विक्रम और बेताल
विक्रम और बेताल की गुफ्तगू , पड़ोसी के घुसपैठ और कब्ज़े के बारे में
विक्रम और बेताल की गुफ्तगू , पड़ोसी के घुसपैठ और कब्ज़े के बारे में
महाराज विक्रम एक बार फिर से बेताल को पीठ पर लाद कर चले । शर्त ये तय हुई की अगर विक्रम ने मुँह खोला तो बेताल वापस चला जाएगा । बा-आदतन बेताल ने एक कहानी शुरू की , रास्ता काटने के लिए :
गाँव में पुश्तैनी ज़मीन पर चले पीढ़ियों के झगड़े के बाद मालिकाना हक़ परिवार को मिल गया । बड़ा परिवार था , घर के बुजुर्ग ने ज़िम्मा दिया पन्नालाल को घर की देखभाल का , हालाँकि घर के काफ़ी लोग ख़ुश नहीं थे पर बुजुर्ग ने कहा था सो मान गए ।
घर में कमरे बहुत थे पर छत पर जाने का रास्ता सिर्फ़ एक लकड़ी की सीढ़ी थी । लोग बोलते की सीढ़ी को पक्का करते हैं पर पन्नालाल ध्यान ना देते ।
एक दिन पड़ोसी , जिसकी दीवार घर से मिलती थी , उसने छत पर डेरा डाल दिया । कमजोर सीढ़ी के चलते परिवार के ज़्यादा लोग पहुँच भी नहीं पाए क़ब्ज़ा हटाने और जो पहुँचे उसमें से ज़्यादातर मारे गए । पंचायत हुई पर पड़ोसी पूरे हिस्से से नहीं हटा । पन्नालाल ने बताया घर आकर की छत के उस हिस्से में वैसे ही सूरज नहीं आता , अचार भी नहीं रख पाएँगे , इसलिए जाने दिया ।
उधर पड़ोसी ने घर के कुछ लोगों को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया । कुछ कमरों में पड़ोसी के पूर्वजों के चित्र आ गए । साथ ही बारिश के पानी को भी रोक कर अपनी मर्ज़ी से छोड़ने लगा जिससे आँगन में अक्सर कीचड़ भर जाता । विरोध की आवाज़ उठी पर पड़ोसी के पूर्वजों की फ़ोटो वाले कमरों से आवाज़ें आ गयीं कि पड़ोसी का तो ये हक़ बनता है ।
फिर दशकों गुजर गए । छत वापस लेने की बात उठती पर दबा दी जाती । पीढ़ियाँ गुजर गयीं इसी में । घिरी हुई छत असलियत लगने लगी ।
धीरे धीरे घर की कमान नए खून के हाथ आयी । ग़लतियों का एहसास था उसे । उसने पड़ोसी की आँख में आँख डालकर बात करनी शुरू की । इस बीच पन्नालाल के पोते , जिनके हाथ से कमान चली गयी थी , वो पड़ोसी के पूर्वजों वाले कमरे में चले गए । पड़ोसी अब उन्हें बुरा लगना बंद हो गया ।
नए खून ने सीढ़ी हटायी और उसकी जगह भरपूर चौड़ाई वाला जीना बनाया , पक्का । छत पर भी सुरक्षा का सामान इकट्ठा किया । पड़ोसी की नयी पीढ़ी को ये अच्छा कहाँ लगता । उसने हाथापाई की जिसमें दोनों तरफ़ के लोग मरे पर पहली बार परिवार वालों ने पड़ोसी को जम के कूट दिया , बहुत मारा । इतना की पड़ोसी ये भी क़बूल नहीं कर पाया की कितने हताहत हुए ।
पर वो जो एक कमरा है , अरे वही पड़ोसी के पुरखों की तस्वीर वाला , उसमें से आवाज़ें आ रही हैं कि नया खून कमजोर है । नए खून में हिम्मत नहीं है । उनका कहना है पड़ोसी की कोई गलती है ही नहीं ।
नए खून ने भी कह दिया है की पीछे नहीं हटेंगे!!!
ये कहकर बेताल शांत हो गया । थोड़ी देर में बोला : तो विक्रम मेरा सवाल ये है की अब नए मुखिया को आगे क्या करना चाहिए । बोल नहीं तो मैं तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर डालूँगा ।
विक्रम बोले : छत पर अपनी स्थिति और मज़बूत करनी चाहिए ।
बेताल बोला : और उस ख़ास कमरे वाले लोगों का क्या करना चाहिए ।
विक्रम बोले : कुछ नहीं , जो अपने परिवार का ना हुआ , पड़ोसी उसे भी बस काम रहने तक रोटी खिलाएगा ।
बेताल : मतलब कुछ भी नहीं करना चाहिए ।
विक्रम बोले : घर के बाक़ी लोग स्वतंत्र हैं उनसे दो दो हाथ करने के लिए , पर मुखिया का ध्यान सिर्फ़ छत पर होना चाहिए ।
बेताल बोला : विक्रम मैं ख़ुश हुआ तेरी बुद्धि से , पर तू भूल गया की तुझे बोलना नहीं था ।
तू बोला , ले मैं चला ।
और विक्रम , एक बार फिर बेताल को पकड़ने दौड़ पड़े !!!
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