आज छ दिसंबर है ,यानि शौर्य दिवस -आधुनिक भारत में हिंदू पराक्रम का पर्याय और आज देश भर में फैले सनातनी राष्ट्रवाद का उत्प्रेरक दिवस। वो दिन जब उन दिनों जनसंघ की कोख से निकला सपूत राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी अपने लौह पुरुष श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी के शंखनाद से प्रेरित होकर उस यात्रा पर निकल चला था जिसकी परिणति आज हम “भारत माँगे हिन्दू राष्ट्र ” के रूप में देख सकते हैं।
हम उस समय के साक्षी और साझेदार सनातनियों के लिए ये बहुत जरुरी हो जाता है कि आज और आने वाली तमाम पीढ़ियों के इस यात्रा और इससे जुड़े हर पड़ाव को, एक धरोहर के रूप में ,उनके लिए सहेज दें। ये इसलिए भी बहुत जरुरी है क्यूँकि हिन्दुस्तान के बच्चों को ये पता चलना चाहिए और याद रखना चाहिए कि कैसे उन दिनों की कांग्रेसी सरकार जो भयंकर रूप से मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी थी ने , न सिर्फ हिन्दुओं को उनके अपने हिन्दुस्तान में ज़िंदा जलाए मारे काटे हुए देखा बल्कि मुलायम सिंह जैसे अ हिन्दू मानसिकता वालों ने जनरल डायर की तरह निहत्थे कार सेवकों पर सिर्फ इसलिए गोलियां चलवाईं क्यूंकि उन्होंने , बाबर की निशानी को हमेशा के लिए नेस्तनाबूत कर दिया था।
उस वक्त मैं एक 19 वर्ष का युवक और प्रतियोगी परीक्षाओं में संघर्षरत छात्र था और संयोगवश उन दिनों गाँव पहुंची “शिला पूजन यात्रा ” से अपने आप ठीक उसी तरह जुड़ कर समाहित हो गया था जैसे असंख्य छोटी छोटी नदियाँ माँ गंगा में मिल कर पवित्र निर्मल हो जाती हैं।
“बच्चा बच्चा राम का ,जन्मभूमि के काम का ” गले में भगवा गमछा धारे और माथे पर तिलक लगाए जब हमारी टोली शिला पूजन यात्रा के लिए गाँव गाँव घूम रही थी तो कुछ विशेष मुग़ल बस्तियों के पास से गुजरने पर ठीक वैसा ही एहसास होता था जैसे सेना पर खड़े हमारे जवानों को होता है। शरीर का एक एक रोम खड़ा होकर जोर से ,और जोर से “जय श्री राम ” “कसम राम की खाते हैं : हम मंदिर वहीँ बनाएंगे ” के जयघोष और हुंकार से हम सामने आ रही हर बाधा ,हर भय को ध्वस्त करते बढे जा रहे थे।
उन दिनों हमारे वरिष्ठ सहपाठी बताया करते थे कि कैसे उनके बैच के एक युवक ने श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी द्वारा लाल चौक कश्मीर पर तिरंगा फहराने की उनकी घोषणा और साक्षी बनने के लिए युवती का भेष धारण कर जम्मू की सीमा तक पहुँच गया था और वहाँ गिरफ्तार होने पर भेद खुलने पर पकड़ कर वापस भेज दिया गया था।
6 दिसंबर 1992 , बिहार के हम हज़ारों छात्र उस दिन बैंकिंग सर्विसेज़ रिक्रूटमेंट बोर्ड ,जयपुर द्वारा आयोजित बैंकिंग भर्ती परीक्षा देने के लिए राजस्थान की राजधानी जयपुर पहुँचे हुए थे। हमारी परीक्षा दिन की दूसरी पाली में थी यानी दो बजे से 4 बजे तक। सुबह से लेकर हमारे परीक्षा हॉल में प्रवेश करने तक कुछ भी असामान्य नहीं था।
किन्तु परीक्षा के ख़त्म होने के बाद जैसे ही हम सब उस विद्यालय से सड़क पर पहुँचे , चारों ओर छाई बदहवासी से अनुमान लग हो गया था कि कुछ बहुत बड़ा हुआ है। हर व्यक्ति तेजी से भागा दौड़ा चला जा रहा , शायद अपने घर और अपनों के पास। रिक्शे टैम्पू वैगेरह सब नदारद हो चुके थे। हम शायद 40 50 छात्र उस केंद्र से पैदल ही बस स्टैंड और फिर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े।
जब तक हम स्टेशन पहुँचे , कर्फ्यू लग चुका था। रेल और बस सेवाएं बंद की जा चुकी थीं। आदतन सिर्फ एक दो दिन के खाने पीनेऔर रेल का किराया देने लायक थोड़े से पैसे साथ लिए हम सैकड़ों छात्र अब जयपुर रेलवे स्टेशन पर अटक गए थे। दिसंबर की वो सर्द रातें , तन पर पहने कपड़ों के अलावा अगर कुछ हमारे पास बच गया था तो वो था “जय श्री राम ” जयघोष का अमोघ रक्षा कवच।
खाना पीना पैसा सब सारे छात्रों का ख़त्म हो चुका था और जिनके पास थोड़ा बहुत बचा भी था तो किसी काम का नहीं था क्यूंकि तमाम होटल ढाबे बंद कर दिए जा चुके थे। ठीक उसी समय भगवान् राम के हनुमान की तरह भारतीय सेना और सुरक्षा बलों की एक विशेष बटालियन जो उन दिनों वहीँ तैनात थी वो सामने आई और अगले एक हफ्ते तक उन्होंने हमें अपने परिवार के बच्चों की तरह संभाल लिया।
हमारे खाने रहने ,कम्बल दरियाँ और हमारी सुरक्षा तक की सारी जिम्मेदारी उठाए उन सैनिक भाईयों ने हम सबके लिए जो किया वो हम कभी नहीं भूल सकते। दिन में दो बार समूह बना कर पास के एक बड़े ढाबे में भोजन के लिए हमें ले जाते और वापस लाते समय ये सैनिक भाई हमारे साथ वैसे ही चौकन्ने होकर चलते थे जैसे किसी बड़े अधिकारी मंत्री के साथ। हम बीच में अचानक ही शरारत करने के अंदाज़ में “जय श्री राम ” का जयघोष कर देते थे। दर्जनों घरों की खड़िकियाँ अचानक खुल कर बंद हो जाया करती थीं।
बाद में तो स्टेशन पर जब हम जय श्री राम का जयघोष करते फौजी भाई भी हमारे साथ ही हुंकार भर कर जय श्री राम को गुंजायमान कर देते थे। हफ्ते भर से अधिक समय तक वहाँ फँसे हम नहीं जानते थे कि उन दिनों फोन मोबाइल की सुविधा के न होने के कारण हमारे घर परिवार वालों पर क्या बीत रही थी ,मगर विश्वास था कि इधर हम राम के भरोसे हैं तो उधर वो भी राम के भरोसे ही हमारे कुशल होने के प्रति निश्चिन्त होंगे।
हमारी वापसी एक विशेष रेल यात्रा से पूरी हुई और पटना में हमें लेने देखने आई भीड़ ने जिस गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया उसने हमारी सारी थकान वैसे ही दूर कर दी जैसे प्रभु श्री राम के हाथ भर फेर देने से कपिराज सुग्रीव के सारे घाव भर गए थे।
वे दिन , वे पल , वो यादें सब कुछ मस्तिष्क में आज भी वैसे ही सुरक्षित हैं जैसे हम उन दिनों अपने सैनिक भाइयों और भगवान श्री राम के नाम के कवच को ओढ़े हुए सुरक्षित थे।
जय श्री राम।
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