‘धर्मः स्तनोऽधर्मपथोऽस्य पृष्ठम्’- भगवान का #हृदय-वक्षःस्थल #धर्म है और #अधर्म उनकी #पीठ है। लोक में भी प्रायः सामने-सामने सब अच्छा काम होता है और बुरा काम पीठ पीछे होता है।

अधर्म सारा पीछे होता है। इसलिए कहा जाता है, भगवान को पीठ नहीं #दिखानी चाहिए और न ही पीठ #देखनी चाहिये।

भारतीय महायुद्ध से पहले श्रीकृष्ण के समीप दुर्योधन एवं अर्जुन दोनों ही सहायतार्थ गये थे, भगवान् शय्या पर लेटे हुये थे, दुर्योधन उनके सिरहाने की ओर जाकर बैठा।
भगवान् जब उठकर बैठे तो सम्मुख थे अर्जुन और उनकी पीठ की ओर था दुर्योधन।

किसी देवालय से बाहर निकलते समय भी उल्टे पैरों ही

चलकर बाहर आया जाता है।

मुचुकुन्द ने उस #कालयवन को भस्म किया जिसने भगवान् की पीठ देखी थी , भगवान् की पीठ देखना #निषिद्ध (मना)है

व्रीडोत्तरौष्ठोऽधर एव लोभो धर्मः स्तनोऽधर्मपथोऽस्य पृष्ठम् ।
सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः।सकृत्कन्या प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत्सकृत्

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