अपने प्रदेश में घट रही सारी जरूरी घटनाओं /अपराधों को दरकिनार करके टीआरपी केस में रिपब्लिक चैनल और अर्णब गोस्वामी के पीछे पड़ी महाराष्ट्र की प्रदेश सरकार थोड़े थोड़े दिन बाद किसी न किसी कारणवश चर्चा में आ ही जाती है। अब ये इत्तेफाक या दुर्भाग्य कि ज्यादातर बार इसका कारण सुखद तो कतई नहीं होता।

अभी कुछ समय पूर्व ही , बॉलीवुड में ड्रग्स के फैले हुए जहर के कारण विषाक्त हुए माहौल में सिनेमा जगत को एक विकल्प के रूप में उत्तर प्रदेश के शहरों को चुनने और उन्हें फिल्म सिटी के रूप में विकसित करने के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से बिफर कर मानो पूरे महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें निशाने पर लेकर खुद अपनी सरकार और प्रशासन की तरफ ध्यान देने की नसीहत दे डाली थी।

इस बीच हाथरस की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के समय दूसरों के साथ महाराष्ट्र की प्रदेश सरकार और प्रमुख मंत्रियों ने योगी सरकार के प्रति जम कर भड़ास निकाली थी। लेकिन उस समय सरकार को शायद ही ये ख्याल आया हो कि बहुत जल्द एक के बाद एक छोटे बड़े स्तर पर पार्टी के प्रतिनिधियों पर यौन प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगने वाले हैं।

सरकार के नुमाइंदों पर बलात्कार ,यौन शोषण आदि के बेहद गंभीर आरोपों के सिलसिले ने सरकार की शुचिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुमबई में प्रशासन और पुलिस की ठीक नाक के नीचे , ड्रग्स के इतने बड़े कारोबार की खबर न हो पाने से क्षुब्ध स्थानीय सरकार के लिए ये दूसरा बड़ा झटका लगने जैसा है

मामला कितना गंभीर है ये इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार के मंत्री तक इन सबके चपेट में आए और अपराधों की सारी कलई खुल कर लोगों के सामने आ गई। हालाँकि मामला बहुत दिनों तक राजनीतिक हलकों में उछलते रहने के बाद पीड़िता द्वारा खुद ही शिकायत वापस लेने के बाद फिलहाल के लिए टल सा गया है।

ऐसे में जबकि कई बार परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से , मुख्यमंत्री ,उनके पुत्र आदि के अदूरदर्शी निर्णयों और उससे अधिक दुर्वचनों के कारण पहले से ही आलोचना के पात्र बन रहे सरकार के दोनों ही सहयोगी शुचिता के मामले में बैकफुट पर चले गए हैं।

एक के बाद एक लगातार नकारात्मक कारणों से खबरों में रह कर कोई भी राज्य ,क्षेत्र अपनी साख और प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने जैसा काम नहीं करेगा। महाराष्ट्र में प्रदेश भाजपा द्वारा अपेक्षित उग्रता और त्वरित प्रतिक्रियात्मकता नहीं होने के कारण राज्य सरकार चाहे तो कम से कम अनावश्यक बयाबाजी से परिदृश्य में जबरन आने की प्रवृत्ति से बच सकती है। दूसरी तरह सरकार को अविलम्ब ही अपने प्रतिनिधियों के सामाजिक व्यवहार के लिए मापदंड तय करने चाहिए।

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