प्रेम क्या है? सावित्री का वह तप, जिसकी शक्ति से वे अपने मर चुके पति को यम के यहाँ से छीन लाईं…? या मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की शक्ति, जिससे वे बिना किसी सेना के ही समूची राक्षस जाति से उलझ गए और अपनी पत्नी को रावण से बचा लाये? या माता सती की मृत्यु पर उपजा महादेव का वियोग, जिसके कारण शिव अपने कंधे पर शव उठाये ब्रह्मांड में भटकने लगे थे? या उन असँख्य क्षत्राणियों का अपने पतियों के प्रति समर्पण, जिसके कारण वे अपने साथी के साथ ही चलने के लिए हँसते हँसते हवन कुण्ड में उतर जाती थीं? या तप, शक्ति, समर्पण, वियोग, साहस सभी?


प्रेम शायद एक दूसरे का हाथ पकड़ कर लिए गए अग्नि के उन सात फेरों का नाम है जो दो अनजान व्यक्तियों को एक दूसरे के लिए तपस्या करने की प्रेरणा देता है। क्योंकि वह डोर न होती तो न सावित्री सत्यवान के लिए यम से लड़ पातीं, न राम सीता के लिए रावण से लड़ पाते… न शिव पागलों की तरह भटकते, न उनकी बेटियां हँसते हँसते जौहर की अग्नि में उतर पातीं…


कभी सोचा, कृष्ण वापस गोकुल क्यों नहीं आये? सृष्टि का सबसे बड़ा न्यायधीश, इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रेमी अपने प्रेम के साथ न्याय क्यों न कर सका? भगवान श्रीराम अपने प्रेम के लिए समुद्र लांघ गए थे, और श्रीकृष्ण अपने प्रेम के लिए यमुना को भी पार न कर सके? क्यों? शायद इस कारण कि कृष्ण और राधिका के मध्य सप्तपदी की प्रतिज्ञा नहीं थी। वह डोर नहीं थी जो उन्हें खींच लाती। होती तो कृष्ण दौड़े आते… जो सुदामा के लिए नंगे पाँव दौड़ पड़े थे वे राधिका के लिए न दौड़ते?


प्रेम मनुष्य में भय नहीं भरता। जो भयभीत करे, भागने या मरने की ओर धकेले वह और कुछ भी हो प्रेम नहीं होता। प्रेम शक्ति देता है, यमराज से भी लड़ जाने की शक्ति। प्रेम मनुष्य को राम और शिव बनाता है, प्रेम सावित्री और पद्मिनी बना देता है।


भगवान शिव के पड़ोसियों में आते हैं कैलाश मानसरोवर के हंस! भारत में इतनी प्रतिष्ठा किसी अन्य पक्षी को प्राप्त नहीं। इन्हें सबसे विद्वान पक्षी समझा जाता है। जानते हैं इनमें विशेष क्या है? इनमें विशेष यह है कि ये कभी अपना साथी नहीं बदलते। यदि जोड़े का एक पक्षी मर जाय तो दूसरा जीवन भर अकेले रहता है। वही प्रभु श्रीराम की एकपत्नीव्रत वाली निष्ठा! प्रेम अंततः मनुष्य में यही निष्ठा भरता है। हंसों में यह निष्ठा प्राकृतिक होती है, पर मनुष्यों में यह निष्ठा सप्तपदी भरती है।


वट सावित्री व्रत के दिन सज धज कर वटवृक्ष की परिक्रमा करती स्त्रियां वस्तुतः उसी निष्ठा और समर्पण को प्रणाम करने जुटती हैं जो एक सामान्य बालिका को सावित्री बना देती है और जिसे प्रेम कहते हैं। बहुत बहुत बधाई उन सभी देवियों को…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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