श्री राम मंदिर निर्माण असली आज़ादी का प्रतीक, 15 अगस्त 1947 को ही हो जानी चाहिए थी घोषणा
जो लोग मुंबई बम हमलों के समय मुंबई को बचाने की जगह नकली सेकुलरिज्म के कीड़े को पाल रहे थे उन्हें चिंता हैं कि राम मंदिर बनने से वायरस तो नहीं मरेगा।
जी हां, पवार साहब, राम मंदिर निर्माण से वायरस मरेगा। जरूर मरेगा वायरस। नकली सेकुलरिज्म का वायरस। 500 साल पुरानी बीमारी का वायरस। हत्यारों और हमलावरों को महान बताने वाली बीमारी का वायरस। वो वायरस जिसके सहारे घुसपैठियों को भी वोट बैंक बना लिया जाता हैं। वो वायरस जिसके कारण आतंकवादियों के लिए आधी रात को कोर्ट खुलवाए जाते हैं। मरेगा वो वायरस जब बनेगा भव्य श्री राम मंदिर।
बाबर के सेनापति मीरबाँकी ने जब मंदिर तोड़ा तब उसकी जो सोच थी, वो सोच असली वायरस हैं। 5 लाख से ज्यादा मंदिरों को तोड़ना, मूर्तियों की पूजा करने वालों की हत्या करना, देवताओ की मूर्तियों से सीढियां बनाना
वो वायरस जिसने गुरु गोविंद सिंह के साहबजादों को छोटी सी उम्र में जिंदा दीवार में चिनवा दिया था क्योंकि वो अपना धर्म बदलने को तैयार नहीं हुए। वो वायरस जिसने अफगानिस्तान के बामयान की बुद्ध मूर्तियों से लेकर नालंदा के विश्वविद्यालयों तक तो तोड़ा, जलाया और नष्ट किया । वो वायरस जिसने बाबर, अकबर, हुमायूं, औरंगजेब जैसे हत्यारों, ऐय्याशों को महान बताया । वो वायरस जिसने कश्मीर में हिंदुओं की हत्या पर, पंडितों को मारे लूटे और भगाए जाने पर चुप्पी साधी रखी, उस वायरस की मौत का समय आ गया हैं।
अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर प्रतीक हैं कि हमने वायरस पर जीत हासिल करनी शुरू कर दी हैं। बीमारी अब खत्म होकर रहेगी।
जो बीमार हैं, जिन्हें इस बीमारी में ही जीने की आदत हो चुकी हैं, उन्हें कष्ट होगा, बहुत दर्द होगा। ईलाज से भागेंगे। बीमारी फैलाने की कोशिश करेंगे। पर वायरस का अंत अब निश्चित हैं।
बोल सियापति रामचन्द्र की जय
– कपिल मिश्रा
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