अक्सर कहा जाता है कि , समाधान उसी समस्या का निकलता है जो सच में ही समस्या होती है या इसे यूँ समझिये की “जगाया उसे जा सकता है /जाता है जो सच में सोया हो , जो सिर्फ सोने का नाटक कर रहा हो उसे क्या जगाना और उसका क्या जागना। ठीक यही बात , सरकार द्वारा कृषि कानूनों में किए गए संशोधनों के विरोध का बहाना बना कर उससे किसानों को होने वाले किसी संभावित नुकसान का डर दिखाकर पिछले एक साल से चंद आढ़तियों के साथ साँठ गाँठ करके अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले -महेंद्र सिंह टिकैत अब न सिर्फ पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं बल्कि रह रह कर सिर्फ मीडिया में आने के लिए तरह तरह के स्टैंटनुमा प्रदर्शन और धरनों और उनमें घटने वाले अपराधों के बाद अब बिलकुल हाशिए पर चले गए हैं।

एक साल होने को आए मगर टिकैत एन्ड कंपनी , जहाँ से चली थी आज इतने समय बाद उसी स्थान तो दूर बल्कि , अपनी हठधर्मिता , स्वार्थ और राजनैतिक महत्वाकांक्षा , लालच के कारण और सबसे अधिक इन सबका सावर्जनिक हो जाने के कारण , सड़क पर बैठे मदारी सरीखी हो कर रह गई है। सरकार द्वारा दर्जनों बार वार्ता के लिए बुलाना , न्यायपालिका तक द्वारा समस्या के समाधान के लिए समिति का गठन , आंदोलन की आड़ में कभी अलगाववादियों तो कभी खालिस्तानियों का समर्थन , विधानसभा चुनाव होने वाले राज्यों में जाकर सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलना , कोरोना महामारी से जुड़े सभी निर्देशों की खुल्लम खुल्ला अवहेलना , भाजपा सरकार की वैक्सीन का विरोध और फिर खुद वैक्सीन लगवा लेना , लालकिले पर चढ़ कर देश और दुनिया में भारत को शर्मसार करने वाली हरकत , आंदोलन स्थल पर सामूहिक बलात्कार जैसा जघन्य अपराध – टिकैत के इस तथाकथित किसान आंदोलन के उपलब्धियों में और भी बहुत सी बातें /घटनाएँ/अपराध जोड़े जा सकते हैं या यूँ कहें कि जुड़ ही रहे हैं।

लेकिन इन सबके बीच यदि कुछ नहीं दिखा तो वो ये कि , इन बीते हुए दिनों में टिकैत और उनके साथ खड़े तमाम स्वघोषित राजनेता , बंगाल हिंसा में पीड़ित किसान परिवारों में से किसी एक का भी दुःख दर्द साझा करते हुए , बिहार की बाढ़ में बेघर हुए सैकड़ों किसान परिवार में से किसी की मदद तो दूर सांत्वना के दो बोल भी किसी ने आज तक शायद ही सुने हों और तो और पंजाबा हरियाणा दिल्ली के जिन भोले भाले कृषक और कृषि मजदूरों को बहला फुसला कर वे इतने समय से अपना तम्बू तान कर राजनैतिक नाटक खेल रहे हैं , उनमे से भी किसी के परिवार तक पहुँच कर बात करते या सहायता करते , ये लोग कभी नज़र नहीं आए।

समय समय पर रह रह कर कुछ कुछ दिनों के बाद विशेष पर्व त्यौहारों पर , दिवस पर जानबूझ कर देश ,शहर , समाज , और व्यवस्था को अस्थिर करने के लिए नए नए नामों से विरोध प्रदर्शनों का आयोजन सिर्फ और सिर्फ मीडिया और लोगों का ध्यान केंद्रित करने के लिए करना भी अब एक शगल मात्र बन कर रह गया है। हद तो ये है कि बार बार अलग अलग टीवी चैनलों द्वारा सार्वजिनक रूप से साक्षात्कार ,सम्बोधन के लिए बुलाने के बावजूद भी टिकैत आज तक कभी स्पष्ट रूप से कृषि कानूनों में हुए संशोधन ,उनके विरूद्ध आपत्तियाँ , अपेक्षित सुधार या बदलाव पर कभी एक शब्द भी नहीं बोल बता पाए हैं।

अपनी हरी टोपी और उसके नीचे दबाई हुई राजनैतिक महात्वाकाँक्षा , चुनाव जीत कर राजनेता बनने के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए इस देश में टिकैत और इन जैसे लोगों को देखकर ही किसी ने एकदम सटीक बात कही थी कि – भारत को बाहरी दुश्मनों की कोई जरूरत नहीं है क्यूंकि देश के अंदर ही देश को खोखला करने वाले शत्रु अलग अलग मुखौटे लगाकर ,लगातार देश के विरूद्ध ज़हर उगल रहे हैं। देखें , टिकैत एन्ड कंपनी का ये थियेटर कितने दिनों तक और यूँ ही चलता है।

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