दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री सना खान और एक मस्जिद के मौलवी मुहम्मद अनस के निकाह का यह चित्र भारत भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। न तो मुहम्मद अनस कोई बड़ा उद्योगपति आदमी है, न कोई सुदर्शन व्यक्तित्व और न ही कोई बहुत शक्तिशाली पद पर है, वह तो जोकरनुमा चेहरे और और वेशभूषा वाला एक कट्टर मुस्लिम व इस्लाम का विद्वान भर है जबकि दूसरी ओर सना खान? एक बहुत सुंदर, पर्याप्त धनी, चर्चित अभिनेत्री जिसके लिये किसी भी अमीर आदमी से शादी करना कोई मुश्किल काम नहीं था, लेकिन उसने चुना इस एक साधारण परंतु कट्टर मुसलमान को।
ऐसा नहीं है कि सना ने ये निकाह शरीयत की किसी धारा को नकारकर किया हो या यह शर्त लगाई हो कि अनस दूसरी बीबी नहीं ला सकेगा या तीन तलाक नहीं देगा। वो ये सब जानती है लेकिन उसने किसी उदार हिंदू की तुलना में एक कट्टर मौलाना को चुना क्योंकि सना के लिये इस्लाम उसका अपना मजहब है चाहे उसमें लाख बुराई हों जबकि हिंदू लड़कियों को फेमनिज्म के नाम पर हिंदुत्व जैसे उदार धर्म और हिंदू युवकों जैसे उदार पुरुषों में भी हजारों कमियाँ दिखाई देती हैं।
क्या कोई हिंदू फेमनिस्टिक मोहतरमा एक उदाहरण बताएगी जब किसी हिन्दू अभिनेत्री ने किसी विद्वान ब्राह्मण पुजारी से उसकी विद्वता पर मोहित होकर शादी की हो? लड़की तो प्रेम किसी से करेगी और बाद में तौल मोलकर किसी ज्यादा एप्रोच वाले लड़के में ऑपरच्यूनिटी देखकर, ‘मैं पापा का दिल नहीं तोड़ सकती।’ का डायलॉग मारकर, अपने हनीमून की पिक्स शेयर करती नजर आती है।
सत्य ये है कि हिन्दू लड़कियों का ‘तोल मोल चरित्र’ व ‘हिंदुत्व के प्रति तिरस्कार’ और सना खान, आरफा खानम और शेहला रशीद जैसी लड़कियों को देखकर कहना पड़ेगा कि भारत में हिंदुओं की दिशा डांवाडोल है।
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