उदयपुर के कन्हैयालाल अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन ये नाम कई दिनों तक हमें कचोटता रहेगा. कई सवाल हमारे सामने कौंधते रहेंगे कि समय रहते कन्हैयालाल जी को बचाया जा सकता था, जो हुआ उसे रोका जा सकता था. लेकिन ये हो नहीं सका. कन्हैयालाल जी की हत्या के बाद पूरे देश में गुस्सा है. राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के लिए, उन पुलिस वालों के लिए जिन्होंने कन्हैयालाल जी की शिकायत के बाद भी आंखें मूंदे बैठी रही.

लेकिन इस बीच सवाल उन लोगों से पूछना बनता है जो खुद को अभिव्यक्ति की आजादी का मसीहा बताते हैं, जो अखलाक और पहलू खान की हत्या पर मातम मनाते हैं और कमलेश तिवारी और कन्हैया लाल की निर्मम हत्या पर चुप्पी साध लेते हैं. आखिर इन सभी की मौत के बाद विलाप में अंतर क्यों हो जाता है ?

आज एक तरफ जहां कन्‍हैयालाल की पत्‍नी, बच्‍चे और 90 साल की उनकी बूढ़ी मां की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं तो वहीं कुछ दिनों पहले रांची हिंसा में मारे गए मुद‍स्सिर की मां उसे शहीद बता रही थी. जो ‘इस्‍लाम जिंदाबाद’ कहते हुए मारा गया. वहीं कन्‍हैयालाल के परिवार वाले किसी धार्मिक बहस का हिस्‍सा नहीं बन रहे हैं. जबकि मुदस्सिर की मां ने जो कहा उसे बड़े शान के साथ शांतिप्रिय समुदाय दोहरा रहा है.

कन्हैया लाल की मां और मुद्सिर की मां की तकलीफ एक जैसी है. दोनों का सवाल एक ही है कि मेरे बेटे का क्या कसूर था? इनका दर्द वही समझ सकता है जिसने अपने बेटे को खोया हो. लेकिन इस बीच कुछ लोग मौके का फायदा उठाकर दर्द में भी अपना एजेंडा चलाने से बाज नहीं आते है . ये लोग पहले आग लगाते है, फिर उसी आग में घी डालकर अपनी रोटी सेंकते हैं .

आपको याद होगा कि 10 जून को रांची में भड़की हिंसा में मुदस्सिर नाम के एक 16 साल के लड़के की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई थी. जिसके बाद उसकी मां का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. जिसमें वो साफ कह रही थीं कि ‘वो क्या समझ रहा है, मुसलमान का बच्चा कमजोर है. शेर, मां पैदा की है. शेर बच्चा पैदा की है. इस्लाम जिंदाबाद था. इस्लाम जिंदाबाद है. इस्लाम हमेशा जिंदाबाद रहेगा. उसको कोई नहीं रोक सकता. एक मुदस्सिर इस्लाम जिंदाबाद बोलते हुए गया. उसके पीछे देखो, सैकड़ों मुदस्सिर खड़ा हो गया.’ मेरा 16 साल का बच्चा. अपने इस्लाम के लिए शहीद हुआ है. इस मां को फख्र है. पैगंबर मोहम्मद के लिए उसने अपनी जान दी है.

 

इसके बाद पूरा वामपंथी समुदाय , लिबरल मीडिया और पत्थरबाजों के हिमायती सामने आकर मुदस्सिर को इंसाफ दिलाने के लिए अपने बिलों से बाहर निकल पड़े . ट्वीटर से लेकर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉम के जरिये रांची पुलिस पर सवाल उठाए गए. लेकिन क्या मुदस्सिर की मौत पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों को दंगाईयों की पंक्ति में सबसे आगे खड़ा मुदस्सिर नहीं दिखा था. वो वहां क्या कर रहा था ? क्या इसका जवाब अब तक मिला है ?

एक बात यहां समझने वाली है कि कन्हैयालाल की पत्नी ने तो कोई हिंदुत्व का नारा नहीं लगाया. वे तो चुपचाप बंद कमरों में बिना मीडिया के कैमरों के सामने आये शोक मना रहे हैं . कन्हैया लाल का परिवार मांग कर रहा कि उन हत्यारों को सजा दी जाए ताकि वे कल किसी और के साथ ऐसा नहीं कर सके . लेकिन मुदस्सिर की मां तो छाती पीटकर कह रही थी कि मेरा बच्चा पैगंबर के नाम शहीद हुआ है. उसने इस्लाम के लिए कुर्बानी दी है. दोनों के बयानों से आप समझ गए होंगे कि किसकी क्या सोच है, और कौन आग लगा रहा है ?

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