सबसे पहले आप सबको सावन मास की शुभकामनाएँ ।
भारतीय परम्परा में शिव का विशिष्ट स्थान है । त्रिदेव – ब्रह्मा ( सृजनकर्ता ) , विष्णु ( पालनकर्ता) और महेश ( विनाशक) में से महेश स्वयं शिव हैं । वे आदि देव हैं । उनकी उत्पत्ति को कोई नहीं जानता । एक कथा है , त्रिदेव के बाक़ी दोनों देवताओं ने एक बार शिव की उत्पत्ति के बार में जानने की कोशिश की । विष्णु जी को नहीं पता चला , उन्होंने हार मान ली । ब्रह्मा जी मिथ्या बोल दिया की उन्हें पता चल गयी उत्पत्ति , इससे अप्रसन्न होकर उन्हें अभिशाप मिला जिसके चलते , सृष्टि के सृजनकर्ता होते हुए भी उनकी पूजा नहीं होती । मंदिर भी गिने चुने हैं उनके ।
संस्कृत के व्याकरण के सूत्र ( जिसे बाद में आचार्य पाणिनि ने पुस्तकबद्ध किया ) और संगीत के सातों सुर , शिव के डमरूनाद से निकले बताए जाते हैं । संस्कृत व्याकरण वास्तविकता में गणित की तरह है, सूत्रों पर आधारित । संधि करने के नियम ऐसे की जैसे लिखने वाले ने जिह्वा का ऑपरेशन किया हो । उसी तरह भारतीय संगीत भी अथाह है । इस सबकी उत्पत्ति शिव से ही मानी जाती है ।
शिव को सर्वोच्च नर्तक भी माना गया है । शिव-तांडव , सबसे कठिन नृत्य शैली मानी जाती है और इसको जानने वाला दुनिया का कोई भी नृत्य कर सकता है । इसके साथ साथ , शिव को सर्वोच्च प्रेमी भी माना गया है ।
शिव के गले में सर्प विराजमान है । सर्पों को ब्रह्मांड में होने वाले परिवर्तनों का सबसे सटीक आभास रहता है । इसलिए माना जाता है कि भगवान शिव को ब्रह्मांड की सभी गतिविधियों का पूर्वज्ञान रहता है ।
शिव परिवार भी अपने आप में बहुत सारे संदेश लेकर आता है । माता पार्वती के साथ , शिव जी के दो पुत्र परिवार का हिस्सा हैं : गणेश जी , जिनका वाहन चूहा है और भगवान कार्तिकेय , जिनका वाहन मोर है । सर्प का भोजन चूहा है , और मोर सर्प का दुश्मन : पर ये तीनों एक साथ शिव परिवार में रहते हैं । इसी तरह शिव परिवार में व्याघ्र (बाघ) भी है au नंदी भी । सामाजिक समरसता का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा ।
शिव का निवास स्थान , कैलाश ( जो फ़िलहाल चाइना का हिस्सा है ) पर्वत भी अपने आप में कम कौतुहल का विषय नहीं है । पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं, परिक्रमा की जा सकती है , पर उसपर चढ़ने की मनाही है । हिंदू धर्म के साथ – साथ ये स्थान बौद्ध और jain धर्म के मानने वालों के लिए भी इतना ही पवित्र है : जो ये भी बताता है कि इन सब धर्मों की उत्पत्ति भी एक ही है ।
आपको अक्सर वामपंथी और एक ख़ास क़िस्म के बुद्धिजीवी ये कहते मिल जाएँगे की 1947 से पहले भारत एकजुट नहीं था । इस बात को भी ग़लत साबित करने वाले शिव हैं । आप भारत के किसी भी कोने में ( और बाहर भी , जहाँ तक हिन्दू राजा हुए हैं ) वहाँ आपको शिव मिलेंगे । पूजा करने का तरीक़ा अलग हो सकता है जैसे दक्षिण के मंदिरों में हर किसी को शिवलिंग तक जाने की अनुमति नहीं होती , जबकि उत्तर भारत में कोई भी जा सकता है । शिव को आधार मानकर पूरे देश को जोड़ा जाता था । इसलिए वो अमरनाथ भी हैं , पशुपतिनाथ भी और रामेश्वरम में भी उन्हीं का वास है ।
शायद इसीलिए शिव वामपंथियों को फूटी आँख नहीं सुहाते आऊँ कभी आप उनसे बात करें तो वो शिवलिंग का ही इतना घिनौना वर्णन कर देंगे कि आपकी आत्मा सिहर उठे । शिव को नशे में रहने वाला बताने के पीछे भी ऐसी ही चाल लगती है । जबकि भांग के इतर वो हलाहल विष पीने वाले नीलकंठ हैं ।
इसलिए ही , शिव इन सब कुप्रचारों से परे हैं । भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आदि पुरुष भगवान शिव हम सबका कल्याण करें ।
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