New Delhi: Age Doesn’t matter.. किसी काम को करने के लिए उम्र ना तो मायने रखती है और ना कभी भी बाधा बनती है, सिर्फ उस काम के लिए आपका जुनून मायने रखता है. इस बात को सिद्ध कर दिखाया है 105 साल की इस दादी ने.. वैसे तो ये दादी 105 साल की हैं, लेकिन आज भी ये जिस तरह से काम करती हैं, वह काफी प्रेरणादायक है. जिसे देखकर आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा… खुशहाल जिंदगी जीने की एक नई प्रेरणा मिलेगी.
‘ये काम मुझसे नहीं होगा’.. ये कहना शायद उनकी डिक्सनरी में नहीं है. तभी तो 105 साल की उम्र में ऐसा कोई काम नहीं होगा जिसे वह ना कर पाएं…वह अभी भी एक्टिव हैं और अपना सरा काम खुद ही करना पसंद करती हैं. इनकी खास बात ये है कि 2.5 एकड़ जमीन में ये खुद जैविक खेती करती हैं. हम इन्हें जैविक खेती की योद्धा कहें तो इसमें कोई दो राय नहीं है..
इनका जन्म 1914 में तमिलनाडु के देवलपुरम गाँव में हुआ, माता पिता ने नाम रखा- पप्पम्मल (papammal).. लेकिन बचपन में ही सिर से माता-पिता का साया उठ गया. उनका पालन-पोषण कोयम्बटूर जिले के थेक्कमपट्टी में उनकी नानी ने किया था.. वह वहीं रहती है.
जब बड़ी हुईं तब कोई स्कूल नहीं था. जो कुछ भी सीखा वह सब खेल के माध्यम से सीखा.गिनती और गणित उन्होंने- पल्लंघुज़ी (दक्षिण भारत में खेला जाने वाला पारंपरिक प्राचीन मंकला) से सीखा. उस वक्त तो अगर कोई कक्षा पांच तक पढ़ता थे, तो वे खुद एक शिक्षक बनने के लिए योग्य थे..
लगभग पचास साल पहले अपनी दादी की मृत्यु के बाद, उन्हें थेक्कमपट्टी में एक छोटा सा प्रोविजन स्टोर विरासत में मिला.. जहां उन्होंने एक छोटे भोजनालय की शुरुआत की.
“कृषि एक ऐसी चीज़ थी जो मुझे हमेशा से रूचि देती थी.. मैं दुकान पर कमाई से पैसा बचाती और अंततः खेती करने के लिए 10 एकड़ जमीन खरीदने के लिए पर्याप्त था..
पप्पम्मल ने मकई की खेती, विभिन्न प्रकार की दालों, और कुछ फल और सब्जियों की खेती शुरू की. वो सब कुछ जो परिवार में खान-पान में रोजाना इस्तेमाल की जाती थी. खेती में दिलचस्पी होने की वजह से वह औपचारिक रूप से खेती सीखने के लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) में भी शामिल हुईं..
विश्वविद्यालय के कुलपति ने उन्हें एक ’अग्रणी किसान’ के रूप में संबोधित किया..संयोग से, पप्पममल को 1959 में थेक्मपट्टी पंचायत के पार्षद के रूप में भी चुना गया था. हालांकि, समय और उम्र बीतने के साथ, पप्पम्मल पूरे 10 एकड़ का प्रबंधन नहीं कर सकी इसलिए पच्चीस साल पहले इसका एक हिस्सा बेच दिया था, लेकिन लगभग 2.5 एकड़ जमीन पर उन्होंने अपना काम शुरू किया.
जब आज की पीढ़ी 50 साल की उम्र तक रिटायर होने का विचार कर रही है, तो पप्पममाल केवल एक उदाहरण नहीं है, बल्कि एक प्रेरणा है, क्योंकि आज भी, हर दिन यह दादी अपनी जमीन पर जाती है और उस पर काम करती है.. वह जैविक खेती की एक महान योद्धा बनी हुई है.. वह कहती हैं कि युवा पीढ़ी केवल त्वरित परिणाम चाहती है और उसके पास जैविक खेती में निवेश करने का समय नहीं है…
पांच साल पहले, जब पप्पम्मल 100 साल की हुईं तो पूरी पंचायत ने एक साथ जीवन जीने का जश्न मनाया.. उस सभा में लगभग 3000 लोग शामिल थे.. यह एक बड़ा उत्सव था.. पप्पममल की पोती अक्षिता का कहना है, दादी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन मैंने जो एक चीज सीखी है वह है सोने का समय बर्बाद न करना.. जीवन में बहुत कुछ हासिल करना है.. ” दादी ने जो भी किया वह बेहद प्रभावशाली है.
वाकई “उम्र किसी भी चीज के लिए बाधा नहीं बन सकती है और हमेशा याद रखें कि कड़ी मेहनत का विकल्प कभी नहीं हो सकता है..
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