जिसने दुश्मनी की, वो परास्त हुआ और गुमनामी में खो गया

आप मोदी को कितना जानते हो ??


मोदी को पूरा जानने के लिए यह लेख जरूर पूरा पढ़ें
जिनपिंग और चीन ने में इस बार ग़लत आदमी से पंगा ले लिया है । इसे समझने के लिए पिछले 18 सालों की घटनाएं को याद करना पड़ेगा ।

हरेन पंड्या की हत्या के बाद मोदी को झूठा फंसाने की पहली बार कोशिश हुई थी। 


कांग्रेस तुरंत केन्द्र में सत्ता में आयी अगर मोदी की कोई भूमिका होती तो वो मोदी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा के उसको अंदर कर सकती थी,
क्योंकि सी.बी.आई. कोंग्रेस के कब्जे में थी ।
 लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाई ।


फिर मोदी के सामने काँग्रेस ने पंड्या के बुजुर्ग पिता जी और उसके बाद उसकी विधवा पत्नी को उकसाया और मोदी के लिए उस समय उसके पिताजी ने कोई डिक्शनरी में नहीं ढूंढ़ सके ऐसे ऐसे गलिच शब्दों से मोदी को नवाजा ।
अब तो पंड्या के पिता जी भी नहीं रहे और उसकी पत्नी जो काँग्रेस के कहने पर मोदी के सामने विधानसभा में इलेक्शन लड़ी थी आज वो भी गुमनामी में खो गई है ।
बाद में कई गुजरात के राजकीय और नोन राजकीय विरोधियों ने मोदी को नकेल कसने की कोशिश की, या उसके विरूद्ध जहर उगला, लेकिन सब वहीं की वहीं ढेर हो गए ।


उस लिस्ट में प्रमुख लोग इस तरह है ।
केशुभाई, कांशीराम राणा ( कब के चल बसे ), सुरेश मेहता, गोरधन ज़ड़ाफिया, शंकरसिंह वाघेला, धीरूभाई गजेरा वगैरा को अब काल की गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं ।


ये सब मोदी को टक्कर देने की पावर रखते थे लेकिन शायद उनकी सोच और नीति सात्विक नहीं थी तो सब मिलकर मोदी के सामने लड़े तो भी बुरी तरह हारे, जबकी मोदी मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन गए जिसके हम गवाह हैं ।


बाद में आते है खाँग्रेस के लोग ।
अर्जुन मोढवाडिया, भरतसिंह सोलंकी (अभी अभी राज्य सभा चुनाव हार चुके है ), शक्तिसिंह गोहिल खुद एम एल ए का चुनाव पिछले चुनाव में हारे थे जबकि वो कोंग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे। इस सूची में हम कोंग्रेस प्रेरित हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी को भी जोड़ ले तो जिग्नेश मेवानी के अलावा पहले दो की राजकीय सफ़र लगभग खत्म हो चुकी है जबकि जिग्नेश मेवानी काफी समय से चुप बैठे हैं ।


फिर बात करते है आईपीएस संजीव भट्ट की, वो काँग्रेस के इशारे पर मोदी के सामने बिना वजह भीड़ गया, और 2002 के गुजरात दंगो के लिए मोदी के सामने गलत बयान दिया जो आगे जाकर कोर्ट में टिक नहीं पाया, और अब ये साहब खुद जेल में बंद हैं ।


तीस्ता सीतलवाड़ ने क्या क्या खेल खेला उससे हम सब परिचित हैं । 


काँग्रेस के साथ मिलकर मोदी को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसने, और तब कोई खास वजह से उसको कोर्ट का सहारा भी मिलता रहा ।
लेकिन आखिर में सच की ही जीत होती है और वैसा ही हुआ, तीस्ता और उसके पति तो महा चोर निकले कथित दंगा पीड़ितों के लिए जमा किए गए लाखों के फंड वो दोनो अपने एशोआराम के लिए उड़ाते रहे ।
और कोर्ट में दोनो के सामने धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ ।तीस्ता सीतलवाड़ अब कहीं गुमनामी झेल रही है ।


फिर बात करते है देश की सबसे पुरानी और महान पार्टी की 2002 के दंगो की आड़ में कांग्रेस ने सेंटर में रहते हुए पावर का उपयोग करके मोदी को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । सबको याद ही होगा सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम यानी एस.आई. टी. ने मोदी की एक आम गुनहगार की तरह दो तीन बार, नौ – नौ, दस – दस घंटे लगातार दिन रात पूछताछ की थी


ऊपर से बिकाऊ और सुडो-सेकुलर मीडिया ने सभी न्यूज चेनल पर मोदी के सामने मोर्चा बना के रखा था…..वो सबको पता है ।राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, करण थापर, प्रनॉय मुखर्जी और दूसरे अनगिनत लोगों ने मोदी पर हर रोज कई सालों तक कीचड़ उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।


आज ओल्ड ग्रैंड पार्टी कांग्रेस की नैय्या डूबने की कगार पर है ।
कांग्रेस के प्रिंस को अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अजेय सीट अमेठी से हारना पड़ा ।


कांग्रेस के पिछली लोकसभा के लीडर मल्लिकार्जुन खड़गे भी मोदी के सामने लोकसभा में शोर मचाते मचाते बुरी तरह हारे ।


ऐसा लगता है जैसे श्री कृष्ण को मारने के लिए जरासंध सब अनिष्ट लोगों को इकट्ठा कर ले के आता था, सोनिया, राहुल और कांग्रेस ने वही किया ।


पड़ोसी देशों की बात करें तो हम अब तक पहले आ चुके कांग्रेसी शासनकाल में पाकिस्तान के नाम से कांप उठा करते थे ।
और इतना मानसिक लघुग्रंथी से पीड़ित हुआ करते थे कि बात न पूछो। वो भी पाकिस्तान के 1971 में दो टुकड़े करने वाली भारतीय सेना की क्षमता का परिचय मिलने के बाद ।
वो कौन सी मजबूरी थी या डर या वोट बैंक की चिंता थी की हर दूसरे दिन हमारे जवान बॉर्डर पर शहीद हुआ करते थे और हर हप्ते पंद्रह दिन में भारत के कोई न कोई कोने में बम ब्लास्ट हुआ करता था। और हम कड़ी निंदा के सिवा कुछ कर नहीं सकते थे ।


अब…? 
2014 के बाद मोदी के आने के बाद पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी है । 
उरी हो या बालाकोट पाकिस्तान की अक्कल ठिकाने ला दी ।


आज़ादी के बाद अपनी विदेश नीति पाकिस्तान के इर्दगिर्द घूमती रही और हम शक्तिमान होते हुए भी सत्तर साल तक पाकिस्तान के सामने कांपते रहे और शांति के लिए गिड़गिड़ाते रहते थे ।


अब आप याद करेंगे तो पाकिस्तान उस लिहाज़ से आपके मानस पटल से लगभग अदृश्य हो चुका है ।


और नेपाल के औली जो चीनी बहकावे में आकर कुछ ही दिनों पहले नेपाल का नक्शा बदलने की  कोशिश करते थे अब खुद की कुर्सी संभालने के लाले पड़ रहे हैं ।


और अंत में चाइना की बात, कोरोना के बारे में पूरे विश्व को अंधेरे में रखकर उसने जो पाप किया था उसके लिए पछतावा करने की बजाय, लोमड़ी की तरह मौके का फायदा लेने के लिए पड़ोसी देशों से विस्तारवादी मंशा के चलते भूमि अधिग्रहण करने में लगा था ।
भारत के साथ भी उसने पंगा लिया ।


चाइना ऐसा समझ रहा था कि कोरॉना के चलते भारत जवाबी कार्यवाही कुछ नहीं करेगा ।
लेकिन वो भूल गया कि यह भारत १९६२ का नहीं रहा और उसके शीर्ष शासक पुराने डरपोक कांग्रेसी तो कतई नहीं है ।


मोदी और सेना के जवानों का जलवा उसे मिल ही गया । और सबसे बुरी खबर चाइना के लिए यह हैै की अब बारी बारी दुनिया के सब देश भारत और मोदी के इस साहस को देखते हुए हिम्मत जुटाने लगे हैं ।सबको मालूम पड़ गया कि चाइना से डरकर नहीं…लड़कर जिया जा सकता है ।
जिनपिंग के दिन अब भरने लगे है ।


2002 के बाद मोदी सामने जो युद्ध छेड़ा गया या इतना मानसिक टॉर्चर करने की कोशिश की गई थी..
अगर मोदी की जगह और कोई होता तो कब का सुसाइड कर चुका होता या अब तक कांग्रेस मोदी को जेल में बंद कर चुकी होती ।
मोदी का मनोबल इतना बड़ा है की अब लगता है कि वो दबने वालों में से नहीं है ।


मोदी जी सच में भारत माँ का आशीर्वाद प्राप्त हैैं, मानो उनका जन्म ही कोई एक खास प्रयोजन हेतु से ही हुआ है, और वो मां भारती की सदियों से खोई हुई प्रतिष्ठा और गौरव प्राप्त कराना है ।
मोदी जी के विरोधी इस बात को जितनी जल्दी समझ ले वो उन लोगों के लिए अच्छा है, क्योंकि मोदीजी को सुदर्शन चक्र धारण करने में देर नहीं लगेगी ।


ड्रैगन भी झुकता है,, झुकाने वाला चाहिए..
गलवान घाटी पॉइंट 14 से PLA 2 KM पीछे हटी, और चाईना ने आपना अस्थाई विवादित ढांचा भी गिराया, और चीनी सेना अपनी मूल जगह पर लौट गई..
इसी को कहते हैं ‘नया भारत’ 

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