सनातन धर्म कितना वैज्ञानिक है इसकी एक बानगी सोमनाथ मंदिर के इस उदाहरण से समझिए… बरसों से कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने हमें सिर्फ यह समझाया है कि मुगल काल में जाकर ही भारत थोड़ा सा समृद्ध हुआ यहां स्थापत्य कला के नमूने बने और अंग्रेजों के आने के बाद भारत आधुनिक हुआ, मगर मुगल और अंग्रेजों के काल से पहले भी एक भारत था जो वैदिक काल में इतना समृद्ध था… जब दुनिया धरती चपटी है जैसी बातें कर रही थी तब हमारे ऋषि धरती को गोल बता रहे थे।
सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में एक बाण स्तंभ लगा हुआ है जिस पर दक्षिण दिशा की तरफ एक बाण लगा है और वहां एक श्लोक लिखा है । जानकारों के अनुसार यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इसीलिए इसे बाणस्तंभ कहते हैं। इस बाणस्तंभ पर लिखा है- ‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत, अबाधित ज्योर्तिमार्ग।’ अर्थात ‘इस समुद्र के अंत तक से दक्षिण ध्रुव पर्यंत तक बिना अवरोध का ज्योतिर मार्ग है।’ मतलब यह कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है। इसका मतलब यह कि इस मार्ग में कोई भूखंड का टुकड़ा नहीं है।
सरल अर्थ यह कि सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्कटिका तक) एक सीधी रेखा खींची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है। हालांकि श्लोक में भूखंड का उल्लेख नहीं है लेकिन अबाधित मार्ग का मतलब यह कि बीच में कोई भी पहाड़ का नहीं होना।
सबसे बड़ी बात है कि उस दौर के खगोलविदों को यह जानकारी जरूर थी कि दक्षिणी ध्रुव किधर है और धरती गोल है। इसका अर्थ यह है कि ‘बाणस्तंभ’ के निर्माण काल में भारतीयों को ‘पृथ्वी गोल है’ इसका ज्ञान भी था। इतना ही नहीं, पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव किस ओर है, इसका भी अच्छे से ज्ञान था। जब दक्षिणी ध्रुव का ज्ञान था तो निश्चित ही उत्तरी ध्रुव का भी ज्ञान होगा ही।
जाहिर होता है कि जो सभ्यताएं धरती चपटी है जैसी बातें करती हैं और जिनके आने के बाद भारत में स्थापत्य कला के उभरने की बात कम्युनिस्ट इतिहासकार करते हैं उन्हें जरा आईना लेकर अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। इस बाण स्तंभ पर लिखे हुए श्लोक को कम से कम 101 बार पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें यह समझ बन सके कि जब दुनिया पानी के लिए लड़ रही थी, भेड़ चरा रही थी तब भारतीय सनातन परंपरा धरती गोल है जैसी वैज्ञानिक बातें कर रही थी।
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