आपको याद है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो शुरू के सालों में पूरे विपक्षियों और मोदी विरोध में दिन रात जल कर भस्म होने वालों के पास कौन सा एक सर्वोपरि मुद्दा था – वो था मोदी जी का सूट , पेंट , मोदी जी का चश्मा . उस समय उनके पहलनावे को ही एक मुख्य मुद्दा बना दिया गया था .

इन दिनों मामला कोट-पेंट से उतर कर फटी हुई जींस – ओह ! माफ करिएगा रिप्ड जींस पर आ गया है . उत्तराखंड में भाजपा के नए मुख्यमंत्री जी अपनी बातों के बीच यह कह दिया की ये कटी फटी जींस भारतीय संस्कृति के पहनास वेश भूषा के अनुरूप नहीं है तथा इससे समाज में कोई अच्छा संदेश नहीं जाता .

बताइए भला , पहली बात तो ये कि भारतीय परिधान विशेषकर महिलाओं की साड़ी विश्व के कुछ खूबसूरत परिधानों में से एक हैं , ऐसा पूरी दुनिया कहती और मानती है . और अब 5 जी वाले इस युग में किसे साड़ी पहननी है किसे सलवार कुर्ता या किसे फटी जीन्स और किसे मिनी स्कर्ट ये तय करना , पहना सब उन्हें के जिम्मे है खासकर तब जब यहां अब पश्चिमी सभ्यता संस्कारों के अंधानुकरण के चरम पर हैं . असल में परिधान पर घामासान तो तब भी हो जाता है जब कोई साड़ी , चूड़ी , बिंदी की बात कर देता है . प्रगतिशीलता का झंडा उठाए लोग उन्हें भी पुरातन , दकियानूसी और रूढ़िवादी कर देते हैं .

तो भाजपा , संघ , हिंदूवादी से लेकर राष्ट्रवादी तक को न तो फटे हुए जींस पर बोलने का अधिकतर है न ही बुर्के पर खासकर तब जब आपको पता ही नहीं -रे पागलों , मासूमों , पिछड़े हुए भारतीयों – That is ripped jeans -got it . इसलिए सिर्फ देखने का , बोलने का नई .

मगर एक बात तय है कि जितना बड़ा आंदोलन , विरोध इन जीन्स लिपस्टिक वाले गैर जरूरी मुद्दों पर खड़ा कर दिया जाता है उसका आधा भी कभी ,स्त्रियों के लिए आज चुनौती बन रहे मुद्दों पर भी हो जाए तो हालत और हालात दोनों बदल सकते हैं .

बहरायल ये फटी जींस पिछले दो दिनों में फट फट कर चीथड़े हो गई है इसलिए इस मामले पर अब रफूगर भी कुछ नहीं कर सकता . एक दो दिनों में ये सारा मामला फटफटा के खुद फटी जीन्स – I mean ripped jeans -हो जाएगा . लिल्लाह से वल्लाह हो गया ये तो .

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