पिछले दिनों महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार के बुरे दिन की शुरुआत हो गई है। यूँ तो इसकी पटकथा उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन बाला साहेब ठाकरे के सबसे ज्यादा और सबसे पहले निशाने पर रही कांग्रेस से ठगबंधन करके मौकापरस्ती का सर्वोत्तम उदाहरण बनते हुए शिवसेना ने कुछ ही विधायकों के जीतने के बावजूद सरकार बनाने की जिद की और बनाई भी।
इसके बाद इनकी उलटी गिनती तब शुरू हुई जब , देश ने दो साधुओं को पुलिस की मौजूदगी में क़त्ल होते देखा और फिर कभी देश की सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में जानी जाने वाली मुंबई में , एक के बाद एक होती मौतों , उससे जुड़े ड्रग्स माफिया के जाल , इनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कंगना और अर्नब के साथ निजी दुश्मनी पर उतर जाने जैसी घटनाओं ने पूरे शहर की साख पर ही बट्टा लगा दिया।
बात बार पर मार पीट पर उतारू , इस दल वीरों ने , ट्विट्टर से लेकर फेसबुक ,व्हाट्सअप आदि पर आलोचना करने वालों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दूसरी तरह दिल्ली के साथ कोरोना के बढ़ते मामलों और होने वाले मौतों के साथ एक अघोषित दौड़ सी लगाते , प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इन सबसे सीधे ही पल्ला झाड़ कर सबको अपने अपने भरोसे रहने को बोल कर मरने को छोड़ दिया।
सर्वोच्च न्यायालय तक द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कड़े सन्देश देने के बावजूद भी प्रदेश सरकार और इनके naughty और बड़बोले मंत्री के साथ खुद प्रदेश के मुखिया भी किसी राजनेता और प्रदेश के जिम्मेदार व्यक्ति की बजाय , सार्वजनिक रूप से निहायत ही ओछे और निजी आक्षेप वाली गली मोहल्ले की लड़ाई वाली भाषा बोलने लगे।
कंगना रनौत , नौसेना के पूर्व अधिकारी , देश के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रवादी चैनल और सर्वप्रिय सम्पादक अर्नब गोस्वामी , विभोर आदि जैसे जाने कितने ही निर्दोष लोगों को सिर्फ अपने अहम् तुष्टि के लिए निशाना बनाने वाली सरकार के खुद के विधायक और उनके सुपुत्र के जांच एजेंसियों के रडार पर आने और कार्रवाई होते ही इनकी बौखलाहट चरम पर पहुँच गई है।
अपने घर में बैठ कर लिखने और छपने वाले अखबार (सामना -बस इसी का सामना कर सकते हैं ये ) में अपने ही naughty प्रवक्ता को घनघोर साक्षात्कार देते हुए , एक बार फिर इन्होने अपनी भड़ास निकाली है। अपने पुत्र और परिवार पर सवाल उठाने वालों को देख लेने और अंजाम भुगतने को तैयार रहने के साथ साथ उन्होंने भाजपा और पूरे सनातन समाज को नसीहत और ताना मारते हुए कहा है कि -सिर्फ कर्मकांड करना और मंदिर की घण्टियाँ बजाना ही हिंदुत्व नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी पर भी आरोप लगाते हुए उन्हें प्रधानमंत्री पद के योग्य मानने से इंकार करते हुए उन्होंने बताया दिखाया की कैसे पिछले एक वर्ष में उन्होंने और उनकी सरकार ने गुजरात दिल्ली सब तरह के मोडल को फेल कर दिया।
भाई वाह ! सच बात भी है , मंदिर की घण्टियाँ बजाना हिंदुत्व नहीं है असली हिंदुत्व तो निर्दोष साधु संतों की निर्मम हत्या पर चुप्पी मार कर बैठ जाना ही है। है कि नहीं ???????
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