लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले सभी भारतीयों की आँखों में आज भी वह चित्र जीवंत और सजीव होगा, जब 2014 में पहली बार संसद-भवन में प्रवेश करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी ड्योढ़ी (प्रवेश-द्वार) पर शीश नवाकर लोकतंत्र के इस महान मंदिर के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की थी। वह श्रद्धा स्वाभाविक थी। अभाव एवं संघर्षों में पला-बढ़ा, समाज के अत्यंत निर्धन-वंचित-साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी यदि देश के सर्वोच्च पद तक का सफ़र तय कर पाता है तो निश्चित रूप से यह भारत की महान संसदीय परंपरा एवं सुदृढ़ लोकतंत्र का प्रत्यक्ष प्रमाण है और संसद-भवन उसका साक्षात-मूर्त्तिमान स्वरूप है। हमारा संसद न जाने कितने गुदड़ी के लालों के असाधारण कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व का साक्षी रहा है!  इसीलिए लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले सभी नागरिकों के लिए वह किसी पवित्र तीर्थस्थल से कम नहीं। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि सात दशक से अधिक की यात्रा में छिटपुट बाधाओं और आपातकाल जैसे झंझावातों को सफलतापूर्वक पार कर भारत का लोकतंत्र और भी मज़बूत एवं परिपक्व हुआ है।   1947 से लेकर अब तक ऐसे  अनेकानेक क्षेत्र हैं, जिनमें भारत ने तरक्क़ी की नई-नई इबारतें लिखी हैं। समय के साथ-साथ देश की तस्वीर और तक़दीर दोनों बदली है। भारतीय लोकतंत्र न केवल विश्व का सबसे प्राचीन एवं विशाल लोकतंत्र है, अपितु यह सबसे क्रियाशील एवं जीवंत लोकतंत्र भी है। लिच्छवी गणराज्य के वैशाली जनपद से प्रारंभ हुई हमारी लोकतांत्रिक यात्रा निर्बाध जारी है।

 
तरक्क़ी की ओर भारत के बढ़ते क़दमों के रूप में ही आजादी की 75वीं सालगिरह पर प्रधानमंत्री मोदी देश को नए संसद-भवन की सौग़ात देने जा रहे हैं। 10 दिसंबर, 2020 को वे नए संसद-भवन का शिलान्यास करने जा रहे हैं। लोकतंत्र के इस महान मंदिर को भव्य, अद्भुत एवं अलौकिक रूप देने का सपना प्रधानमंत्री के हृदय में वर्षों से पलता रहा है। निःसन्देह नया संसद-भवन समस्त देशवासियों के लिए भी गौरव का प्रतीक होगा। यह एक भारत, श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार करेगा। नए संसद-भवन की छतों और दीवारों पर देश की कला एवं संस्कृति के विविध रंग उकेरे जाएँगें। यह विविधता में एकता को सही मायनों में प्रतिबिंबित करेगा। 200 कलाकर्मी एवं शिल्पकार इससे सीधे तौर पर जुड़ेंगें। दिल्ली भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में आता है, इसलिए इसमें भूकंपरोधी तकनीक के  इस्तेमाल के साथ-साथ सुरक्षा के सभी सर्वोच्च मानकों का ध्यान रखा जाएगा। 

इस नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 384 से अधिक सीटें होंगीं। इसमें दोनों सदनों के साझा सत्र में 1272 सांसदों से भी अधिक के बैठने की व्यवस्था होगी। दर्शक दीर्घा एवं गणमान्य अतिथियों के बैठने के लिए भी सीटों की संख्या बढ़ाई जाएगी। ध्यातव्य हो कि कई बार विदेशी प्रतिनिधिमंडल या राजनयिक भी संसद की कार्रवाई देखने के लिए आते-आमंत्रित किए जाते हैं। स्वाभाविक है कि समुन्नत, सुव्यवस्थित एवं आधुनिकीकृत, तकनीक-सिद्ध संसद-भवन उनके मन में भारत की बेहतर छवि बनाएगी। नए भवन को त्रिकोण के आकार में डिजाइन किया गया है। इसे मौजूदा परिसर के पास ही बनाया जाएगा।

64,500 वर्गमीटर में बनने वाले इस नए संसद-भवन की  लागत लगभग 971 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। इसे चार मंजिला रखने की योजना है। इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सभापति, प्रधानमंत्री एवं सांसदों के आने-जाने हेतु सुगमता की दृष्टि से चार प्रवेश-द्वार होंगें। इसे पेपरलेस और प्रदूषणमुक्त रखे जाने का प्रयास रहेगा। इसमें बिजली की 30 प्रतिशत कम  खपत होगी। नए संसद-भवन में हर सांसद के लिए उनका एक कार्यालय भी होगा। ग़ौरतलब है कि मौजूदा संसद-भवन में सभी सांसदों के लिए कार्यालय का अभाव है। फ़िलहाल सभी सांसदों की सीट के सम्मुख केवल एक माईक लगा होता है, पर नई व्यवस्था में उनकी सीट के सामने आँकड़ों और जानकारियों से लैस टेबलेट की सुविधा प्रदान की जाएगी।

  
आज़ादी के बाद भारत द्वारा बनाया जाने वाला यह पहला संसद-भवन है, जो उच्च तकनीक एवं वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा। जगह की कमी से जूझ रहे 100 साल पुराने संसद-भवन के स्थान पर नए संसद-भवन का निर्माण समय की माँग है। इसकी महती आवश्यकता को इसी आधार पर समझा जा सकता है कि जब मौजूदा संसद-भवन बनकर तैयार हुई थी, उस समय देश की आबादी 30 करोड़ थी, आज 135 करोड़ है। उल्लेखनीय है कि 2026 में परिसीमन के बाद लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ने वाली है, न केवल उस दृष्टि से बल्कि अगले 150 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नए संसद-भवन का निर्माण किया जा रहा है। विदित हो कि मौजूदा संसद-भवन का निर्माण ब्रिटिश भारत में एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर ने किया था। जिसे 1921 में प्रारंभ कर 1927 में पूरा किया गया था।  नए संसद-भवन के निर्माण के पश्चात मौजूदा भवन को पुरातात्विक धरोहर एवं संग्रहालय के रूप में संजोए-सहेजे जाने की योजना है।

वहीं नए संसद-भवन के निर्माण में भारत के वास्तुकार, भारत का धन और भारत का श्रम लगेगा। इसके वास्तुकार (आर्किटेक्ट) श्री बिमल पटेल हैं, जो इस समय के मशहूर एवं जाने-माने आर्किटेक्ट हैं। इसके निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से 2000 इंजीनियर और कामगार तथा परोक्ष रूप से लगभग 9000 कामगार जुड़ेंगें। एक प्रकार से यह नए एवं आत्मनिर्भर भारत का  गौरवशाली प्रतीक होगा। यह जन-मन की आशाओं व आकांक्षाओं का केंद्रबिंदु होगा। निर्माण चाहे भौतिक भवनों या वस्तुओं का ही क्यों न हो, वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को प्रेरित एवं उत्साहित करता है, वह इरादों एवं हौसलों को परवान चढ़ाता है,   उम्मीदों एवं सपनों को पंख देता है, वह राष्ट्र की सामूहिक चेतना एवं संकल्प-शक्ति को मज़बूत बनाता है। नया संसद-भवन भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का गौरवशाली कीर्त्तिस्तंभ होगा। वह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। यह राष्ट्र के मस्तक का जगमगाता रत्नजड़ित मान-मुकुट होगा। प्रधानमंत्री के शब्दों में  ”नया संसद-भवन नूतन और पुरातन के सह-अस्तित्व का उदाहरण है। लोकतंत्र के इस मंदिर की वास्तविक प्राणप्रतिष्ठा इसमें चुनकर आए जनप्रतिनिधियों के आचार-विचार-व्यवहार से होगी। नए संसद-भवन का शिलान्यास, निश्चित ही नए संकल्पों के शिलान्यास का अवसर बनेगा। इस अवसर पर हर नागरिक को ‘भारत प्रथम, राष्ट्र सर्वोपरि’ का संकल्प लेना चाहिए। संसद का नया भवन हम सबको नया आदर्श गढ़ने और जीने की प्रेरणा देगा। संवाद और सहमति का दूसरा नाम ही लोकतंत्र है। कहना और सुनना दोनों सतत चलते रहना चाहिए।”


प्रणय कुमार

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.