जिस तरह लेनिन के मरने के बाद जनता ने उसकी लाश को चप्पलों से पीटा था उसी प्रकार अब बंगाल की जनता इन वामपंथियों को आगामी चुनावों में पीटने का मन बना चुकी है।
पश्चिम बंगाल में लम्बे समय तक कम्युनिस्ट सरकार रही। इस दौरान उन्होंने जबर्दस्त तरीके से शिक्षा व्यवस्था में घुसपैठ की। इसके चलते पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल के प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक के अधिकांश शिक्षक, शिक्षक न होकर माकपा के सक्रिय कार्यकर्ता अधिक रहे हैं। वामपंथियों की मंशानुरूप ये शिक्षक इतिहास, भूगोल, साहित्य सहित अन्य विषयों को तोड़-मड़ोरकर प्रस्तुत करते रहे हैं।
वामपंथियों ने अपनी थोथी राजनीति की दुकान चलाने के लिए शिक्षा व्यवस्था को तो जार-जार किया ही इसके माध्यम से राष्ट्रीय भावना को भी तार-तार किया। दुष्ट कम्युनिस्टों ने भारत में मार्क्स, लेनिन व अन्य वामपंथी विचारकों को पढ़ाने में भी ईमानदारी नहीं दिखाई। वामपंथ का पूरा सच भारत के कम्युनिस्टों ने कभी नहीं पढ़ाया। वामपंथ का साफ-सुथरा और लोक-लुभावन चेहरा ही प्रस्तुत किया गया। कम्युनिस्ट मार्क्सवाद के पीछे छिपा अवैज्ञानिकवाद, फासीवाद, अधिनायकवाद, हिंसक चेहरा कभी सामने लेकर नहीं आए। इससे वे हमेशा कन्नी काटते नजर आए। कम्युनिस्टों ने कभी नहीं पढ़ाया या स्वीकार किया कि रूस में लेनिन और स्टालिन, रूमानिया में चासेस्क्यू, पोलैंड में जारू जेलोस्की, हंगरी में ग्रांज, पूर्वी जर्मनी में होनेकर, चेकोस्लोवाकिया में ह्मूसांक, बुल्गारिया में जिकोव और चीन में माओ-त्से-तुंग ने किस तरह नरसंहार मचाया। इन अधिनायकों ने सैनिक शक्ति, यातना-शिविरों और असंख्य व्यक्तियों को देश-निर्वासन करके भारी आतंक का राज स्थापित किया। मार्क्सवादी रूढि़वादिता ने कंबोडिया में पोल पॉट के द्वारा वहां की संस्कृति के विद्वानों मौत के घाट उतार दिया गया। जंगलों और खेतों में उन्हें मार गिराया गया। रूस और मध्य एशिया के गणराज्यों में भी हजारों गिरजाघरों और मस्जिदों को बंद कर दिया गया। स्टालिन के कारनामों से मार्क्सवाद का खूनी चेहरा जग-जाहिर हुआ।
बंगाल में निरंतर हो रही राजनैतिक हत्याएं ये सिद्ध करती हैं कि अपना अंत देखकर ये नक्सली जमात अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है, ममता बैनर्जी ने जब कांग्रेस से अलग TMC की बागडोर सम्हाली और जीतकर मुख्यमंत्री बनी, तो सामान्य जन को ये विश्वास था कि वो एकछत्र राज कर रहे कम्युनिष्टों के इस चक्रव्यूह को तोड़ेंगी, पर हुआ उसका उल्टा, ममता ने कम्युनिष्टों और इस्लामिक कट्टरपंथियों की नीतियों को एकसाथ अपना लिया और बंगाल को मुख्यधारा से तोड़ने का भरसक प्रयास किया, आज TMC के कार्यकर्ता जिस प्रकार संघ और भाजपा नेताओं की जान के दुश्मन बन चुके हैं उस से लगता है कि ये संघीय ढांचे को तोड़ने की और लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त करने की एक भयानक और गहरी साजिश है।
आगामी चुनाव देश और बंगाल के हिन्दू समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, विगत कुछ वर्षों में वहां समाज जागरूक और संगठित हुआ है, बस, इसी जागरूकता को मतदान में बदलना है और बंगाल को 60 वर्षों के कुचक्र से निकाल कर समृद्धि के मार्ग पर वापस लाना है। महादेव की नगरी काशी, श्रीराम की नगरी अयोध्या के बाद अब माँ भवानी दुर्गा के घर मे उत्सव की बारी है।
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