कल रामस्वरूप जी की जन्मतिथि थी. साधारण जन्मतिथि भी नहीं बल्कि जन्म शताब्दी वर्ष

लेकिन कल के सन्नाटे ने एक प्रश्न खड़ा कर दिया की क्या भारत इस मनीषी को यूँ ही भुला देगा

वर्तमान भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली विचारक का नाम अगर सोचा जाये तो श्री राम स्वरुप जी का नाम सबसे पहले स्मृति में आएगा

श्री रामस्वरूप जी का जन्म 12 अक्टूबर 1920 को हुआ था उन्होंने गृहस्थी के बंधन में ना बंधते हुए वैचारिक संघर्ष को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया l सीताराम गोयल और कोलकाता के उद्योगपति लोहिया जी से उनकी अभिन्नता थी, इन दोनों को रामस्वरूप जी ने कम्युनिस्टों के वैचारिक चंगुल से निकाला था ,इन तीनों ने मिलकर खोखले वामपंथ के विरुद्ध वैचारिक आंदोलन छेड़ दिया इसमें लोहिया जी ने आर्थिक सहयोग दिया तो बाकी दोनों ने वैचारिक l

1948 में रामस्वरूप जी की अंग्रेजी में एक लघु पुस्तिका “कम्युनिस्ट खतरे से हमें लड़ना होगा” प्रकाशित हुई l इससे इस संघर्ष का शंखनाद हुआ रामस्वरूप जी ने सोचा आज शिक्षा, कला ,संस्कृति ,पत्रकारिता आदि में वामपंथी हावी है ,इस खतरे को भांप कर आजादी के समय से ही हिंदू विचार के पक्ष में बौद्धिक जनमत जगाने में अग्रणी रहे l

12 अक्टूबर 1920 को हरियाणा के सोनीपत मे एक संपन्न वैश्य परिवार में जन्म ।1941 मे सेंट स्टीफेन कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक। तदुपरांत भारत छोड़ो आंदोलन में भाग एवं जेल।अरुणा आसफ अली,राममनोहर लोहिया, अशोक मेहता और जयप्रकाश नारायण के घनिष्ठ संपर्क में।
तदुपरांत मीराबेन के साथ ऋषिकेश में रहे।

गहन अध्ययन और साधना ने दर्शन की ओर मोड़ा।
पहले चेंजर्स क्लब बनाया जिसमे उनसे1 वर्ष4 दिन छोटे सीताराम गोयल के साथ ही लक्ष्मीचंद जैन,गिरिलाल जैन, राजकृष्ण आदि दिल्ली के अध्येता सक्रिय रहे।सब दिल्ली में आसपास ही रहते थे।शक्तिनगर, कमला नगर, सिविल लाइंस क्षेत्र में।रामस्वरूप जी सबके प्रधान मार्गदर्शक मित्र थे।
अपने सशक्त लेखन से वे बर्ट्रेंड रसेल, श्री अरविन्द, आर्थर कोइस्लर,सरदार पटेल आदि द्वारा सराहे गए।श्री अरविन्द ने कम्युनिज्म और peasantry पर उनकी पुस्तक को आशीर्वाद दिया था।लोहिया के मित्र फिलिप स्प्रेट,स्वयं लोहिया और अशोक मेहता उनके आत्मीय रहे।
सोवियत संघ में किसानों की निर्मम हत्याओं और खेती के सर्वनाश के तथ्यों को भारत में सर्वप्रथम उन्होंने ही प्रमाण पूर्वक बताया जिससे लोहिया और अशोक मेहता कम्युनिज्म के विरोधी हुए ।
1955 में उन्होंने एशिया की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए समिति बनाई।तब उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपतिआइजन ऑवर ने न्यूयॉर्क में एक सेमिनार में अपनी बात रखने बुलाया।
फिर वे क्रमशः साधना और अध्यात्म के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ते चले गए और उन्होंने 1982 में वॉइस आफ इंडिया नामक प्रकाशन संस्था अपने अभिन्न सखा सीताराम गोयल के साथ स्थापित की जिसने हर्षनारायन ,,सेठना जी, किशोरी शरण लाल ,धर्मपाल आदि की अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तकें छापीं और एक प्रचण्ड हिन्दुत्वनिष्ठ बौद्धिक आंदोलन और जागृति को जन्म दिया।

श्री रामस्वरूप जी एक महान दार्शनिक और योगी थे। 1947 ईस्वी के बाद भारत के 2 सर्वश्रेष्ठ विद्वानों और हिंदुत्व राष्ट्र के चिंतन के दिग्गजों में से श्री रामस्वरूप जी और श्री सीताराम जी गोयल ,यह दो अनन्य है ।।रामस्वरूप जी का यह जन्म शताब्दी वर्ष है और कल उनका जन्मशताब्दी दिवस भी था।

जहां तक रामस्वरूप जी का प्रश्न है, उनकी सबसे उल्लेखनीय पुस्तक है – ‘हिन्दू व्यू ऑफ क्रिश्चियेनिटी एंड इस्लाम’, जो शायद ईसाई और इस्लामी मजहबी विचार पर सबसे गहन टीका है. इसमें बताया गया है कि उनमें हिन्दुओं और बाकी अन्य सभी को अपनी संकुचित सोच में कन्वर्ट करने की गलत धारणा इतनी गहराई से क्यों बैठी है.

सभी पंथ एक से नहीं हैं, जिसे उनके कई तरह के मजहबी आख्यानों और पंथों के सर्वोच्च सत्य पर विशिष्ट मिल्कियत के दावों से आसानी से समझा जा सकता है. रामस्वरूप जी ने इस पूर्वाग्रही मानसिकता और भावनात्मक दृष्टिहीनता को, ऐसे विशिष्टता वाले दावों से परे, सिर्फ एक बौद्धिक या ऐतिहासिक परीक्षण ही नहीं, योगी की सी गहन दृष्टि का उपयोग करते हुए उजागर किया है. उन्होंने हिन्दुओं के विरुद्ध झूठे आरोपों का प्रतिकार करने के लिए हिन्दुओं में अपनी खुद की गहन वैदिक शिक्षाओं की समझ का विवेक जगाया है. धर्म और अध्यात्म पर हिन्दू दृष्टिकोण को समझने के इच्छुक लोगों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए.

पोस्ट का अधिकतर भाग धेय रामेश्वर मिश्र पंकज जी की फेसबुक से साभार

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