हिन्दू त्योहारों पर वामपंथीयों का पशु प्रेम इतना अधिक उबाल मारने लगता है, मानो जैसे उन पशुओं की सारी पीड़ायें वामियों को ही महसूस होने लगती है। उन्हें होली पर पशुओं को होने वाली एलर्जी, दीपावली पर कुत्तों को लगने वाले डर और मकर संक्रांति पर घायल होते पक्षियों की इतनी चिंता है कि पूरा सोशल मीडिया भर डालते हैं, कबूतरी बनी इन मैडम को आप देखिए ये केवल 15 अगस्त और मकर संक्रांति को ही दिखाई देती हैं, सुबह से ही जागा ये पशुप्रेम बस शाम तक चलता है, उसके बाद इनमें शाम की पार्टी में शराब पीने के बाद झगड़ा होता है कि मुर्गे का लेग पीस किसके हिस्से में आएगा, मुर्गा भी सोचता होगा कि पक्षी होते हुए भी मेरी गिनती केवल लेग पीस में करते ये लोग कितने पाखंडी और धूर्त हैं। बकरा ईद पर तो बधाइयों का तांता ऐसा की पूछो मत, इनका बस चले तो छुरी लेकर खुद भाई जान के घर पहुंच जायें बकरा हलाल करने। उस दिन बकरा इनके लिए जानवर नही रहता बेचारा कोरमा, बिरयानी, कीमा बनकर रह जाता है, ईद पर होने वाली करोड़ों नृशंस हत्याओं पर इनकी बोलती बंद रहती है, रहे भी क्यों नही भाई जान बकरे की जगह इनकी गर्दन पर भी छुरी फेर सकते हैं, बेहयाई की ये इम्तेहां यहीं नही रुकी है, ये लोग अब हिन्दू त्योहारों के ज़रिए इनके जिहादी एजेंडा खुलकर सामने रखने लगे हैं, हाल ही में हुए तनिष्क के प्रचार का उदाहरण ले लीजिए जिसमे एक हिन्दू लड़की को दीपावली मनाते एक मुस्लिम परिवार में दिखाया गया, जनता की जागरूकता और विरोध के चलते तनिष्क को इस लव जिहादी प्रचार के लिए माफी मांगनी पड़ी और प्रचार वापस लेना पड़ा।
हिन्दू त्योहारों को बदनाम करिये और बड़े बुद्धिजीवी कहलाइये, पुरस्कार पाइये, अपने लेख बड़े बड़े मीडिया पत्रों में छपते देखिये, आप जितना अपनी संस्कृति को गाली देंगे उतने बड़े बुद्धिजीवी माने जाएंगे पर जहां आपने अपने त्योहारों का पक्ष लिया उनकी विशेषताओं और समाज को एकजुट करने वाले संदेश को समझने और समझाने का प्रयास मात्र करते हैं तो आप संकीर्ण मानसिकता वाले पिछड़े और असहिष्णु समाज के प्रतीक बन जाएंगे।
बहरहाल अब हिन्दू समाज अपने अधिकारों को समझने लगा है, प्रतिकार करने लगा है इसी लिए अब इन फर्जी बुद्धिजीवियों को दूसरे साधन खोजने पड़ रहे हैं। हम भी सोशल मीडिया पर इन्हें इनकी भाषा मे उत्तर दें और निरंतर दें, तो ये सब षड्यंत्र विफल भी होंगे और हमारे साथ वो लोग भी उठ खड़े होंगे जो अभी तक चुप बैठे इन वामियों की मक्कारी झेल रहे हैं।
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