भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती आज पूरा सनातन धर्म मना रहा है. शंकराचार्य का जन्म वैशाख की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आठवीं सदी में केरल में हुआ था. शंकराचार्य के पिता की मत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी. बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्‍यासी जीवन की तरफ था. लेकिन उनके मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी जीवन अपनाएं।

कहा जाता है कि 8 साल की उम्र में एक बार शंकराचार्य जब अपनी मां शिवतारका के साथ नदी में स्‍नान के लिए गए हुए थे. वहां उन्हें मगरमच्‍छ ने पकड़ लिया. जिसके बाद शंकराचार्य ने अपनी मां से कहा कि वो उन्हें संन्यासी बनने की अनुमति दे दे वरना ये मगरमच्छ उन्हें मार देंगे. जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें संन्यासी बनने की अनुमति दे दी।

बौद्ध और जैन मतावम्बलियों से देश की बौद्धिकता और सांस्कृतिक सभ्यता को आजाद कराने के लिए  आदि शंकराचार्य ने देश भर में शास्त्रार्थ किए और बौद्ध-जैन धर्म के सभी दार्शनिकों को शास्त्रार्थ में परास्त किया । शंकराचार्य ने भारत भूमि की यात्रा प्रारंभ की जिसे ‘शंकर दिग्विजय यात्रा’ कहा जाता है।

यह कोई युद्ध यात्रा नहीं थी। अपितु इसे ज्ञान यात्रा कहना उचित होगा, क्योंकि आदि शंकराचार्य ने एक रणनीति बनाई थी जिसके तहत वह भारत के विभिन्न धर्म केंद्रों की यात्रा करते और वहाँ उपस्थित धर्म गुरुओं को तर्क और शास्त्रार्थ की चुनौती देते। हारने वाला व्यक्ति जीतने वाले का शिष्यत्व स्वीकार करता। यह आदि शंकराचार्य का चमत्कार ही था कि पूरे भारतवर्ष में उन्हें कोई भी नहीं हरा पाया।

आदि शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा का उद्देश्य ही था, सनातन धर्म की स्थापना करना। उन्होंने न केवल दूसरे पंथों के विद्वानों को अपना शिष्य बनाया अपितु सनातन धर्म में ही जो विभिन्न परंपराओं के नाम पर बँटे हुए थे उन्हें भी संगठित किया। भारत की चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना का उनका उद्देश्य ही था भारतवर्ष का एकीकरण।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.