थी और फिर इसे ज्वाला बनते देर नहीं लगी | प्रिय लाल कृष्ण आडवाणी जी की वो दहाड़ कि लाल चौक पर तिरंगा फहराया जाएगा से यूँ ही पूरे देश का लहू उबाल खा गया था | फिर शिला पूजन तो युवाओं की तैयार हुई एक पूरी नई नस्ल के लिए अपने प्रभु श्री राम के लिए कुछ करने का पहला अवसर था | एक क्रांति बन गई थी -राम शिला पूजन

शिला पूजन वो आंदोनल था , विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा आहूत किया गया जिसने शहर गाँव , जिसने जाति क्षेत्र ,भाषा हर बंधन को अपने अंदर आत्मसात कर लिया | देश का युवा वर्ग शिला को राम जी की खड़ाऊ की तरह शिरोधार्य किये हुए था और हर घर पर माताएं ,शबरी की तरह अपना स्नेह लुटाने को तैयार रहती थीं | तब अचानक से दादा जी का बार बार दोहराया जाने वाला वाक्य मुझे याद आता रहा ” राम जोड़ते हैं , हमेशा से | राम का अर्थ ही जोड़ना है |


विश्व हिन्दू परिषद् की ये वो चिंगारी थी जो राम का आशीर्वाद पाते ही एक एक हिन्दू आत्मा के भीतर धधकने लगी | अब उसे या बात अखर रही थी कि राम के देश में राम को स्थान नहीं | ये नहीं होगा कैसे भी किसी भी कीमत पर होने नहीं दिया जाएगा |

इस पूरे महायज्ञ से जुड़े हर रामात्मा प्राण को हम सबका नमन , हम सबका नमन |

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