इस देश में पिछले कुछ समय से बात ,बिना बात सड़कों और यातायात व्यवस्था को निशाना बनाने की प्रवृत्ति ने धीरे धीरे अब नासूर का रूप ले लिया है। यूँ भी पूर्ववर्ती सरकारों ने इस देश के लोगों को सड़कों का मूतने के लिए और रेल की पटरियों का हगने के लिए प्रयोग करना ही सिखाया बताया है।

और किसी ने 70 सालों में पहली बार , शौच कहाँ करना चाहिए , सिर्फ यही नहीं बताया ,बल्कि कहाँ किया जाना चाहिए ये भी खूब समझाया। मगर तब तक नए वाले पीपली लाईव क्रांतिकारियों को सड़कों का एक और विकल्प मिल चुका था। कुछ लोगों ने उस फार्मूले को प्रयोग के रूप में आजमाया और सड़क से सीधा तख्तो ताज पर बैठ कर सब माल “मुफ्त का माल ” कह कर घनघोर प्रचारगाड़ी की तरह सरकार चलाना भी सीख लिया।

दिनोंदिन सड़कों की छाती पर बेहिसाब और कई बार बेमतलब ही दौड़ती मोटर गाड़ियों का बढ़ता अनचाहा बोझ पहले से ही सड़कों की उम्र और सेहत पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा है और ऐसे में हर बात का गुस्सा सड़कों पर निकालने की प्रवृत्ति और इसकी आड़ में पूरे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को गंभीर नुक्सान पहुंचाने वाली अराजकता किसी भी सभ्य समाज के लिए अहितकर है।

परिवहन मंत्री ने हाल ही में इस बात पर दुःख जताया था कि सड़कों पर खेतों का ये आंदोलन चलाए जाने के कारण सिर्फ सड़क कर में ही रोजाना करोड़ों रूपए के राजस्व की हानि हो रही है। संघर्षरत क्षेत्र और आसपास रहने वाले आवागम करने वाले किन दुष्कर परिस्थितियों में हैं वो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

इससे पहले भी ठीक एक साल पहले भी ऐसे ही आंदोलन/प्रदर्शन /धरने के नाम पर सड़क चौराहों पर जबरन कब्जा जमा कर खूब मजमा लगा लगा कर सरकार को बदनाम और अस्थिर करने की कोशिश करने के लिए दंगे और फसाद तक को अंजाम दिया गया। इसकी आड़ में देश भर में रेल और उससे जुड़ी संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचाया गया।

मीडिया युग में सड़कें , यूं भी बेपर्दा होने के कारण खबर बनने और बनाने वालों के लिए सुलभ हो जाती हैं फिर यदि बिना कोई किराया भाड़ा , कोई कर दिए , बिना किसी अनुमति , आज्ञा लिए , यूँ खुल्लम खुल्ला ट्रैक्टर स्टंट करने का मौक़ा चाहिए हो या , लालकिले पर तलवार लहराने की आजादी , इन सब बड़े बड़े कारनामों के लिए तो यकीनन ही सड़क और रेलों को अपने बाप का माल समझ कर नेस्तनाबूत किया जाता है।

लेकिन अब समय आ गया है कि देश के लोगों को आए दिन झेलने को विवश इस त्रासदी , इस उत्पीड़न और प्रताड़ना से सुरक्षित और संरक्षित करने हेतु कठोर कानून बनाया जाए। इतना ही नहीं , सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बाधित करने , क्षति पहुंचाने , अतिक्रमित और कब्जा जमाने वालों को अब सीधे सीधे शासन , समाज और विधि तीनों का अपराधी माना जाए और उसी अनुरूप दण्डित भी किया जाना चाहिए।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.