स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने हाल ही में चार दलितों समेत 24 गैर ब्राह्मण पुजारियों को मन्दिर में नियुक्त किया है। गौरतलब है कि डीएमके सरकार एक कानून लेकर आई थी जिसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के बावजूद राज्य द्वारा संचालित पाठ्यक्रम से गुजरने के बाद हिंदू मंदिर का पुजारी बन सकता है। स्टालिन सरकार ने पिछले सप्ताह विभिन्न समुदायों के 24 प्रशिक्षित पुजारियों को धर्मस्थलों में पुजारी नियुक्त किया। नियुक्ति पाने वालों में 24 अभ्यर्थी ऐसे हैं जिन्होंने हिन्दू मंदिरों में पुजारी बनने के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्र से अपना प्रशिक्षण पूरा किया है, वहीं 34 लोगों ने अन्य ‘पाठशालाओं’ से अर्चक का प्रशिक्षण पूरा किया है।
स्टालिन ने यहां 75 व्यक्तियों को हिंदू धार्मिक और धर्मांध बंदोबस्ती विभाग के नियुक्ति आदेश सौंपे, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के तहत 208 पदों पर नियुक्तियां की गईं।स्टालिन सरकार ने बताया कि जिन 208 लोगों को नियुक्ति दी गई है उनमें ‘भट्टाचार्य’, ‘ओधवर्य’ पुजारी और तकनीकी व कार्यालय सहायक शामिल हैं। इन सभी को तय प्रक्रिया के तहत नियुक्ति दी गई है।
जाहिर सी बात है सनातन धर्म में पहले जो वर्ण व्यवस्था कायम थी वह इसी तरीके से ब्राह्मण बनाया करती थी मगर इसके बाद जब वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक सोच मोह के कारण जाति व्यवस्था में तब्दील हो गई तब देश ने इसके दुष्परिणाम झेले। ऐसे में जिस तरीके से हिंदू मंदिरों के लिए पुजारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और फिर उसके बाद वहां उनकी नियुक्ति हो रही है यह सनातन धर्म की वैज्ञानिकता को दर्शाता है। यानी गुण और कर्म के आधार पर जो शख्स जिस वर्ण ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य ,शूद्र में जाना चाहता है उसमें वह जा सकता है। महाराज मनु ने जब वर्ण व्यवस्था की बात की थी तो उन्होंने लिखा था कि ‘जन्मा जायते इति शूद्र’ अर्थात जन्म से तो सभी शूद्र होते हैं मगर कर्म और गुणों के आधार पर की ब्राह्मण की पदवी पाई जा सकती है , ऐसे में वामपंथियों के द्वारा नाहक ही उनको कोसा जाता है जबकि उन्हें मनुवाद का मर्म तक नहीं पता है।
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