वामपंथी विचारकों के लिए वैसे तो धर्म अफीम है पर जब कभी किसी को नीचा दिखाना हो तो इसका उपयोग करने से वे कभी नहीं कतराते। समानता के अधिकार की बात करने से कभी पीछे नहीं हटते हैं पर अगर एजेंडा में सेट हो जाए तो किसी को उसकी जाति , धर्म , भाषा , पहनावे , प्रदेश इत्यादि में बांटने से भी नहीं हटते चूकते ।
हाल ही में “The Wire” में छपे पत्रकारा ज्योति यादव के लेख में भी वामपंथ के यही लक्षण साफ़ साफ दिख रहे हैं | लेख के शीर्षक में ही वो “Toxic ” , “बिहारी” जैसे शब्द इस्तेमाल में लाती हैं। साथ में “श्रवण कुमार” का उल्लेख ले आती हैं , जो ये बताने के लिए इस्तेमाल में लाया गया है की कैसे परिवार , खासकर माता-पिता बच्चों पर एक जिम्मेदारी लाद देते हैं। लेख में आगे वो ना केवल बिहारी बल्कि लगभग सारे उत्तर भारतीय परिवारों को “Girl Friend” फोबिक जैसा दर्शा देती हैं।
और ये सब इसलिए क्यूंकि उनका टारगेट सुशांत सिंह राजपूत के पिता हैं। और टारगेट भी इसलिए हैं क्यूंकि उन्होंने रिया चक्रवर्ती पर आरोप लगाए हैं और FIR दर्ज़ की है |इसलिए बिना इस बात को जाने की क्या वाकई में लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं , पत्रकार ने ना केवल बिहारी बल्कि पूरे उत्तर भारत के परिवारों को “बेटों को लाडला” , “पत्नी या गर्ल -फ्रेंड को परिवार तोड़ने वाला” इत्यादि सम्बोधनों से नवाज़ दिया है। खैर ! सुशांत का केस अब बड़ी एजेंसीज के पास है , उम्मीद है न्याय भी मिलेगा और जल्दी भी मिलेगा। पर कुछ सवाल हैं जो इस तरह के लेख, मन में पैदा करते हैं ( इस तरह के इसलिए लिखा , क्यूंकि ज्योति यादव ना तो पहली और ना आखिरी पत्रकार हैं जिन्होंने ऐसे लेख लिखे हों , उनको इसके आलावा कभी पढ़ा भी नहीं , इसलिए हो सकता है उन्होंने खुद भी ऐसा कुछ पहले भी लिखा हो ) :
१. पहला सवाल ये भी की सुशांत की गर्ल-फ्रेंड तो अंकिता भी थीं , उनके रिश्ते तो परिवार के साथ अच्छे थे , तो फिर परिवार “गर्ल-फ्रेंड-फोबिक” कैसे हो गया ? पूरे लेख में अंकिता का नाम भी नहीं , क्यों ? एजेंडा में नहीं बैठता इसलिए ?
२.जितने आरोप लेख में परिवार की सोच पर लगा दिए गए , अगर रिया चक्रवर्ती पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो क्या फिर ये सोच सही साबित मान ली जाएगी ? या फिर ऐसे आरोप लगाकर एक पक्ष को बेनिफिट ऑफ़ डाउट देने की कोशिश है ?
३.फैमिली डिप्रेशन को इग्नोर कर रही थी ( और है भी ) ये तो आपने लिखा , पर उसी परिवार ने कंसर्न दिखाते हुए जान को खतरा है वाली शिकायत दर्ज़ करायी , वो बात आप दबा गयीं , क्यों ? ये एजेंडा में नहीं आता इसलिए ?
अब बात श्रवण कुमार की भी कर लेते हैं जो शीर्षक के अलावा केवल एक और मेंशन भर पाए हैं पूरे लेख में। श्रवण कुमार हमारे इतिहास में मातृ-पितृ भक्ति की पराकष्ठा माने जाते हैं। अपने नेत्रहीन मातापिता की तीर्थ करने की इच्छा को उन्होंने पूर्ण किया और सीमित संसाधनों के चलते उन्हें अपने कन्धों पर टोकरियों में बैठाकर यात्रा
करवाई | वैसे ऐसा उदाहरण इतिहास में भगवान् गणेश का भी है , जिन्होंने माता पिता को समस्त संसार मान लिया था और उन्ही के चक्कर लगाकर समस्त संसार के चक्कर लगा लिए थे और इसीलिए उन्हें सभी पूजाओं में सबसे पहले पूजा जाता है। वापस श्रवण कुमार पर आएं , तो वामपंथी सीमित संसाधनों के बावजूद अपने माता पिता की इच्छा पूरी करने वाले श्रवण कुमार के मातापिता को उनका दोहन करने वाले मातापिता बना देते हैं। यहाँ पर बाकी सब कुछ गौण हो जाता है। ना श्रवण कुमार के जीवन से इनका कोई वास्ता है , ना पालन पोषण से।
प्राइम टाइम स्मरणीय रविश जी भी ऐसा पहले कर चुके हैं। विजय माल्या के देश छोड़ने पर उन्होंने नचिकेता का उदहारण देते हुए मोदी समर्थकों से कहा था की अपने नेता से सवाल पूछो, ये तुम्हारा अधिकार है क्यूंकि नचिकेता ने भी ऐसा किया था। शायद नचिकेता की कहानी उन्हें पूरी पता नहीं थी, वरना सबसे पहले वो सवाल NDTV के मालिकों से पूछते जो माल्या साहब की कंपनी के साथ NDTV Goodtime चैनल चला रहे थे।
उत्तर भारतीयों को रविश भी टारगेट करते रहे हैं। अक्सर शिक्षा के स्तर, रोज़गार इत्यादि पर वो कोसते रहते हैं। उनका कहना है इतनी बुरी हालत होने के बाद भी मोदी के साथ क्यों है ? उत्तर-दक्षिण का कम्पेरिज़न कांग्रेसी भी जमकर करते हैं। जबकि असलियत ये है की उत्तर हो या दक्षिण , सबकी अपनी विशेषताएं हैं और खामियां भी , मिलजुलकर ये पूरा भारत बनाते हैं। जो एक बात जो चारों दिशाओं को जोड़ती है वो है हमारी संस्कृति , जिसे वामपंथी और कांग्रेसी दोनों , मानने को तैयार ही नहीं होते।
वैसे भी जो लोग “भक्त” जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी गाली देने में कर लें , उनसे उम्मीद ज्यादा करी भी नहीं जा सकती।
फिर विषयांतर हो गया , वापस श्रवणकुमार पर आते हैं , उनकी कहानी पूरी करते हैं। कहते हैं तीर्थयात्रा के दौरान ही , उनके माता पिता को प्यास लगी और वो पानी लेने नदी की ओर गए। वहां अयोध्या नरेश महाराज दशरथ ने कोई जानवर समझकर शब्द भेदी बाण चला दिया जो श्रवण कुमार को लग गया। उनकी चीख सुनकर दशरथ गए , बचना असंभव था श्रवण कुमार का , इसलिए उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की उनके प्यासे मातापिता को पानी पीला दिया जाए। दशरथ स्वयं पानी लेकर गए , पर उनकी आहट मात्र से श्रवण कुमार के मातापिता पहचान गए की वो उनके पुत्र नहीं हैं। जब महाराज ने सारी बात बताई , तो दोनों ने बिना पानी पिए अपने प्राण त्याग दिए और दशरथ को भी पुत्र वियोग में मरने का श्राप भी दिया। श्राप का असर भी हुआ और दशरथ ने राम-वियोग में प्राण त्यागे।
हो सकता है उन्होंने पूरी कहानी ना पढ़ी हो , ऊपर पढ़ सकती हैं। उसके बाद मेरा चौथा सवाल है उनके लिए : आपने श्रवण कुमार ढूंढ लिए , उनके पिता – परिवार भी ढूंढ लिया , तो क्या आप इस “श्रवण कुमार” के अंत के बारे में भी कुछ प्रकाश डालेंगी ? इस पर कुछ मिला नहीं आपके लेख में।
और फिर सवाल वही कि FIR में लिखी हर बात सच हुई तो बिहारी और उत्तर भारतीय परिवार पर लगाए ये सारे आरोप वो वापस ले लेंगी क्या ?
आखिरी बात आप सबसे : शीर्षक में जो बिहारी लिखा है न , उसे भले अभी आप बिहारी ही पढ़ रहे हों , पर यकीन मानिये , ये कब कोई और प्रदेश या कोई धर्म या पूरा भारत ही बन जायेगा , आपको पता भी नहीं चलेगा। इस तरह के लेख जिसमें इस तरह का “जर्नलाइजेशन” होता है वो भी जब एक दुःखद घटना हुई है , तो ये महत्व रखता ही नहीं की आप किस प्रदेश के हैं , आप एक इंसान की तरह ही दुःखी होते हैं। इंसान रहने के लिए ये ज़रूरी है।
प्रभु राम , राजा दशरथ , श्रवण कुमार , उनके माता पिता (ज्ञानवती और शांतनु) , नचिकेता : न्याय करने वालों के हाथों को मज़बूत करें।
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