कोई भी राष्ट्र या सरकार अपने नागरिकों के सामूहिक मनोबल के आधार पर ही दुनिया के सामने मस्तक ऊँचा कर, आँखें मिला कर बात कर पाता है। सामूहिक मनोबल की महत्ता का अनुमान कोई भी जागरूक व्यक्ति इसी आधार पर लगा सकता है कि 1962 में चीन के हाथों मिली शिकस्त के बाद भारत का सामूहिक मनोबल बुरी तरह प्रभावित हुआ था और उस हार के बाद सेना भी किसी-न-किसी स्तर पर भारी दबाव महसूस करती थी। 2014 से पूर्व भारत चीन से आँखों-में-आँखें डालकर बात करना ही कदाचित भूल चुका था। यह तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन को उसी की भाषा में माकूल जवाब दिया जाने लगा है। मोदी की राजनीतिक इच्छाशक्ति, नीति और निर्णय का ही सुपरिणाम है कि आज सेना का मनोबल भी ऊँचा है और संपूर्ण देश के मनोविज्ञान पर भी उसका व्यापक सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। जो लोग चीन का हौआ खड़ा कर हर समय काँपते और हाँफते दिखाई देते थे, वे भी आज दबे स्वर में यह कहने लगे हैं आवश्यकता पड़ने पर भारत चीन का मुक़ाबला भी कर सकता है। यह हुआ है भारत में राष्ट्रीयता के उभार से, यह हुआ है पहली बार एक ऐसी सरकार के सत्तासीन होने से जिसकी सोच भारत प्रथम, राष्ट्र सर्वोपरि का है, जो भारत के मान सम्मान स्वाभिमान से किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं है।
सामूहिक मनोबल के गिरने के दुष्प्रभाव का आकलन इसी से किया जा सकता है कि पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उसका मनोबल ऐसा गिरा है कि उसकी पूरी भाषा ही बदल चुकी है। जो पाकिस्तान बात बात पर धमकी देता था, आए दिन एटमी पॉवर होने का दंभ भरता था वह आज लगभग काँपता-मिमियाता-घिघियाता नज़र आता है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी का ताज़ा बयान कि ‘भारत दुबारा सर्जिकल एटैक कर सकता है”- बहुत कुछ कहता है। उसके छुपे हुए मायने को समझने की ज़रूरत है। यह उसके डर को दर्शाता है। और यह डर तब है, जब चीन उसे पूरा बैक सपोर्ट दे रहा है। मोदी का यह खौफ़ पाकिस्तानी आवाम भी मैंने अपने दुबई विजिट के दौरान पाया। वहाँ मैंने पाया कि हर पाकिस्तानी को लगता है कि यदि पाकिस्तान ने कुछ गड़बड़ किया तो मोदी उसे छोड़ेगा नहीं। इसे कोई साधारण उपलब्धि समझता हो तो समझता रहे, पर पृथ्वीराज चौहान और शिवाजी पहले ऐसे हिंदू शासक हैं, जिनका ऐसा दबाव और प्रभाव विदेशियों-विधर्मियों पर देखने को मिलता है। एक स्वतंत्र देश के विदेश मंत्री का खौफ़जदा होने का इकबालिया बयान यदि सियासत और स्ट्रैटजी भी है तो यह बहुत ख़राब स्ट्रैटजी है। ऐसी स्ट्रैटजी के बल पर पाकिस्तान हमेशा भारत के सामने दब्बू ही बना रहेगा। और एक राष्ट्र के रूप में यह हमारी कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी।
उल्लेखनीय है कि जो कांगी-वामी राजनेता, मीडिया हॉउसेज सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगा करते थे, उन्हें क़ुरैशी के इस सार्वजनिक बयान में भी सबूत मिल जाएँगें। ग़ौरतलब है कि उसने कहा कि भारत दुबारा सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है यानी वह खुले रूप से यह मान रहा है कि पहला सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था।
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