अत्यंत प्राचीन काल में भारत नामक देश की राजधानी दिल्ली में कुछ लोगों ने टैंट तंबू तिरंगा लगा कर मीडिया के हूजूम हंगामे के साथ जंतर-मंतर पर के घनघोर प्रदर्शन किया .

देश की राजनीति में कुछ अलग करने , ईमानदारी और निष्ठा से लोक कल्याण करने और सबसे बड़ी बात कि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए आम व्यक्तियों का अपना जनलोकपाल दिलवाने जैसे बड़े बड़े आदर्शों को लेकर किया गया था .

इस प्रदर्शन , आनोदलन को सबका अपार समर्थन मिला और देश के तमाम वर्ग , युवा , विद्यार्थी , श्रमिक आदि सभी को राजनीति में किसी शुचिता परिवर्तन की उम्मीद दिखाई गई . इस आंदोलन के अगुआ रहे लोगों ने जनता को विश्वास दिलाने के लिए अपने परिवार बीवी बच्चों तक की कसमें खाकर यकीन दिलाया .

मगर इन सबका पटाक्षेप भी ठीक वैसा ही हुआ जैसा कुछ लोगों ने अंदाज़ा लगाया था . राजनैतिक स्वार्थ , सत्ता और शक्ति के लोलुप कुछ गैर अनुभवी लोगों को छोड़कर , एक एक करके सब , सारा खेल समझते ही इस आंदोलन और इस गुट /संगठन को भी त्याग कर चलते बने .

सड़क पर धरने-प्रदर्शन , मीडिया , शोषण से रातों रात दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में अपने लिए नेता मंत्री पैड की सुनिश्चितता करने के लिए खुद को अराजक आउर आन्दोलनजीवी कहने मानने वाले खुद ही राजनीति में उतर कर उसे पहले से आधिक दूषित करने में लीन हो गए .

लोगों को बात बात कर लाख और करोड़ रुपए , राजकोष से निकाल कर मुफ्त का माल देने जैसी रवायत बनाई गई और उसी को राजनीति का नया फार्मूला बनाया गया . दूसरी तरफ खून पसीने से अपने दायित्व और नौकरी करने वालों को उनके वेतन से ही वंचित रखा गया . जनता के पैसे से अपना चेहरा चमकाने के लिए करोड़ों रुपए सिर्फ अपना ढोल पीटने में खर्च किया जाने लगा .

अब जबकि ये सब करते हुए काफी समय बीत गया है तो उस तथाकथित आंदोलन को करके सत्ता की मलाई चाट रआहे लोगों को न तो किसी जनलोकपाल की याद है और न ही किसी भ्रष्टाचार की चिंता बची है . अब ये क्रांतिकारी आनोदलांजीवी दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश , पंजाब , उत्तराखंड में भी लोगों को उनका “धनलोकपाल ” दिलाने की पुरजोर मुहिम में लग गए हैं .

जय धनलोकपाल और जय जय हमारे दिल्ली वाले सड़ जी श्री केजरीवाल जी .

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