देश के बुद्धिजीवियों! कोरोना से तड़पते लोगों के दर्द को तो फिर भी देश-दुनिया सुन रही थी! सहानुभूति-संवेदना दे रही थी। कम-से-कम उन्हें दर्द बयां करने का अधिकार तो था।
पर इन बिचारों को यह अधिकार भी नहीं! बड़ी संख्या में लोग पश्चिम बंगाल के दूर-दराज के इलाकों से घर-द्वार छोड़कर पलायन कर रहे हैं। लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल से असहमत लोगों के घरों पर हमला किया जा रहा है, महिलाओं को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है, दिन-दहाड़े लोगों की नृशंस हत्या कर दी जा रही है। थाने को, पुलिस-प्रशासन को निर्देश है कि इन बलवाइयों, इन हत्यारों, इन समुदाय विशेष के नरपिशाचों के विरुद्ध कोई एफ.आई.आर दर्ज न की जाय। सत्ता के संरक्षण में भिन्न राजनीतिक मत रखने वालों का ऐसा नरसंहार कदाचित औरंगज़ेब और खिलजियों के कालखंड में भी नहीं हुआ होगा!
एक लूटपाट की वीडियो भी पश्चिम बंगाल की बताई जा रही है! कहा जा रहा है कि लोकतंत्र के ये महानायक और रक्षक मॉल के उन दुकानदारों की दुकान लूटकर ले जा रहे हैं, जिन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य की सत्तारूढ़ दल से असहमति की हिमाकत की!! गलत किया उन्होंने! उन्हें ऐसी हिमाकत की सजा मिलनी ही चाहिए!!! दुकानदारी क्या, हमारे महान-धर्मनिरपेक्ष विद्वानों की दृष्टि में तो उन्हें जीने का भी कोई हक़ नहीं!! बल्कि राज्य की सत्ता से असहमत ऐसे आम लोगों की साँसें, उनकी महान दया और अतुलनीय उदारता है!!! आओ, लोकतंत्र के महान रक्षकों-उन्नायकों, लोकतंत्र के इन सिपाहियों की शान में कसीदे पढ़ो, कोरस गाओ, विरुदवलियाँ रचो!!! आओ!!!!!!! भद्र बंगाली मानुषों! आपने अपने महान बंगाली अस्मिता की क्या ख़ूब रक्षा की!!!! बधाई आपको भी बधाई!!!!!!!!!!
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