श्रीराम जन्मभूमि के एक भयानक और निर्णायक युद्ध में मैंने १०३३ ई० का जिक्र किया था, जिसमें महमूद ग़ज़नवी का भांजा सालार मसूद जिसे गाज़ी की उपाधि प्राप्त थी, उसने अयोध्या पर भयंकर आक्रमण किया, हज़ारों लोगों की हत्या, लूटपाट, स्त्रियों से दुराचार किया गया, अयोध्या का प्राचीन श्रीराम मंदिर ध्वस्त कर दिया गया, सालार इतने पर ही नहीं रुका उसने आस पास के सभी राज्यों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया, सालार मसूद मात्र 16 वर्ष की उम्र में अपने पिता गाज़ी सैयद सालार साहू के साथ भारत पर हमला करने आया था, अपने पिता के साथ उसने सिंधु नदी पार करके मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और सतरिख (बाराबंकी) तक जीत दर्ज की वो इतना क्रूर था की हिन्दुओं के पशुओं तक को जीवित नहीं छोड़ता था, 17वीं सदी में मुगल राजा जहांगीर के दौर में अब्दुर रहमान चिश्ती नाम के एक लेखक हुए, 1620 के दशक में चिश्ती ने फारसी भाषा में एक दस्तावेज लिखा ‘मिरात-इ-मसूदी’, हिंदी में इसका मतलब ‘मसूद का आइना’ होता है, इस दस्तावेज को गाज़ी सैयद सालार मसूद की बायोग्राफी बताया जाता है, इसमें भी उसकी क्रूरता का वर्णन विस्तार से किया गया है, ये दस्तावेज भी सुहेलदेव के पौरुष की गवाही देता है, सालार मसूद आंधी की तरह तबतक आगे बढ़ता रहा जबतक महाराज सुहेलदेव उसके सामने नहीं आये। कहा जाता है की स्वयं महादेव ने महाराज को इस युद्ध का आदेश और विजय का आशीर्वाद दिया था, परिणाम इसकी गवाही भी देते हैं।
१४ जून १०३३ का युद्ध निर्णायक रहा जब सुहेलदेव ने सालार मसूद को भारत के रणकौशल का नमूना दिखा दिया, सालार मसूद ने अपनी कायर कौम की ही तरह आधी रात में सोते हुए सैनिकों पर घातक हमला किया, लगा की सुहेलदेव ये युद्ध हार जायँगे क्यूंकि उनके अधिकतर सैनिक मसूद के इस कायराना हमले में मारे गए परन्तु, बचे हुए हिन्दू वीरों ने डेढ़ लाख की अपराजित समझी जाने वाली सालार मसूद की सेना के किसी भी सैनिक को ज़िंदा नहीं छोड़ा, अकेले बचे सालार मसूद को महाराज सुहेलदेव ने बहराइच तक नंगे पैर दौड़ाया और उसका सर धड़ से अलग कर दिया। आप उनके खौफ का अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं की इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक अयोध्या की तरफ आँख उठाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई, वामपंथी इतिहासकारों की किताबों से इतिहास पढ़ने वाले लोगों को शायद सुहेलदेव की इस कहानी पर ऐतबार न हो, लेकिन इतिहास सिर्फ किताबों में दर्ज नहीं होता है। लोककथाओं का भी अपना एक इतिहास होता है, जो एक मुंह से दूसरे मुंह तक पहुंचता है, राजा सुहेलदेव इसी इतिहास के नायक हैं। आज भी पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोकगीतों में उस ऐतिहासिक युद्ध और सुहेलदेव की वीरता का वर्णन किया जाता है। सुहेलदेव के भय से सालार मसूद की लाश उठाने भी कोई नहीं आया और उसे बहराइच में ही दफना दिया गया। महाराज सुहेलदेव के नाम से न केवल रेलगाड़ी चलती है बल्कि भारत सरकार ने २०१८ में डाक टिकट भी जारी किया हुआ है। समाज के प्रति वो कितने समर्पित थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की पासी, राजभर इत्यादि अनेक जातियों के लोग उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं।
ये तो थी भारत माता और हिन्दू धर्मध्वजरक्षक महाराज सुहेलदेव की शौर्यगाथा अब बताते हैं की हम मुर्ख हिन्दू क्या करते आ रहे हैं? 12वीं सदी आते-आते ढेर सारे लोग कौतुहलवश मसूद की कब्र पर जाने लगे। 1250 ई. में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद इस कब्र पर मज़ार बनवा दी, फिर 13वीं सदी में अमीर खुसरो ने अपने लिखे में मसूद का ज़िक्र किया, बताते हैं कि 1341 ई. में दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक मोरक्को के यात्री इब्न बतूता के साथ मसूद की दरगाह पर आया था, लोगों के लगातार आने की वजह से मसूद की मज़ार दरगाह में तब्दील हो गई और आज बहराइच में इस जगह इतना बड़ा मेला लगता है कि लाखों लोग चले आते हैं, जी हाँ ये वही प्रसिद्द ग़ाज़ी मियां की मज़ार है जहाँ हर वर्ष उर्स का मेला लगता है, विडंबना ये है की, इस्लाम में मज़ार पूजना हराम है अतः यहाँ अधिकतर हिन्दू ही माथा पटकने जाते हैं, अब आप कल्पना कीजिये की, हम ये तक नहीं जानते की जिस मज़ार को पूजने हम जा रहे हैं वहां ज़मीन के नीचे कुत्ता, बिल्ली, गधा, सुवर जाने क्या दबाया गया है? बस भेंड़चाल में लगे हैं, जमकर चादर चढ़ाते हैं, पैसा चढ़ाते हैं बिना ये सोचे की उसी पैसे का इस्तेमाल हमारे और हमारे सेना के जवानों के कफ़न तैयार करने में हो रहा है, हम उसे पूज रहे हैं जिसने न जाने कितने बच्चों को अनाथ किया, कितनी औरतों को विधवा किया, न जाने कितनी बहनों का बलात्कार करके उन्हें मंडियां लगा कर बेच दिया, हमे महाराज सुहेलदेव इसी लिए नहीं पढ़ाये जाए, बाजीराव पेशवा को इसी लिए किताबों में जगह नहीं मिली क्यूंकि इतिहास लिखने वालों को पैसा गाज़ी मियां जैसों की मज़ारों से मिलता रहा है। ये बौद्धिक आतंकवाद नहीं तो और क्या है?
मै आप सभी पाठकों से अनुरोध करता हूँ की, अगर आप भी ऐसी किसी मज़ार पर जाते रहे हैं, तो तुरंत इस पाप को बंद करिये और यथासंभव प्रयास करिये की अपने परिजनों एवं सम्बन्धियों, अपने मित्रों को इस विषय पर जागरूक करिये।
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