सोमवार को देश के कई राज्यों में सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत कर रही हैं. हिंदु धर्म में इस पर्व का काफी महत्व है . वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति की उम्र लंबी रहती है. यह व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को रखा जाता है और इस बार यह सोमवती अमावस्या है.
धर्म-शास्त्रों के मुताबिक बरगद के पेड़ के तने में भगवान विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी के साथ बरगद के पेड़ की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और अखंड सौभाग्य मिलता है.
लेकिन विडंबना यही है कि दूसरे त्योहारों की तरह ही ये व्रत भी लेफ्ट इस्लामिस्ट फेमिनिज्म की भेंट चढ़ गया। हमारे लिए ये बेहद दुःख की बात है कि जो पर्व हमारे लिए स्त्री स्वतंत्रता का प्रतीक होना चाहिए था उसे ही पिछड़ा दिखाया जा रहा है. दरअसल सावित्री की कहानी प्रेम से बढ़कर स्त्री स्वतंत्रता की कहानी है।
सावित्री और सत्यवान की कथा महाभारत के वनपर्व में मिलती है. बरगद के पेड़ के नीचे ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश के वास करने के अलावा इस पेड़ से एक और महत्वपूर्ण घटना जुड़ी हुई है. धार्मिक पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ के नीचे ही देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को फिर से जीवित किया था. देवी सावित्री ने ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन ही अपने पति को फिर से पाया था इसलिए महिलाएं अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए यह व्रत करती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव ने भी अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. प्रयाग में इस जगह को भगवान ऋषभदेव की तपस्थली के नाम से जाना जाता है.
मान्यता है कि वट सावित्री पर्व के दिन सावित्री और सत्यवान की पुण्य कथा सुनने से महिलाओं के जीवन और परिवार में सुख समृद्धि आती हैं और सभी विपत्तियां दूर हो जाती है.
साभार-सोशल मीडिया
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